रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय हिंदी मीनिंग Rahiman Dhaga Prem Ka Mat Todo Chatkaay Hindi Meaning

रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय हिंदी मीनिंग Rahiman Dhaga Prem Ka Mat Todo Chatkaay Hindi Meaning

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।
टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥
Rahiman Dhaaga Prem Ka, Mat Todo Chatakaay.
Toote Se Phir Na Jude, Jude Gaanth Parinde Na
or
रहिमन धागा प्रेम का, मत तोरो चटकाय।
टूटे पे फिर ना जुरे, जुरे गाँठ परी जाय।।
Rahiman Dhaaga Prem Ka, Mat Toro Chatakaay.
Toote Pe Phir Na Jure, Jure Gaanth Paree Jaay.
 
रहिमन धागा प्रेम का मत तोड़ो चटकाय हिंदी मीनिंग Rahiman Dhaga Prem Ka Mat Todo Chatkaay Hindi Meaning

रहीम के दोहे के शब्दार्थ Word Meaning of Raheem Doha.

  • रहिमन-संत रहीम.
  • धागा - डोर/धागा.
  • प्रेम का- प्रेम / प्यार/स्नेह.
  • मत तोरो - तोड़ो मत.
  • चटकाय-टूट कर बिखर जाना.
  • टूटे पे फिर ना जुरे- टूटने पर दुबारा नहीं जुड़ता है.
  • जुरे गाँठ परी जाय-यदि जोड़ा भी जाए तो गाँठ लग जाती है.
रहीम दोहे का हिंदी मीनिंग Hindi Meaning of Rahim Doha : प्रेम का धागा तोड़ना नहीं चाहिए. एक बार तोड़ने से यह पुनः नहीं जुड़ता है और यदि जुड़े तो इसमें गाँठ पड जाती है. मध्यकालीन सूफी संत रहीम का यह दोहा है जिसमे प्रेम के विषय में बताया गया है की प्रेम का धागा बहुत ही कच्चा होता है. इसे तोड्ना नहीं चाहिए. यदि प्रेम को बरकरार नहीं रखा जाए तो इसमें खटास आ जाती है. प्रेम सहज होता है और नाजुक भी, इसलिए इसे बड़े ही जतन से सहेज कर रखना होता है. प्रेम के अभाव में रिश्ते भी बाँझ हो जाते हैं, इसलिए प्रयत्न करना चाहिए की प्रेम में कोई खटास नहीं आए.

वर्तमान सन्दर्भ में भी रहीम का यह दोहा अत्यंत ही प्रासंगिक है. छोटे से स्वार्थ के कारण रिशों में दूरी आ जाती है. रिश्ते बड़े ही ना नाजुक होते हैं इसलिए बड़े ध्यान से इनको सहेज कर रखना चाहिए, यह इस दोहे का मूल भाव है. (अहीम (अब्दुल रहीम ख़ान-ए-ख़ानाँ ) मध्यकालीन भक्ति धारा के एक प्रमुख कवी हैं. जिन्होंने कर्मकांड और पाखंड का विरोध कर लोगों को जाग्रत किया. यद्यपि वे सूफी विचार धारा के थे (मुस्लिम) लेकिन उन्होंने भारतीय धर्म और रीतिरिवाजों का सदा ही आदर किया और वे सभी धर्मों का आदर करते थे.रहीम ने अवधि और बृजभाषा दोनों में ही अपनी रचनाओं को लिखा और उनकी रचनाएँ, रहीम दोहावली, बरवै, नायिका भेद, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी आदि ग्रंथों में संगृहीत हैं. रहीम ने सोरठा, कवित्त दोहा, बरवै, और सवैया आदि छंदों में अपनी रचाओं को लिखा है.

The thread of love (Prem Ka Dhaga) should not be broken. Once broken, it does not rejoin. If connected/joined, it knots. It does not remain in its original state. This is the couplet of medieval Sufi saint Rahim, in which The subject has been told that the thread of love is very gentle. It should not be broken. If love is not retained, then it becomes sour. Love is easy And also fragile, so it has to be saved with great vigor. In the absence of love, relationships also become sterile, so one should try to avoid any problem in love. In the present context too, this Doha of Rahim is very relevant. Due to small selfishness, distance comes in the relation. Relationships are not very fragile, so with great care Should be saved, this is the core of this couplet. Rahim Ke Pad

रहिमन नीचन संग बसि, लगत कलंक न काहि
दूध कलारिन हाथ लखि, सब समुझाही मद ताहि
Rahiman Neechan Sang Basi, Lagat Kalank Na Kaahi
Doodh Kalaarin Haath Lakhi, Sab Samujhi Mad Taahi


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : - हमें बुरे लोगों की संगती से बचना चाहिए. नीच लोगों की संगती करने पर स्वंय पर ही कलंक लगता है. जैसे शराब बेचने वाला यदि दूध भी बेचने लगे तो भी लोग उसके दूध को शराब ही समझेंगे.

तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम पर काज हित, संपति सँचहि सुजान॥
Taruvar Phal Naveen Khaat Hai, Saravar Piyahi Na Paan.
Kahi Raheem Par Kaaj Hit, Sampati Sanchahi Sujaan Ka


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : -तरुवर स्वंय के फल को नहीं खाते हैं, (वृक्ष स्वंय के फल को ग्रहण नहीं करते हैं ) और सरोवर/नदी स्वंय के पानी/जल को ग्रहण नहीं करते हैं. ऐसे ही सज्जन लोग भी स्वंय के लिए संपत्ति का संग्रह नहीं करते हैं और दूसरों के हित के लिए संपत्ति का संग्रह करते हैं.

रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।
सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥
Rahiman Nij Man Kee Bitha, Man Hee Raakho Goy.
Sunee Athilaihain Log Sab, Baanti Na Laahai Koy


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : -स्वंय के दुःख और पीड़ा को छुपा कर रखना चाहिए, दूसरों को इसके बारे में बताना नहीं चाहिए, क्योंकि लोग आपके दुःख को बाँट नहीं सकते हैं, केवल इसका मजाक ही उड़ाते हैं। भाव है की लोगों के समक्ष अपने दुखों को व्यक्त नहीं करना चाहिए।

एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥
Ekai Saadhe Sab Sadhai, Sab Saadhe Sab Jaay.
Rahiman Moolahin Seenchibo, Phoolai Phala Aghaay


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : - एक बार में एक ही काम हाथ में लेना चाहिए. एक के पूर्ण हो जाने पर बाकी स्वतः ही पूर्ण हो जाते हैं. यह ऐसे ही है जैसे किसी पौधे की जड़ों में पानी डालने/सींचेने से वह फलता फूलता है.

चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।
जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥
Chitrakoot Mein Rami Rahe, Rahiman Avadh-nares.
Ja Par Bipada Padat Hai, So Aavat Yah Des


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : - अवध नरेश (राजा राम) अयोध्या नगरी को छोड़ कर चित्रकूट वन में रह रहे हैं. जिस घोर विपदा पड़ी हो वही ऐसे जंगल में रह सकता है। भाव है की विपदा आने पर राजा राम जी को भी वन वन भटकना पड़ा था।

धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।
उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥
Dhani Raheem Jal Pank Ko Laghu Jiy Pitt Aghaay.
Udadhi Badaee Kaun Hai, Jagat Piaaso Jaay Hai


रहीम के दोहे का हिंदी मीनिंग : -कीचड का थोड़ा सा पानी भी धन्य है क्योंकि उससे कई छोटे मोटे जीव जंतु अपनी प्यास बुझाते हैं. ऐसे में समुद्र की क्या बड़ाई की जाए जहाँ से लोग प्यासे लौट आते है। भाव है की मदद करने वाला हमेशा बड़ा होता है और उस बड़प्पन का कोई फायदा नहीं होता है जो किसी के काम नहीं आए।

अति अनियारे मानौ सान दै सुधारे,
महा विष के विषारे ये करत पर-घात हैं।
ऐसे अपराधी देख अगम अगाधी यहै,
साधना जो साधी हरि हिय में अन्हात हैं॥
बार बार बोरे याते लाल लाल डोरे भये,
तौहू तो ’रहीम’ थोरे बिधि न सकात हैं।
घाइक घनेरे दुखदाइक हैं मेरे नित,
नैन बान तेरे उर बेधि बेधि जात हैं॥

उत्तम जाति है बाह्मनी, देखत चित्त लुभाय।
परम पाप पल में हरत, परसत वाके पाय
रूपरंग रतिराज में, छतरानी इतरान।
मानौ रची बिरंचि पचि, कुसुम कनक में सान
बनियाइनि बनि आइकै, बैठि रूप की हाट।
पेम पेक तन हेरिकै, गरुवै टारति बाट
गरब तराजू करति चख, भौंह मोरि मुसकाति।
डाँड़ी मारति बिरह की, चित चिंता घटि जाति

कमल-दल नैननि की उनमानि।
बिसरत नाहिं सखी मो मन ते मंद मंद मुसकानि॥
यह दसननि दुति चपला हू ते महा चपल चमकानि।
बसुधा की बस करी मधुरता सुधा-पगी बतरानि॥
चढ़ी रहे चित उर बिसाल को मुकुतमाल थहरानि।
नृत्य समय पीताम्बर हू की फहरि फहरि फहरानि॥
अनुदिन श्री बृन्दावन ब्रज ते आवन आवन आनि।
अब ’रहीम’ चित ते न टरति है सकल स्याम की बानि॥

छबि आवन मोहनलाल की।
काछनि काछे कलित मुरलि कर पीत पिछौरी साल की॥
बंक तिलक केसर को कीने दुति मानो बिधु बाल की।
बिसरत नाहिं सखी मो मन ते चितवनि नयन विसाल की॥
नीकी हँसनि अधर सुधरन की छबि छीनी सुमन गुलाल की।
जल सों डारि दियो पुरैन पर डोलनि मुकता माल की॥
आप मोल बिन मोलनि डोलनि बोलनि मदनगोपाल की।
यह सरूप निरखै सोइ जानै इस ’रहीम’ के हाल की॥

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