रहीम के दोहे जानिये अर्थ सहित
हिंदी अर्थ सहित रहीम के दोहे
भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार ।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार ॥
मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान ।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान ॥
मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं ।
ज्यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं ॥
मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज ।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज ॥
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष ।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष ॥
माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बढ़ि काम ।
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम ॥
माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ ॥
मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्ता भोग ।
सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग ॥
मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस ।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस ॥
माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और ।
त्यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर ॥
मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास ।
रहिमन प्रीति सराहिये, मुयेउ मीन कै आस ॥
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार ॥
मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान ।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान ॥
मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं ।
ज्यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं ॥
मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज ।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज ॥
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष ।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष ॥
माँगे घटत रहीम पद, कितौ करौ बढ़ि काम ।
तीन पैग बसुधा करो, तऊ बावनै नाम ॥
माँगे मुकरि न को गयो, केहि न त्यागियो साथ ।
माँगत आगे सुख लह्यो, ते रहीम रघुनाथ ॥
मान सरोवर ही मिले, हंसनि मुक्ता भोग ।
सफरिन भरे रहीम सर, बक-बालकनहिं जोग ॥
मान सहित विष खाय के, संभु भये जगदीस ।
बिना मान अमृत पिये, राहु कटायो सीस ॥
माह मास लहि टेसुआ, मीन परे थल और ।
त्यों रहीम जग जानिये, छुटे आपुने ठौर ॥
मीन कटि जल धोइये, खाये अधिक पियास ।
रहिमन प्रीति सराहिये, मुयेउ मीन कै आस ॥
भार झोंकि के भार में, रहिमन उतरे पार।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन का बोझ भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया, वह जीवन की कठिनाइयों से आसानी से पार हो जाता है। लेकिन जो लोग अपने सिर पर ही हर जिम्मेदारी और अहंकार का बोझ उठाए रखते हैं, वे जीवन के संघर्षों में (मझधार में) डूब जाते हैं। आत्मसमर्पण और ईश्वर पर भरोसा हमें हर कठिनाई से पार ले जा सकता है।
मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि भगवान मन में निवास करते हैं, लेकिन उनकी महिमा उन आँखों से देखी जा सकती है जो प्रेम और सम्मान से भरी हों। जिन आँखों में श्रद्धा है, वह भगवान को भी "प्रसन्न" कर लेती हैं, और तब भगवान हमारे मन को अपना बना लेते हैं। ईश्वर को पाने के लिए श्रद्धा और आदरपूर्ण दृष्टिकोण आवश्यक है।
मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं।
ज्यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति अपने गुण-अवगुण का मूल्यांकन नहीं कर पाते। जैसे अगर किसी को जबरदस्ती बाँधा जाए, तो उसकी चेष्टा और भी बढ़ जाती है। उसी प्रकार मूर्ख को जब रोका-टोका जाता है, तो वह और अधिक उद्दंड हो जाता है। मूर्खता का उपचार संभव नहीं; ध्यान रखें कि समझदारी और ज्ञान का मार्ग अपनाएँ।
मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि भगवान ने बेशकीमती मणियों को गहराई में छिपाया और घास, पानी और अन्न जैसे सस्ते और सरल वस्तुओं को हर जगह सुलभ बनाया। इससे स्पष्ट होता है कि राम गरीबों का भला करने वाले हैं। ईश्वर ने जीवन की असली आवश्यकताओं को सभी के लिए सुलभ बनाया है, जिससे उनकी करुणा और दया झलकती है।
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अर्जुन जैसे बलवान योद्धा ने परिस्थितियों के कारण अपने पराक्रम को रोक कर रखा और विराट राज के घर में महिला के वेश में रहे। यह दर्शाता है कि परिस्थितियाँ कभी-कभी सबसे बलवान व्यक्ति को भी झुकने पर मजबूर कर देती हैं। समय और परिस्थिति के अनुसार धैर्य और विनम्रता बनाए रखना सबसे बड़ा गुण है।
पै बूड़े मझधार में, जिनके सिर पर भार॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि जिस व्यक्ति ने अपने जीवन का बोझ भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया, वह जीवन की कठिनाइयों से आसानी से पार हो जाता है। लेकिन जो लोग अपने सिर पर ही हर जिम्मेदारी और अहंकार का बोझ उठाए रखते हैं, वे जीवन के संघर्षों में (मझधार में) डूब जाते हैं। आत्मसमर्पण और ईश्वर पर भरोसा हमें हर कठिनाई से पार ले जा सकता है।
मन से कहाँ रहिम प्रभु, दृग सो कहाँ दिवान।
देखि दृगन जो आदरै, मन तेहि हाथ बिकान॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि भगवान मन में निवास करते हैं, लेकिन उनकी महिमा उन आँखों से देखी जा सकती है जो प्रेम और सम्मान से भरी हों। जिन आँखों में श्रद्धा है, वह भगवान को भी "प्रसन्न" कर लेती हैं, और तब भगवान हमारे मन को अपना बना लेते हैं। ईश्वर को पाने के लिए श्रद्धा और आदरपूर्ण दृष्टिकोण आवश्यक है।
मंदन के मरिहू गये, औगुन गुन न सिराहिं।
ज्यों रहीम बाँधहु बँधे, मराह ह्वै अधिकाहिं॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि मूर्ख व्यक्ति अपने गुण-अवगुण का मूल्यांकन नहीं कर पाते। जैसे अगर किसी को जबरदस्ती बाँधा जाए, तो उसकी चेष्टा और भी बढ़ जाती है। उसी प्रकार मूर्ख को जब रोका-टोका जाता है, तो वह और अधिक उद्दंड हो जाता है। मूर्खता का उपचार संभव नहीं; ध्यान रखें कि समझदारी और ज्ञान का मार्ग अपनाएँ।
मनि मनिक महँगे किये, ससतो तृन जल नाज।
याही ते हम जानियत, राम गरीब निवाज॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि भगवान ने बेशकीमती मणियों को गहराई में छिपाया और घास, पानी और अन्न जैसे सस्ते और सरल वस्तुओं को हर जगह सुलभ बनाया। इससे स्पष्ट होता है कि राम गरीबों का भला करने वाले हैं। ईश्वर ने जीवन की असली आवश्यकताओं को सभी के लिए सुलभ बनाया है, जिससे उनकी करुणा और दया झलकती है।
महि नभ सर पंजर कियो, रहिमन बल अवसेष।
सो अर्जुन बैराट घर, रहे नारि के भेष॥
अर्थ: रहीम कहते हैं कि अर्जुन जैसे बलवान योद्धा ने परिस्थितियों के कारण अपने पराक्रम को रोक कर रखा और विराट राज के घर में महिला के वेश में रहे। यह दर्शाता है कि परिस्थितियाँ कभी-कभी सबसे बलवान व्यक्ति को भी झुकने पर मजबूर कर देती हैं। समय और परिस्थिति के अनुसार धैर्य और विनम्रता बनाए रखना सबसे बड़ा गुण है।
यह भी देखें You May Also Like
पूरा नाम – अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना, (रहीम दास)
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
जन्म – 17 दिसम्बर 1556 ई.
मृत्यु – 1627 ई. (उम्र- 70)
उपलब्धि – कवि,
मुख्य रचनाए – रहीम रत्नावली, रहीम विलास, रहिमन विनोद, रहीम ‘कवितावली, रहिमन चंद्रिका, रहिमन शतक,
रहीम का पूरा नाम अब्दुल रहीम खानखाना था। रहीम मध्यकालीन कवि, सेनापति, प्रशासक, आश्रय दाता, दानवीर कूटनीतिज्ञ, बहु भाषा विद, कला प्रेमी सेनापति एवं विद्वान थे। रहीम के पिता का नाम बैरम खान और माता का नाम सुल्ताना बेगम था। ऐसा कहते हैं कि उनके जन्म के समय उनके पिता की आयु लगभग 60 वर्ष हो चुकी थी और रहीम के जन्म के बाद उनका नामकरण अकबर के द्वारा किया गया था ।
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