राजस्थानी लोक गीतों में नायिका का सौंदर्य वर्णन एक महत्वपूर्ण विषय है। नायिका को अक्सर एक सुंदर, आकर्षक, और गुणवान महिला के रूप में चित्रित किया जाता है। राजस्थानी लोक गीतों में नायिका के सौंदर्य का वर्णन करने के लिए अक्सर प्रकृति के रूपों का प्रयोग किया जाता है। उदाहरण के लिए, नायिका को अक्सर चांद, तारे, या फूलों की तरह सुंदर बताया जाता है। नायिका को अक्सर एक सुंदर रूप वाली महिला के रूप में चित्रित किया जाता है। उसके चेहरे की सुंदरता का वर्णन करने के लिए अक्सर शब्दों जैसे "गोरी", "काली", "अनारकली", और "चंद्रमुखी" का प्रयोग किया जाता है। नायिका को अक्सर एक आकर्षक महिला के रूप में चित्रित किया जाता है। उसके शरीर की सुंदरता का वर्णन करने के लिए अक्सर शब्दों जैसे "लम्बी", "पतली", और "मटकती" का प्रयोग किया जाता है। नायिका को अक्सर एक गुणवान महिला के रूप में चित्रित किया जाता है। उसके गुणों का वर्णन करने के लिए अक्सर शब्दों जैसे "सती", "धर्मी", और "विद्वान" का प्रयोग किया जाता है।
ढोला ढोल मजीरा बाजे रे काळी छींट को घाघरो
मारु थारा देस में, ननीपजे तीन रतन, एक ढ़ोलो, एक मारवण, तीजो कसुमन रंग। ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
ऐ, सात कली को घाघरो, कली कली में घेर, पहर बाजारां, रुपया रो होगो ढ़ेर, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे,
चार चोमा सोरती जी, रेल गाँव रो हाट, बेगा आइज्यो साहिबा, मैं जोय रही हूँ बाट, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
ए, डूंगर ऊपर डूंगरी जी,
Rajasthani Songs Lyrics
सोनो घड़े सुनार, या घड़ दे म्हारी बाजणी, कोई पायल री झणकार, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
ए, बारां का बाजार में, कोई बूढ़ो रांधे खीर, दाढ़ी दाढ़ी जल गई, कोई मुछ्या को तक़दीर, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
ढ़ोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
द्वितीय राजस्थानी फोक सांग लिरिक्स ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे, काली छींट का घाघरा नजारे मारे रे, ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे पग पायल में बांध लूं चाँद सितारे रे, ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे, काली छींट का घाघरा नजारे मारे रे।
तन गागर से छलक रहा है गोरी तेरा रूप -2 इस यौवन की चाँदनी और इन नैनों की धूप ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे, काली छींट का घाघरा नजारे मारे रे।
मैं दीवानी तब ये जानी क्या होता है प्यार मन के द्वारे पर जब आया कोई सजीला यार ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे, काली छींट का घाघरा नजारे मारे रे।
प्रेमनगर का जोगी हूँ मैं थाम ले मेरा हाथ अरे चाहे जिधर ले जाओ जोगी अब जोगन है साथ ओ ढोला ढोल मंजीरा बाजे रे, काली छींट का घाघरा नजारे मारे रे।
राजस्थानी लोक संगीत संगीत का एक पारंपरिक रूप है जो भारतीय राज्य राजस्थान से सबंधित है।। राजस्थानी फोक सांग की कुछ मुख्य विशेषताएं हैं राजस्थानी लोक संगीत की विशेषता एक मजबूत, लयबद्ध ताल है जो ढोलक और मंजीरा जैसे पारंपरिक वाद्य यंत्रों पर बजाई जाती है।
माधुर्य: माधुर्य आमतौर पर सरल और दोहराव वाला होता है, और अक्सर एक संगीत विषय पर आधारित होता है। इसे सारंगी, हारमोनियम और बांसुरी जैसे वाद्य यंत्रों पर बजाया जाता है।
गीत: राजस्थानी लोक गीतों के बोल अक्सर प्रेम, शौर्य और देवी-देवताओं के प्रति समर्पण के विषयों के इर्द-गिर्द घूमते हैं। वे आम तौर पर राजस्थानी भाषा में गाए जाते हैं, हालांकि कुछ गाने हिंदी या पंजाबी में भी गाए जा सकते हैं।
सांस्कृतिक महत्व: राजस्थानी लोक संगीत का एक गहरा सांस्कृतिक महत्व है, और इसे अक्सर शादियों, त्योहारों और अन्य विशेष अवसरों के दौरान प्रदर्शित किया जाता है। यह राज्य की सांस्कृतिक विरासत का भी एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, और अक्सर पीढ़ी-दर-पीढ़ी इसे पारित किया जाता है।
प्रभाव: राजस्थानी लोक संगीत राजपूतों, सूफियों और रेगिस्तान के खानाबदोश समुदायों सहित विभिन्न संस्कृतियों और परंपराओं से प्रभावित रहा है। इन प्रभावों को संगीत की विभिन्न शैलियों और विविधताओं में सुना जा सकता है।
कुल मिलाकर, राजस्थानी लोक संगीत संगीत का एक जीवंत और अभिव्यंजक रूप है जो राजस्थान की संस्कृति और इतिहास में गहराई से निहित है।
ढोला ढोल मजीरा बाजे रे, काळी छींट को घाघरो, निजारा मारे रे, ढोला ढोल मजीरा बाजे रे।
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