मन लागो यार फकीरी में ।
जो सुख पावो राम भजन में, सो सुख नाही अमीरी में ।
भला बुरा सब का सुन लीजै, कर गुजरान गरीबी में ॥
प्रेम नगर में रहिनी हमारी, बलि बलि आई सबुरी में ।
हाथ में खूंडी, बगल में सोटा, चारो दिशा जागीरी में ॥
आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले सबुरी में ॥
- कबीर
कबीर का यह भजन ‘मन लागो यार फकीरी में’ जीवन के एक गहरे सत्य को उजागर करता है। यह गीत हमें दिखाता है कि सादगी और संतोष में एक अनोखा आनंद छुपा है, जो धन-दौलत और भौतिक सुखों से कहीं ऊपर है। कबीर हमें यह सिखाते हैं कि सच्चा सुख और शांति केवल ध्यान, भजन और परमात्मा के स्मरण में मिलती है।
मन लागो यार फकीरी में - पंक्ति-दर-पंक्ति अर्थ
मन लागो मेरो यार फकीरी में
मेरा मन फकीरी (सादगी और संतोषपूर्ण जीवन) में रम गया है। यह जीवन की वह अवस्था है जहां किसी भौतिक चीज़ की चाहत नहीं रहती।
जो सुख पायो राम भजन में, सो सुख नाहीं अमीरी में
भगवान के भजन में जो आनंद मिलता है, वह अमीरी और भौतिक सुख-सुविधाओं में भी नहीं मिल सकता।
हाथ में तुम्बा, बगल में सोटा, चारों दिशा जागीरी में
फकीरी में साधारण चीज़ों से ही संतोष होता है। सिर्फ एक साधारण तुम्बा (संगीत वाद्य) और लकड़ी का सहारा है, लेकिन मन चारों दिशाओं का मालिक बन जाता है।
प्रेम नगर में रहनी हमारी, भली बन आई सबूरी में
मेरा निवास प्रेम के नगर में है, और वहां संतोष (सबूरी) का निवास सबसे श्रेष्ठ है। प्रेम और संतोष जीवन को सुंदर बना देते हैं।
आखिर यह तन ख़ाक मिलेगा, कहाँ फिरत मगरूरी में?
यह शरीर एक दिन मिट्टी में मिल जाएगा। फिर किस बात का अहंकार और घमंड? यह जीवन क्षणभंगुर है, इसे व्यर्थ घमंड में न गंवाएं।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, साहिब मिले हैं सबूरी में
कबीर कहते हैं: सुनो साधु भाइयों! परमात्मा का साक्षात्कार केवल संतोष और सबूरी (धैर्य) के माध्यम से हो सकता है।
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