गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र एक बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है जो भगवान विष्णु की महिमा का चित्रण करता है और साथ ही भगवान् की कृपा से गजेन्द्र को मोक्ष प्राप्त होने की कथा कहता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से जातक के सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं और भक्त को मोक्ष का मार्ग अग्रसर होता है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने का समय गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सबसे अच्छा समय सुबह जल्दी या शाम को होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करना और पूजा-पाठ करना चाहिए।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने की विधि गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लिए सबसे पहले मंदिर या पूजा-स्थल पर जाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। फिर दीपक और धूप जलाएं और भगवान विष्णु को नमस्कार करें। उसके बाद गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ शुरू करें
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र क्या है, गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र के पाठ के लाभ / फायदे
गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत वस्तुतः विष्णु जी की सहायता मांगने का जाप है। गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत का नियमित पाठ करने से श्री विष्णु जी स्वंय मदद के लिए आते हैं। भगवन विष्णु जी साधक की उसी तरह से मदद करते हैं जैसे की उन्होंने गजेंद्र नाम के गज को भयानक मगरमच्छ के मुँह से निकला था। श्री मद्भागवत में इस का विवरण प्राप्त होता है। गजेंद्र ने ग्राह के मुख से बचने के लिए भगवन विष्णु जी को याद किया था और भगवान् विष्णु जी ने उसे मुक्त करवाया था। गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत के लाभ के बारे में माहात्म्य है की ये सभी पापों का नाशक है।
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र के लाभ
गजेंद्र मोक्ष स्त्रोत के कई लाभ हैं। इसका नित्य जाप करने से व्यक्ति के मुक्ति का मार्ग खुलता है और सभी संकट दूर होते हैं। इसके जाप से व्यक्ति विकट संकट से मुक्ति प्राप्त करता है। इसके जाप से कर्ज और पित्तर दोष शांत होता है। भगवन विष्णु जी के चरणोंमें घी का दीपक प्रज्वलित कर इसका जाप करने से लाभ प्राप्त होता है। इस स्त्रोत का जाप सूर्योदय सुद्ध होकरपूर्व दिशा की और मुँह करके किया जाना चाहिए। कर्ज मुक्ति के लिए इसका जाप करने से बड़े से बड़े प्रकार के ऋण से मुक्ति मिलती है।
गजेन्द्र मोक्ष का परिचय
गजेन्द्र मोक्ष भगवद पुराण की कथा है। गजेंद्र मोक्ष में भगवान विष्णु हाथी गजेंद्र को मगरमच्छ मकर के चंगुल से बचाने के लिए पृथ्वी पर आए, और गजेंद्र को मोक्ष दिया। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र इस मंत्र के विश्व पठन में बहुत शक्तिशाली स्तोत्र है जो आपको अवांछित स्थिति या कठिनाइयों से बाहर निकालता है। कहानी भागवत पुराण के 8 वें भाग में दिखाई देती है और राजा परीक्षित को श्री सूका द्वारा सुनाई जाती है। भगवान श्री हरी को प्रसन्न करने का श्रेष्ठ स्त्रोत/ गजेंद्र स्तवन से ऋण मुक्ति, शत्रु से छुटकारा और दुर्भाग्य का नाश होता है। गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का लाभ पाने के लिए व्यक्ति को गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ सूर्योदय से पूर्व स्नान करके और पूर्व दिशा में मुख करके करना चाहिए ! जिस भी व्यक्ति के कर्ज बहुत हो गया और उतरने का नाम नही ले रहा है तो उनके लिए गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र बहुत लाभकारी रहता हैं ! जिस भी व्यक्ति को आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ता है उनके लिए भी गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्र पाठ करना लाभकारी रहता हैं ! जो भी व्यक्ति किसी भी शुभ दिन में शुभ समय पर या स्वार्थ सिद्धि योग या अमृत सिद्धि योग में प्रातःकाल स्नान करके भगवान श्री विष्णु जी के सामने पूर्व मुखी होकर कुश के आसन पर बैठकर धूप-दीप आरती के उपरांत गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र-श्रीमद्भागवत का पाठ करके भगवान श्री विष्णु जी की आरती कर हवन आदि करने से व्यक्ति को कर्ज के तनाव से मुक्ति मिलती हैं
गजेन्द्र मोक्ष का पाठ कब और कैसे करना चाहिए?
गजेन्द्र मोक्ष स्तोत्रं का पाठ सूर्योदय से पहले ब्रह्म मुहूर्त में करना श्रेष्ठ माना जाता है।
गजेंद्र मोक्ष की कहानी क्या है?
संक्षिप्त में बताएं तो गजेन्द्र को संकट में देखकर भगवान विष्णु गरुड़ की पीठ से कूदकर तहत गजेन्द्र के साथ ग्राह को भी सरोवर से बाहर खींच लाए थे। तुरंत अपने सुदर्शन चक्र से ग्राह का मुंह फाड़कर गजेन्द्र को मुक्त किया था। ब्रह्मादि देवगण श्री हरि की प्रशंसा करते हुए उनके ऊपर स्वर्गिक सुमनों की वृष्टि करने लगे।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का महत्व गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र एक बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन करता है और उनकी कृपा से गजेन्द्र को मोक्ष प्राप्त होने की कथा कहता है। माना जाता है कि इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं और भक्त को मोक्ष की प्राप्ति होती है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लाभ
इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी प्रकार के संकट दूर होते हैं।
यह भक्त को मोक्ष की प्राप्ति में मदद करता है।
यह भक्त को मानसिक शांति और समृद्धि प्रदान करता है।
यह भक्त को भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त करने में मदद करता है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने का समय
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ किसी भी समय किया जा सकता है, लेकिन सबसे अच्छा समय सुबह जल्दी या शाम को होता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से पहले स्नान करना और पूजा-पाठ करना चाहिए।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने की विधि
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लिए सबसे पहले मंदिर या पूजा-स्थल पर जाकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें। फिर दीपक और धूप जलाएं और भगवान विष्णु को नमस्कार करें। उसके बाद गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ शुरू करें।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के श्लोक
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र में कुल 33 श्लोक हैं। इन श्लोकों में भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन किया गया है और उनकी कृपा से गजेन्द्र को मोक्ष प्राप्त होने की कथा कही गई है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लिए प्रार्थना
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लिए सबसे पहले निम्नलिखित प्रार्थना करें: हे भगवान विष्णु, आप ही समस्त सृष्टि के पालनहार हैं। आप ही सभी दुखों से मुक्ति देने वाले हैं। आप ही मोक्ष के मार्ग को दिखाने वाले हैं। हे भगवान, मैं आपकी शरण में आया हूं। कृपया मुझे अपने आशीर्वाद से संकटों से मुक्त कर दें और मुझे मोक्ष प्रदान करें।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का गायन
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का गायन भी किया जाता है। गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र के कई भजन और गायन हैं। इन भजनों और गीतों को सुनने और गाने से भी भक्त को लाभ होता है।
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का महत्व
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र एक बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भक्तों को सभी प्रकार के संकटों से मुक्ति दिलाने और मोक्ष प्राप्त करने में मदद करता है। कर्ज से मुक्ति पाने के लिए गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का सूर्योदय से पूर्व प्रतिदिन पाठ करना चाहिए। यह एक अत्यंत प्रभावी उपाय है जिससे बड़े से बड़े कर्ज भी जल्दी उतर जाता है। गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र में भगवान विष्णु की महिमा का वर्णन किया गया है। भगवान विष्णु को कर्ज से मुक्ति देने वाला माना जाता है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है और वह भक्त के कर्ज को उतारने में मदद करते हैं।
गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनानी चाहिए:
सबसे पहले स्नान आदि से निवृत्त होकर भगवान विष्णु की मूर्ति या चित्र के सामने बैठें।
फिर दीपक और धूप जलाकर भगवान विष्णु को नमस्कार करें।
उसके बाद गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का पाठ करें।
स्तोत्र का पाठ करते समय मन में भगवान विष्णु के प्रति पूर्ण श्रद्धा और भक्ति रखें।
गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को निम्नलिखित लाभ होते हैं:
कर्ज से मुक्ति मिलती है।
आर्थिक स्थिति में सुधार होता है।
मानसिक शांति और सुख प्राप्त होता है।
भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होती है।
यदि आप कर्ज से परेशान हैं तो गजेन्द्र-मोक्ष स्तोत्र का पाठ करने से आपको अवश्य ही लाभ मिलेगा।
आइये विस्तार से इसका अर्थ जान लेते हैं -
गजेंद्र मोक्ष स्तोत्र का अत्यधिक महत्व हिंदू धर्म में है और इसे श्रीमद्भागवत गीता के तीसरे अध्याय में पढ़ा जाता है। यह स्तोत्र भगवान विष्णु की भक्ति को समर्पित है और जीवन के कठिनाइयों से मुक्ति दिलाने के लिए माना जाता है। इसमें गजेंद्र, जो एक हाथी था, और एक मगरमच्छ के बीच के संघर्ष का वर्णन किया गया है, जिसमें गजेंद्र भगवान विष्णु की शरण में आता है और उनकी कृपा से मुक्ति प्राप्त करता है।
गजेंद्र के प्रकट होने का दृश्य और उसकी भक्ति की शक्ति इस स्तोत्र के माध्यम से दर्शाई जाती है। गजेंद्र के स्तवन में भगवान विष्णु की अनंत शक्तियों, स्वरूपों और गुणों का वर्णन है। यह स्तोत्र उन दिव्य गुणों की सराहना करता है, जो भगवान विष्णु में विद्यमान हैं, जैसे उनकी निर्मलता, करुणा, और सृष्टि का नियंत्रण।
गजेंद्र के संघर्ष के बाद, भगवान विष्णु ने उसे अपनी कृपा से मोक्ष प्रदान किया, जो जीवन के अंधकार से मुक्ति का प्रतीक है। यह स्तोत्र भक्तों को यह समझाता है कि अगर कोई सच्चे हृदय से भगवान की शरण में आता है, तो उसे सभी प्रकार के कष्टों से मुक्ति मिल सकती है।
श्री गजेन्द्र कृत भगवान स्तुति - सरल हिंदी में
श्री शुकदेव जी कहते हैं: गजेंद्र ने अपने मन को एकाग्र करके, हृदय में भगवान का ध्यान लगाया और पिछले जन्म में सीखे गए सर्वोच्च मंत्र का जाप शुरू किया।
ॐ नमो भगवते तस्मै... गजेंद्र ने कहा: "जिस भगवान के कारण हमारा शरीर और मन चेतना से भरा है, और जो परम शक्तिशाली हैं, मैं उस देवता का स्मरण करता हूं।"
यस्मिन्निदं यतश्चेदं... "जिसने इस संसार को बनाया और जो इससे परे हैं, मैं उस स्वयंभू भगवान की शरण लेता हूं।"
यः स्वात्मनीदं निजमाययार्पितं... "भगवान, जो अपनी माया से सृष्टि को बनाते और समाप्त करते हैं, और फिर भी उससे अछूते रहते हैं, वे हमारी रक्षा करें।"
कालेन पंचत्वमितेषु... "जब समय के साथ सब कुछ नष्ट हो जाता है, और केवल घोर अंधकार बचता है, तब भी जो भगवान अपनी महिमा में प्रकाशित रहते हैं, वे हमारी रक्षा करें।"
न यस्य देवा ऋषयः... "जैसे नाटक में अभिनेता को पहचानना कठिन होता है, वैसे ही भगवान का स्वरूप देवता और ऋषि भी नहीं जान पाते। ऐसे भगवान मेरी रक्षा करें।"
दिदृक्षवो यस्य पदं... "जो साधु-मुनि, वनों में तप करके, भगवान के दर्शन की इच्छा करते हैं, वही भगवान मेरी गति हैं।"
न विद्यते यस्य न जन्म... "जिनका न जन्म है, न कर्म, और जो निर्गुण हैं, फिर भी संसार की रचना करते हैं, ऐसे भगवान को प्रणाम।"
तस्मै नमः परेशाय... "मैं उन अनंत शक्ति वाले भगवान को बारंबार प्रणाम करता हूं, जिनके रूप और कार्य आश्चर्यजनक हैं।"
नम आत्म प्रदीपाय... "जो स्वयं प्रकाशित हैं, और वाणी, मन और इंद्रियों से परे हैं, उन्हें मेरा प्रणाम।"
सत्त्वेन प्रतिलभ्याय... "जो केवल सत्त्वगुण के माध्यम से प्राप्त होते हैं, और जो मोक्ष का सुख देते हैं, उन्हें प्रणाम।"
नमः शान्ताय घोराय... "जो शांत हैं, रजोगुण से क्रोधी और तमोगुण से मोह में भी दिखते हैं, ऐसे भगवान को प्रणाम।"
क्षेत्रज्ञाय नमस्तुभ्यं... "जो सब जीवों के ज्ञाता और साक्षी हैं, तथा जो प्रकृति के मूल कारण हैं, उन्हें मेरा प्रणाम।"
सर्वेन्द्रियगुणद्रष्ट्रे... "जो सभी इंद्रियों और उनके विषयों को जानते हैं, और अविद्या से भी परे हैं, उन्हें प्रणाम।"
नमो नमस्ते खिल कारणाय... "जो सभी के कारण हैं, फिर भी स्वयं बिना कारण हैं, उन्हें बारंबार प्रणाम।"
मादृक्प्रपन्नपशु... "जिन्होंने मुझे जैसी आत्मा को भी शरण दी, वे करुणामय भगवान मुझे मुक्ति दें।"
एकान्तिनो यस्य... "जो अपने भक्तों के आनंद का स्रोत हैं और जिनका चरित्र मंगलमय है, वे भगवान मेरी रक्षा करें।"
तमक्षरं ब्रह्म परं... "जो अनंत, अजन्मा, और सबके लिए प्रकाश स्तंभ हैं, मैं उनकी स्तुति करता हूं।"
यस्य ब्रह्मादयो... "जिनकी छोटी सी शक्ति से ब्रह्मा, देवता, और सारा जगत बना है, ऐसे भगवान को प्रणाम।"
यथार्चिषोग्नेः सवितुर्गभस्तयोः... जिस प्रकार अग्नि की ज्वालाएं और सूर्य की किरणें बाहर निकलकर बार-बार अपने कारण में समाहित हो जाती हैं, उसी प्रकार बुद्धि, मन, इंद्रियां, और शरीर के निर्माण हेतु जिन गुणों का प्रवाह होता है, वे सभी अपने मूल कारण परमात्मा में वापस समाहित हो जाते हैं।
स वै न देवासुरमर्त्यतिर्यंग... भगवान न तो देवता हैं, न असुर, न मनुष्य और न किसी अन्य योनि के जीव। वे न स्त्री हैं, न पुरुष, न नपुंसक। वे न गुण, न कर्म, न कार्य, और न कारण हैं। सभी योनियों और सीमाओं का निषेध करने पर जो शेष रह जाता है, वही उनका वास्तविक स्वरूप है। ऐसे प्रभु को मेरा प्रणाम, वे मेरा कल्याण करें।
जिजीविषे नाहमिहामुया... अब मैं मगरमच्छ के चंगुल से मुक्त होने के बाद इस शरीर के साथ जीना नहीं चाहता। कारण यह है कि अज्ञानता से ढके इस शरीर का कोई उपयोग नहीं। मैं उस आत्मज्योति को प्राप्त करना चाहता हूँ जो काल के प्रभाव से नष्ट नहीं होती और अज्ञान के आवरण को दूर करके मोक्ष प्रदान करती है।
सोऽहं विश्वसृजं विश्वम... मैं उस भगवान की शरण में जाता हूँ, जो संसार के सृजनकर्ता, संसार रूप में प्रकट, फिर भी संसार से परे, अजन्मा, सर्वव्यापी, और सर्वोच्च अवस्था में स्थित हैं। वे ही ब्रह्म हैं, और मैं उनकी आराधना करता हूँ।
योगरन्धित कर्माणो... वे प्रभु, जिन्होंने योग की शक्ति से सभी कर्मों को समाप्त कर दिया है, और जिनका ध्यान योगी अपने शुद्ध हृदय में करते हैं, ऐसे योगेश्वर को मेरा प्रणाम है।
नमो नमस्तुभ्यमसह्यवेग... हे भगवान, आपकी त्रिगुणी शक्तियाँ, राग और रूप असीमित हैं। आपकी इंद्रियां समस्त विषयों में व्याप्त हैं, और आपके मार्ग का अनुसरण करना कठिन है। ऐसे शरणागत-पालक और अपार शक्तिशाली प्रभु को मेरा बारंबार प्रणाम।
नायं वेद स्वमात्मानं... वह भगवान, जिनके स्वरूप को अज्ञान के कारण नहीं समझा जा सकता, और जिनकी महिमा अपार है, उनकी शरण में जाता हूँ।
श्री शुकदेव उवाच... श्री शुकदेव जी कहते हैं कि जब ब्रह्मा और अन्य देवता, जो विभिन्न विग्रहों के रूप को अपना मानते थे, गजराज की प्रार्थना सुनकर भी नहीं आए, तब साक्षात भगवान विष्णु, जो सभी का आत्मस्वरूप हैं, वहां प्रकट हुए।
तं तद्वदार्त्तमुपलभ्य... गजराज की करुण प्रार्थना सुनकर और उसकी दुर्दशा देखकर, भगवान विष्णु गरुड़ पर सवार होकर अपने चक्र के साथ तुरंत उस स्थान पर पहुंचे।
सोऽन्तस्सरस्युरुबलेन... मगरमच्छ के चंगुल में फंसे हाथी ने भगवान विष्णु को आसमान में आते देखा। उसने अपनी सूंड़ में रखे कमल को उठाकर भगवान पर चढ़ाते हुए उनकी स्तुति की।
तं वीक्ष्य पीडितमजः... दुखी गजराज को देखकर भगवान विष्णु गरुड़ से उतरकर जल में गए। उन्होंने अपने चक्र से मगरमच्छ का वध किया और हाथी को उस पीड़ा से मुक्त किया।
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