कबीर साहेब के दोहों का अर्थ हिंदी अर्थ सहित

कबीर साहेब के दोहों का अर्थ हिंदी अर्थ सहित

कबीर के दोहे हिंदी में Kabir Dohe in Hindi दोहे दोहावली कबीर दास के दोहे हिन्दी

कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
कबीरा ते नर अंध है, गुरु को कहते और। हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर॥
अर्थ: जो व्यक्ति गुरु की महिमा को नहीं समझता, वह अंधा है। यदि भगवान नाराज हों, तो गुरु के पास शरण है; लेकिन यदि गुरु नाराज हों, तो कोई ठिकाना नहीं।

माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर। आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर॥
अर्थ: धन-दौलत की माया और मन की इच्छाएं कभी नहीं मरतीं। शरीर मर जाता है, लेकिन आशाएं और तृष्णाएं जीवित रहती हैं, यह कबीर दास जी का कहना है।

रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय। हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय॥
अर्थ: रात सोते हुए और दिन खाते हुए गंवा दिया। यह अनमोल जीवन हीरे के समान था, जो अब तुच्छ चीज़ों में बदल गया।

दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय॥
अर्थ: दुःख में सभी भगवान का स्मरण करते हैं, लेकिन सुख में कोई नहीं करता। जो सुख में भगवान का स्मरण करता है, उसके लिए दुःख का कोई स्थान नहीं होता।

बड़ा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नहीं फल लागे अति दूर॥
अर्थ: बड़ा होने का क्या लाभ, जैसे खजूर का पेड़। वह राहगीरों को छाया नहीं देता और फल भी बहुत दूर होते हैं।

साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय। सार-सार को गहि रहै थोथा देई उड़ाय॥
अर्थ: सज्जन व्यक्ति ऐसा होना चाहिए, जैसे सूप। वह अच्छे को ग्रहण करता है और बुरे को उड़ा देता है।

तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय। कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय॥
अर्थ: जो तिनका पाँव के नीचे होता है, उसकी निंदा कभी नहीं करनी चाहिए। कभी वह उड़कर आँख में चला जाता है, जिससे पीड़ा होती है।

इन दोहों के माध्यम से कबीर साहेब ने गुरु की महिमा, भक्ति के महत्व और जीवन के सत्य को सरल भाषा में प्रस्तुत किया है।
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