रहीम के दोहे हिंदी में Rahim Ke Dohe in Hindi

 रहीम के दोहे हिंदी में Rahim Ke Dohe in Hindi

 
रहीम के दोहे हिंदी में Rahim Ke Dohe in Hindi

भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार ।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार ॥

मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान ।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान ॥

मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं ।
ज्‍यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं ॥

मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज ।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज ॥

महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष ।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष ॥

माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बढ़ि काम ।
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम ॥

माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्‍यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ ॥

मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्‍ता भोग ।
सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग ॥

मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस ।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस ॥

माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और ।
त्‍यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर ॥

मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास ।
रहिमन प्रीति सराहिये, मुयेउ मीन कै आस ॥

पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था । रहीम को वीरता, राजनीति, राज्य-संचालन, दानशीलता तथा काव्य जैसे अदभुत गुण अपने माता-पिता से विरासत में मिले थे। बचपन से ही रहीम साहित्य प्रेमी और बुद्धिमान थे। बैरम खाँ हज के लिए जाते हुए गुजरात के पाटन में ठहरे और पाटन के प्रसिद्ध सहस्रलिंग तालाब में नौका विहार या नहाकर जैसे ही निकले, तभी उनके एक पुराने विरोधी – अफ़ग़ान सरदार मुबारक ख़ाँ ने धोखे से उनकी पीठ में छुरा भोंककर उनका वध कर डाला। यह मुबारक खाँ ने अपने पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए किया था। रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्म- निरपेक्ष नीति के अनुकूल हुई। मुल्ला मुहम्मद अमीन रहीम के शिक्षक थे। इन्होने रहीम को तुर्की, अरबी व फारसी भाषा की शिक्षा व ज्ञान दिया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, कविता, गणित, तर्कशास्त्र तथा फारसी व्याकरण का ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृत के शिक्षक थे। इसी शिक्षा- दिक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है। रहीम की शिक्षा- दीक्षा अकबर की उदार धर्म- निरपेक्ष नीति के अनुकूल हुई। मुल्ला मुहम्मद अमीन रहीम के शिक्षक थे। इन्होने रहीम को तुर्की, अरबी व फारसी भाषा की शिक्षा व ज्ञान दिया। इन्होनें ही रहीम को छंद रचना, कविता, गणित, तर्कशास्त्र तथा फारसी व्याकरण का ज्ञान भी करवाया। इसके बदाऊनी रहीम के संस्कृत के शिक्षक थे। इसी शिक्षा- दिक्षा के कारण रहीम का काव्य आज भी हिंदूओं के गले का कण्ठहार बना हुआ है।रहीम का जन्म लाहौर में 17 दिसंबर 1556 को हुआ था। 
 
रहीम कई भाषाओं के जानकार थे और साथ ही साथ युद्ध कला में भी निपुण थे। जब 1562 में उनके पिता बैरम खान की मृत्यु हो गई तो अकबर ने रहीम के गुणों को पहचान करके उन्हें अपने दरबार में स्थान दिया। उन्होंने विभिन्न तुर्की अरबी फारसी और संस्कृत भाषा को सीखा । यद्यपि वह मुसलमान थे लेकिन फिर भी उन्होंने हिंदुओं हिंदुओं के सामाजिक जनजीवन को समझते हुए उनके एक जीवन से संबंधित मार्मिक बातें लिखी। उन्होंने बाबर की आत्मकथा आत्मकथा तुजुक ए बाबरी अनुवाद किया। उल्लेखनीय है कि रहीम मुसलमान होकर भी कृष्णा भक्त थे । अकबर ने उन्हें खाने खाना की उपाधि से सम्मानित किया रहीम की भाषा अवधी और ब्रज भाषा रही है। रहीम के काव्य में हास्य रस , शांत रस और श्रृंगार रस भी मिलता है। रहीम जाति से मुसलमान लेकिन सांस्कृतिक रूप से भारतीय थे।अकबर की मौत के बाद अकबर का पुत्र जहाँगीर राजा बना. परन्तु अबुल फजल और मानसिंह की तरह अब्दुल रहीम भी जहांगीर को बादशाह बनाने के पक्ष में नही थे. इसलिए जहाँगीर ने अब्दुल रहीम के दोनों बेटों को मरवा दिया था और वर्ष 1627 में अब्दुल रहीम की मौत हो चित्रकूट में हुई. जिसके बाद उनके शव को दिल्ली लाया गया. आज भी उनका मकबरा वहां स्थित हैं.
 
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