रहीम और उनके लोकप्रिय प्रासंगिक दोहे
रहीम और उनके लोकप्रिय प्रासंगिक दोहे अर्थ सहित
मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय ।
एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन विष होय ॥
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग ।
तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग ॥
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि ।
स्याम कचन में सेत ज्यों, दूरि कीजिअत देखि ॥
यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये, हारि होय कै जीति ॥
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय ।
बैर, प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय ॥
यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय ।
चीता, चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय ॥
याते जान्यो मन भयो, जरि बरि भस्म बनाय ।
रहिमन जाहि लगाइये, सो रूखो ह्वै जाय ॥
ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु ।
ज्यों तिय कुच आपुन गहे, आप बड़ाई आपु ॥
ये रहीम दर-दर फिरै, माँगि मधुकरी खाहिं ।
यारो यारी छाँडि देउ, वे रहीम अब नाहिं ॥
एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन विष होय ॥
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग ।
तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग ॥
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि ।
स्याम कचन में सेत ज्यों, दूरि कीजिअत देखि ॥
यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति ।
प्रानन बाजी राखिये, हारि होय कै जीति ॥
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय ।
बैर, प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय ॥
यह रहीम मानै नहीं, दिल से नवा जो होय ।
चीता, चोर, कमान के, नये ते अवगुन होय ॥
याते जान्यो मन भयो, जरि बरि भस्म बनाय ।
रहिमन जाहि लगाइये, सो रूखो ह्वै जाय ॥
ये रहीम फीके दुवौ, जानि महा संतापु ।
ज्यों तिय कुच आपुन गहे, आप बड़ाई आपु ॥
ये रहीम दर-दर फिरै, माँगि मधुकरी खाहिं ।
यारो यारी छाँडि देउ, वे रहीम अब नाहिं ॥
मुकता कर करपूर कर, चातक जीवन जोय।
एतो बड़ो रहीम जल, ब्याल बदन विष होय॥
रहीम कहते हैं कि मोती, कपूर और चातक पक्षी का जीवन जल पर निर्भर है। यदि जल अत्यधिक हो जाए, तो सर्प के मुख में विष बन जाता है। अतः अति सर्वत्र वर्जयेत्।
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग।
रहीम कहते हैं कि मोती, कपूर और चातक पक्षी का जीवन जल पर निर्भर है। यदि जल अत्यधिक हो जाए, तो सर्प के मुख में विष बन जाता है। अतः अति सर्वत्र वर्जयेत्।
मुनि नारी पाषान ही, कपि पसु गुह मातंग।
तीनों तारे राम जू, तीनों मेरे अंग॥
ऋषि पत्थर बनी अहिल्या, वानर रूप हनुमान, और गजेंद्र हाथी—इन तीनों को भगवान राम ने तार दिया। ये तीनों मेरे अंग हैं, अर्थात् हमें भी राम की शरण में जाना चाहिए।
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि।
ऋषि पत्थर बनी अहिल्या, वानर रूप हनुमान, और गजेंद्र हाथी—इन तीनों को भगवान राम ने तार दिया। ये तीनों मेरे अंग हैं, अर्थात् हमें भी राम की शरण में जाना चाहिए।
मूढ़ मंडली में सुजन, ठहरत नहीं बिसेषि।
स्याम कचन में सेत ज्यों, दूरि कीजिअत देखि॥
मूर्खों की सभा में सज्जन व्यक्ति विशेष नहीं ठहरता, जैसे काले कंचन में सफेद धब्बा दूर से ही दिखता है। अतः सज्जनों को मूर्खों की संगति से बचना चाहिए।
यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति।
मूर्खों की सभा में सज्जन व्यक्ति विशेष नहीं ठहरता, जैसे काले कंचन में सफेद धब्बा दूर से ही दिखता है। अतः सज्जनों को मूर्खों की संगति से बचना चाहिए।
यह न रहीम सराहिये, देन लेन की प्रीति।
प्रानन बाजी राखिये, हारि होय कै जीति॥
रहीम कहते हैं कि लेन-देन की प्रीति की सराहना नहीं करनी चाहिए। सच्चा प्रेम वह है, जिसमें प्राणों की बाजी लगाकर भी हारकर जीतने का सुख मिलता है।
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
रहीम कहते हैं कि लेन-देन की प्रीति की सराहना नहीं करनी चाहिए। सच्चा प्रेम वह है, जिसमें प्राणों की बाजी लगाकर भी हारकर जीतने का सुख मिलता है।
यह रहीम निज संग लै, जनमत जगत न कोय।
बैर, प्रीति, अभ्यास, जस, होत होत ही होय॥
रहीम कहते हैं कि जन्म से कोई भी व्यक्ति बैर, प्रीति, अभ्यास या यश लेकर नहीं आता। ये सब संसार में रहते हुए धीरे-धीरे होते हैं।
रहीम कहते हैं कि जन्म से कोई भी व्यक्ति बैर, प्रीति, अभ्यास या यश लेकर नहीं आता। ये सब संसार में रहते हुए धीरे-धीरे होते हैं।
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
