क्लेशहर नामामृत स्तोत्र हिन्दी अर्थ सहित
श्रीकेशवं क्लेशहरं वरेण्यमानन्दरूपं परमाथमेव ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। १ ।।
अर्थात्—भगवान केशव जो दयालु हैं सबका क्लेश हरने वाले, सबसे श्रेष्ठ, आनन्दरूप और परमार्थ-तत्त्व से युक्त हैं । उनका नामरूप अमृत ही सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
श्रीपद्मनाभं कमलेक्षणं च आधाररूपं जगतां महेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। २ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु की नाभि से कमल प्रकट हुआ है । उनके नेत्र कमल के समान सुन्दर हैं । वे जगत के आधारभूत और महेश्वर हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
पापापहं व्याधि विनाशरूपमानन्ददं दानवदैत्य नाशनम्।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ३ ।।
अर्थात्—भगवान विष्णु पापों का नाश करके आनन्द प्रदान करते हैं । वे दानवों और दैत्यों का संहार करने वाले हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
यज्ञांगरूपं च रथांगपाणिं पुण्याकरं सौख्यमनन्तरूपम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ४ ।। अर्थात्—यज्ञ भगवान के अंगरूप हैं, उनके हाथ में सुदर्शनचक्र शोभा पाता है । वे पुण्य की निधि और सुख रूप हैं । उनके स्वरूप का कहीं अंत नहीं है । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
विश्वाधिवासं विमलं विरामं रामाभिधानं रमणं मुरारिम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ५ ।।
अर्थात्—सम्पूर्ण विश्व उनके हृदय में निवास करता है । वे निर्मल, सबको आराम देने वाले, ‘राम’ नाम से विख्यात, सबमें रमण करने वाले तथा मुर दैत्य के शत्रु हैं । उनका नामरूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
आदित्यरूपं तमसां विनाशं चन्द्रप्रकाशं मलपंकजानाम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ६ ।।
अर्थात्—भगवान केशव आदित्य (सूर्य) स्वरूप, अंधकार के नाशक, मल रूप कमलों के लिए चांदनी रूप हैं । उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
सखड्गपाणिं मधुसूदनाख्यं तं श्रीनिवासं सगुणं सुरेशम् ।
नामामृतं दोषहरं तु राज्ञा आनीत मत्रैव पिबन्तु लोका: ।। ७ ।।
अर्थात्—जिनके हाथों में नन्दक नामक खड्ग है, जो मधुसूदन नाम से प्रसिद्ध, लक्ष्मी के निवास स्थान, सगुण और देवेश्वर हैं, उनका नाम रूप अमृत सब दोषों को दूर करने वाला है । राजा ययाति ने उस अमृत को यहीं लाकर सुलभ कर दिया है । संसार के लोग इच्छानुसार उसका पान करें ।
नामामृतं दोषहरं सुपुण्यमधीत्य यो माधवविष्णुभक्त: ।
प्रभातकाले नियतो महात्मा स याति मुक्तिं न हि कारणं च ।। ८ ।।
अर्थात्—यह नामामृत स्तोत्र दोषहारी और पुण्य देने वाला है । लक्ष्मीपति भगवान विष्णु में भक्ति रखने वाला जो पुरुष प्रतिदिन प्रात:काल नियमपूर्वक इसका पाठ करता है, वह मुक्त हो जाता है, पुन: प्रकृति के अधीन नहीं होता है ।
इस अमृत रुपी स्त्रोत के नियमित अध्ययन से सभी दुःख भय क्लेश और पीड़ाओं का अंत होता है। भगवान श्रीकृष्ण के इस नाम रूपी अमृत वाले स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करने से मनुष्य के दोषों और क्लेशों का नाश होकर पुण्य और भक्ति की प्राप्ति होती है । निष्काम भाव से यदि इस स्तोत्र का पाठ किया जाए तो मनुष्य मोक्ष का अधिकारी होता है ।
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