दरस बिन दूखण लागे नैन लिरिक्स

दरस बिन दूखण लागे नैन लिरिक्स

मीराबाई के इस भजन में, भक्त अपने आराध्य से वियोग के कारण होने वाले गहन दुःख और उनकी पुनः प्राप्ति की तीव्र आकांक्षा को व्यक्त करता है। प्रेम और भक्ति की इस अभिव्यक्ति में, भक्त अपने प्रभु के दर्शन के बिना जीवन को निरर्थक मानता है और उनके बिना किसी भी प्रकार की शांति नहीं पाता।
 
दरस बिन दूखण लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।
दरस बिन दुखन लागे नैन।
जबसे तुम बिछुड़े प्रभु मोरे, कबहुं न पायो चैन।
सबद सुणत मेरी छतियां, कांपै मीठे लागै बैन।
बिरह व्यथा कांसू कहूं सजनी, बह गई करवत ऐन।
कल न परत पल हरि मग जोवत, भई छमासी रैन।
मीरा के प्रभु कब रे मिलोगे, दुख मेटण सुख देन।

दरस बिन दूखण लागे जानिये सरल अर्थ

दरस बिन दूखन लागे नैन।
जब तें तुम बिछुरे पिव प्यारे, कबहुँ न पायो चैन॥


प्रभु के दर्शन के बिना आँखें दुखती हैं। प्रियतम के बिछड़ने के बाद से कभी भी चैन नहीं मिला।

सबद सुनत मेरी छतियाँ काँपै, मीठे लागें बैन।
एक टकटकी पंथ निहारूँ भई छंमासी रैन॥


प्रभु का नाम सुनते ही हृदय काँप उठता है, और उनके शब्द मीठे लगते हैं। उनकी राह देखते हुए रातें छः महीने के समान लंबी प्रतीत होती हैं।

बिरह बिथा कासों कहुँ सजनी, बह गई करवत ऐन।
मीरां के प्रभु कबहो मिलोगे, दुःख मेटन सुख दैन॥


विरह की व्यथा किससे कहूँ, सखी? आँखों से आँसू धाराप्रवाह बह रहे हैं। मीराबाई के प्रभु, कब मिलोगे? दुःख मिटाकर सुख प्रदान करो।

इस भजन में मीराबाई ने अपने आराध्य से मिलन की तीव्र इच्छा और वियोग की वेदना को सरल और आत्मीय भाषा में व्यक्त किया है, जो भक्ति मार्ग में प्रेम और समर्पण की महत्ता को दर्शाता है।
 


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