गणपति अथर्वशीर्ष Ganpati Atharvashirsha in Hindi Lyrics स्तोत्र संग्रह | संस्कृत-हिंदी स्त्रोत | स्त्रोत लिरिक्स हिन्दी
श्री गणेश अथर्वशीर्ष के पाठ से पहले शांति पाठ किया जाना चाहिए।
॥ शान्ति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम् ।1।
ऋतं वच्मि,।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं,। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं, त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।5।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक,।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।6।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदंती प्रचोद्यात।।
एकदंत चतुर्हस्तं पारामंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।।8।।
भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। 9।।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रथमपत्तये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।
श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।10।।
॥ शान्ति पाठ ॥
ॐ भद्रं कर्णेभिः शृणुयाम देवाः । भद्रं पश्येमाक्षभिर्यजत्राः ॥
स्थिरैरङ्गैस्तुष्टुवांसस्तनूभिः । व्यशेम देवहितं यदायुः ॥
ॐ स्वस्ति न इन्द्रो वृद्धश्रवाः । स्वस्ति नः पूषा विश्ववेदाः ॥
स्वस्तिनस्तार्क्ष्यो अरिष्टनेमिः । स्वस्ति नो बृहस्पतिर्दधातु ॥
ॐ तन्मामवतु तद् वक्तारमवतु अवतु माम् अवतु वक्तारम्
ॐ शांतिः । शांतिः ॥ शांतिः॥।
गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम् ।1।
ऋतं वच्मि,।। सत्यं वच्मि।।
अव त्वं मां।। अव वक्तारं।।
अव श्रोतारं,। अवदातारं।।
अव धातारम अवानूचानमवशिष्यं।।
अव पश्चातात्।। अवं पुरस्तात्।।
अवोत्तरातात्।। अव दक्षिणात्तात्।।
अव चोर्ध्वात्तात।। अवाधरात्तात।।
सर्वतो मां पाहिपाहि समंतात्।।3।।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं चिन्मय।
त्वं वाङग्मयचस्त्वं ब्रह्ममय:।।
त्वं सच्चिदानंदा द्वितियोऽसि।
त्वं प्रत्यक्षं ब्रह्मासि।
त्वं ज्ञानमयो विज्ञानमयोऽसि।4।
सर्व जगदिदं त्वत्तो जायते।
सर्व जगदिदं, त्वत्तस्तिष्ठति।
सर्व जगदिदं त्वयि लयमेष्यति।।
सर्व जगदिदं त्वयि प्रत्येति।।
त्वं भूमिरापोनलोऽनिलो नभ:।।
त्वं चत्वारिवाक्पदानी।।5।।
त्वं गुणयत्रयातीत: त्वमवस्थात्रयातीत:।
त्वं देहत्रयातीत: त्वं कालत्रयातीत:।
त्वं मूलाधार स्थितोऽसि नित्यं।
त्वं शक्ति त्रयात्मक,।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यम्।
त्वं शक्तित्रयात्मक:।।
त्वां योगिनो ध्यायंति नित्यं।
त्वं ब्रह्मा त्वं विष्णुस्त्वं रुद्रस्त्वं इन्द्रस्त्वं अग्निस्त्वं।
वायुस्त्वं सूर्यस्त्वं चंद्रमास्त्वं ब्रह्मभूर्भुव: स्वरोम्।।6।।
गणादिं पूर्वमुच्चार्य वर्णादिं तदनंतरं।।
अनुस्वार: परतर:।। अर्धेन्दुलसितं।।
तारेण ऋद्धं।। एतत्तव मनुस्वरूपं।।
गकार: पूर्व रूपं अकारो मध्यरूपं।
अनुस्वारश्चान्त्य रूपं।। बिन्दुरूत्तर रूपं।।
नाद: संधानं।। संहिता संधि: सैषा गणेश विद्या।।
गणक ऋषि: निचृद्रायत्रीछंद:।। गणपति देवता।।
ॐ गं गणपतये नम:।।7।।
एकदंताय विद्महे। वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नोदंती प्रचोद्यात।।
एकदंत चतुर्हस्तं पारामंकुशधारिणम्।।
रदं च वरदं च हस्तै र्विभ्राणं मूषक ध्वजम्।।
रक्तं लम्बोदरं शूर्पकर्णकं रक्तवाससम्।।
रक्त गंधाऽनुलिप्तागं रक्तपुष्पै सुपूजितम्।।8।।
भक्तानुकंपिन देवं जगत्कारणम्च्युतम्।।
आविर्भूतं च सृष्टयादौ प्रकृतै: पुरुषात्परम।।
एवं ध्यायति यो नित्यं स योगी योगिनांवर:।। 9।।
नमो व्रातपतये नमो गणपतये।। नम: प्रथमपत्तये।।
नमस्तेऽस्तु लंबोदारायैकदंताय विघ्ननाशिने शिव सुताय।
श्री वरदमूर्तये नमोनम:।।10।।
गणेश अथर्वशीर्ष: श्री गणेश जी पूजा धन धान्य, समृद्धि, मान सम्मान और सभी सुख सुविधाओं के लिए किया जाता है। प्रत्येक शुभ कार्य के लिए सर्प्रथम गणेश पूजा की जाती है। नित्य प्रतिदिन श्री गणेश की पूजा अत्यंत लाभकारी मानी जाती है। श्री गणेश जी के कई प्रकार के श्लोक और मंत्र हैं जिनके माध्यम से श्री गणेश जी की पूजा अर्चना की जाती है लेकिन "श्री गणपति अथर्वशीर्ष" का अपना महत्त्व है। प्रतिदिन श्री गणपति अथर्वशीर्ष की आराधना से श्री गणेश जी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। श्री गणपति अथर्वशीस का पाठ प्रतिदिन सुद्ध होकर किया जाना चाहिए।
क्या है श्री गणेश अथर्वशीर्ष और इसके लाभ
वैसे तो श्री गणेश जी को प्रशन्न करने के कई तरह के मंत्र और आरती आदि हैं लेकिन उन सभी में श्री गणेश अथर्वशीर्ष प्रमुख है। श्री गणेश अथर्वशीर्ष श्री गणेश जी की वैदिक स्तुति है। इसमें श्री गणेश जी के आह्वान से लेकर ध्यान और शुभ फल आदि का वर्णन है। यह व्यक्ति के धार्मिक जीवन के कष्टों को दूर करने के साथ साथ व्यावहारिक जीवन में आने वाले संकटो को भी दूर करता है। श्री गणेश जन्मोत्सव के समय इसका पाठ करने से विशेष लाभ मिलता है।
यदि आपकी कुंडली में बुध गृह का नकारात्मक प्रभाव है, जीवन में धन धान्य का अभाव है, क्रूर गृह बनते कार्य बिगाड़ रहे हैं, व्यापार में लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही है, आर्थिक समस्याएं घर कर गयी हैं तो बुध गृह जाप, गणेश जी के मंत्र पाठ के साथ ही बुधवार के रोज व्रत से लाभ होता है। यह लाभ और भी बढ़ जाता है यदि गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर व्रत किया जाय। समस्त ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को गणेश जी हर लेते हैं इसलिए ही श्री गणेश जी को विघ्न हर्ता कहा जाता है।
यदि आपकी कुंडली में बुध गृह का नकारात्मक प्रभाव है, जीवन में धन धान्य का अभाव है, क्रूर गृह बनते कार्य बिगाड़ रहे हैं, व्यापार में लाभ की प्राप्ति नहीं हो रही है, आर्थिक समस्याएं घर कर गयी हैं तो बुध गृह जाप, गणेश जी के मंत्र पाठ के साथ ही बुधवार के रोज व्रत से लाभ होता है। यह लाभ और भी बढ़ जाता है यदि गणेश चतुर्थी के पावन अवसर पर व्रत किया जाय। समस्त ग्रहों के नकारात्मक प्रभावों को गणेश जी हर लेते हैं इसलिए ही श्री गणेश जी को विघ्न हर्ता कहा जाता है।
गणेश अथर्वशीर्ष (Ganpati Atharvashirsha) क्या है ?
गणेश अथर्वशीर्ष भगवान श्री गणेश जी की स्तुति है, यह अराधना अत्यंत ही मंगलकारी और पावन मानी जाती है।आपको बोध होना चाहिए की अथर्वशीर्ष शब्द का अर्थ होता है, अथर्ववेद का शिरोभाग चार वेद के चार भाग होते हैं यथा संहिता, ब्राह्मण, आरण्यक तथा उपनिषद्। जिन्हें श्रुति कहा जाता है। अधिकांश उपनिषद् प्रायः आरण्यक भाग के अंश हैं 'अथर्वशीर्ष' उपनिषद् ही होते हैं और अथर्ववेद के अन्त में होते हैं।
- गणेश अथर्वशीर्ष के नित्य पाठ सफलता, समृद्धि और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
- जातक के जीवन में आने वाली समस्त बाधाओं को दूर होती हैं।
- रिद्धि सिद्धि और जीवन वैभव की प्राप्ति होती है।
- गणपति अथर्वशीर्ष का नित्य पाठ करे जिससे आपके शरीर की आंतरिक शुद्धि होगी और शरीर में सकारात्मक ऊर्जा का संचार भी होगा।
- गणपति अथर्वशीर्ष के पाठ से मानसिक शांति की प्राप्ति होती है।
- जीवन में आने वाली बाधाएं श्री गणेश जी भगवान की कृपा से दूर होती हैं।
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ कैसे करें ?
गणपति अथर्वशीर्ष का पाठ करने के लिए शारीरिक शुद्धि के उपरान्त शांत स्थान पर आसन पर बैठकर पाठ करें। संकष्टी चतुर्थी के दिन शाम के समय 21 बार ये पाठ करने इसका फल अधिक प्राप्त होता है।गणपति अथर्वशीर्ष का जाप कितनी बार करना है?
श्री गणेश जी की कृपा प्राप्त करने के लिए गणपति अथर्वशीर्ष का 11 या 21 बार पाठ करना श्रेष्ठ होता है।गणपति अथर्वशीर्ष
ॐ नमस्ते गणपतये।
त्वमेव प्रत्यक्षं तत्वमसि।।
त्वमेव केवलं कर्त्ताऽसि।
त्वमेव केवलं धर्तासि।।
त्वमेव केवलं हर्ताऽसि।
त्वमेव सर्वं खल्विदं ब्रह्मासि।।
त्वं साक्षादत्मासि नित्यम् ।1।
Ganpati Atharvashirsha गणपती अथर्वशीर्ष - Suresh Wadkar | Ganesh Songs, Bhakti Song | Atharvashirsha
श्री गणपति अथर्वशीर्ष के रचियता कौन हैं ?
श्री गणपति अथर्वशीर्ष को अथर्व ऋषि ने लिखा था।
गणेश को अथर्व क्यों कहा जाता है?
भगवान गणेश अथर्व कहा जाता है क्योंकि वे अत्यंत ही दूरदर्शिता और शक्तिशाली हैं। गणपति अथर्वशीर्ष एक बहुत ही पवित्र और शक्तिशाली स्तोत्र है। यह स्तोत्र भगवान गणेश की महिमा का वर्णन करता है और उनके आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए एक मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है। गणपति अथर्वशीर्ष में 10 ऋचाएं हैं। प्रत्येक ऋचा में भगवान गणेश के एक अलग गुण या विशेषता का वर्णन किया गया है। स्तोत्र का पाठ करने से भक्त को भगवान गणेश की कृपा प्राप्त होती है और वह सभी प्रकार के कष्टों और बाधाओं से मुक्त हो जाता है।आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं
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