खेलत में को काको गुसैयां हिंदी अर्थ
खेलत में को काको गुसैयां।
हरि हारे जीते श्रीदामा बरबसहीं कत करत रिसैयां॥
जाति पांति हम तें बड़ नाहीं नाहीं बसत तुम्हारी छैयां।
अति अधिकार जनावत हम पै हैं कछु अधिक तुम्हारे गैयां॥
रुहठि करै तासों को खेलै कहै बैठि जहं तहं सब ग्वैयां।
सूरदास प्रभु कैलो चाहत दांव दियौ करि नंद-दुहैया॥११॥ or
खेलत में को काको गुसैयाँ।
हरि हारे जीते श्रीदामा, बरबसहीं कत करत रिसैयाँ॥
जाति-पाँति हम ते बड़ नाहीं, नाहीं बसत तुम्हारी छैयाँ।
अति अधिकार जनावत यातैं, जातैं अधिक तुम्हारैं गैयाँ!
रुहठि करै तासौं को खेलै, रहे बैठि जहँ-तहँ सब ग्वैयाँ।
सूरदास प्रभु खेल्यौइ चाहत, दाऊँ दियौ करि नंद-दुहैयाँ॥
भावार्थ : कृष्णा जी के सखा कृष्ण जी से कहते हैं की कौन किसका स्वामी है, खेल में सभी समान हैं. क्या हुआ जो तुम ब्रिजराज के प्यारे हो, नन्द कुमार हो ? खेल में सभी समान हैं. तुम खेल में हार गए हो और सुदामा जी जीत गए हैं. तुम क्यों झूठा झगडा करते हो. तुम्हारी जाती हमसे बड़ी नहीं है. हम तुम्हारे संरक्षण में नहीं रहते हैं. क्या हुआ जो तुम्हारे घर पर ज्यादा गायें हैं, तुम हमारे समान ही हो. जब सभी सखा दाव खेलना छोड़ देते हैं तो श्री कृष्ण जी अपनी गलती को स्वीकार कर लेते हैं.
इस पद में सूरदास जी श्रीकृष्ण और उनके सखाओं के बीच हुए नोक झोक का वर्णन करते हैं, जब वे खेल रहे होते हैं। श्रीकृष्ण ने दाँव लगा दिया कि वह सुदामा को खेल में हरा देगा। लेकिन, खेल में सुदामा जीत गए। श्रीकृष्ण को हार का बहुत बुरा लगा और वह गुस्से में आ गए। उन्होंने सुदामा को कहा कि वह झूठ-मूठ दाँव लगा रहा था।
सुदामा ने श्रीकृष्ण को समझाया कि वह झूठ नहीं बोल रहा था। उसने कहा कि वह सच में ही श्रीकृष्ण को हरा देना चाहता था। लेकिन, श्रीकृष्ण नहीं माने और उन्होंने सुदामा से झगड़ा करना शुरू कर दिया।
श्रीकृष्ण के सखाओं ने देखा कि श्रीकृष्ण और सुदामा झगड़ रहे हैं तो वे बीच-बचाव करने आए। उन्होंने श्रीकृष्ण से कहा कि वह झगड़ा क्यों कर रहे हैं? उन्होंने कहा कि खेल में कौन किसका स्वामी है? जाति-पाँति से कोई बड़ा नहीं होता है। श्रीकृष्ण भी ग्वाले ही हैं और वे भी सबके बराबर हैं।
श्रीकृष्ण के सखाओं की बात सुनकर श्रीकृष्ण को बहुत शर्म आई। उन्होंने अपने सखाओं से माफ़ी मांगी और कहा कि वह फिर कभी ऐसा नहीं करेंगे। उन्होंने नंद बाबा की शपथ खाकर कहा कि वह फिर कभी झगड़ा नहीं करेंगे।
इस पद में सूरदास जी श्रीकृष्ण की बाललीलाओं का वर्णन करते हैं। वे बताते हैं कि श्रीकृष्ण कितने भोले और सरल थे। वे कभी-कभी गुस्से में आ जाते थे, लेकिन वे जल्द ही माफ़ी भी मांग लेते थे। यह पद हमें यह भी सिखाता है कि हमें हमेशा शांत रहना चाहिए और झगड़ा नहीं करना चाहिए। झगड़ा करने से केवल नुकसान ही होता है।
शब्दार्थ गुसैयां स्वामी। श्रीदामा श्रीकृष्ण का एक सखा। बरबस हीं जबरदस्ती ही। कत क।ह्यौं। रिसैयां गुस्सा। छैयां छत्र-छायां के नीचे अधीन। रुहठि बेमानी। ग्वैयां सुसखा।
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