कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी अर्थ सहित

 
कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी

कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ ।
लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ ॥

कलि का स्वमी लोभिया, मनसा घरी बधाई ।
दैंहि पईसा ब्याज़ को, लेखां करता जाई ॥

कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार ।
पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार ॥

तीरथ करि-करि जग मुवा, डूंधै पाणी न्हाइ ।
रामहि राम जपतंडां, काल घसीटया जाइ ॥

चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि ।
फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं ॥

कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम ।
कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रम ॥ 

कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ। लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ ॥
अर्थ: कलियुग में लोग लालच, लोभ और मक्कारी में लिप्त हैं, इसलिए सच्चे संतों की संगति दुर्लभ हो गई है।

कलि का स्वमी लोभिया, मनसा घरी बधाई। दैंहि पईसा ब्याज़ को, लेखां करता जाई ॥
अर्थ: कलियुग में स्वामी लोभ के अधीन हैं, और लोग ब्याज पर पैसा देकर अपनी संपत्ति बढ़ाने की कोशिश करते हैं।

कबीर इस संसार कौ, समझाऊँ कै बार। पूँछ जो पकड़ै भेड़ की उतर या चाहे पार ॥
अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि इस संसार को समझाना कठिन है; जैसे भेड़ की पूंछ पकड़ने से वह या तो नीचे गिरती है या पार चली जाती है।

तीरथ करि-करि जग मुवा, डूंधै पाणी न्हाइ। रामहि राम जपतंडां, काल घसीटया जाइ ॥

अर्थ: लोग तीर्थों में स्नान करके भी पापों से मुक्त नहीं होते; राम का नाम जपते हुए समय बीत जाता है।

चतुराई सूवै पढ़ी, सोइ पंजर मांहि। फिरि प्रमोधै आन कौं, आपण समझे नाहिं ॥

अर्थ: जो चतुराई से पढ़ाई करते हैं, वे अपने शरीर में ही फंस जाते हैं और दूसरों को समझाते हैं, पर खुद नहीं समझ पाते।

कबीर मन फूल्या फिरै, करता हूँ मैं घ्रंम। कोटि क्रम सिरि ले चल्या, चेत न देखै भ्रम ॥

अर्थ: कबीर दास जी कहते हैं कि उनका मन भ्रमित है, वे ध्यान करते हैं, लेकिन चेतना नहीं देख पाती।

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Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

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