मो सम कौन कुटिल खल कामी लिरिक्स


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मो सम कौन कुटिल खल कामी

मो सम कौन कुटिल खल कामी।
जेहिं तनु दियौ ताहिं बिसरायौ, ऐसौ नोनहरामी॥
भरि भरि उदर विषय कों धावौं, जैसे सूकर ग्रामी।
हरिजन छांड़ि हरी-विमुखन की निसदिन करत गुलामी॥
पापी कौन बड़ो है मोतें, सब पतितन में नामी।
सूर, पतित कों ठौर कहां है, सुनिए श्रीपति स्वामी॥
 
आपने सूरदास जी के प्रसिद्ध पद "मो सम कौन कुटिल खल कामी" के कुछ अंश प्रस्तुत किए हैं। इस पद में सूरदास जी अपने आत्मनिरीक्षण के माध्यम से अपनी कमियों और पापों को उजागर करते हैं। वह कहते हैं कि उनके जैसा कोई कुटिल और पापी नहीं है, क्योंकि उन्होंने अपने शरीर को ही परमात्मा की उपासना के लिए नहीं समर्पित किया। वह विषयों में लिप्त होकर सूअर की तरह जीवन जी रहे हैं और हरिजनों को छोड़कर हरी-विमुखों की सेवा में लगे हैं। अंत में, वह भगवान से प्रार्थना करते हैं कि वह उनके पापों को क्षमा करें, क्योंकि वह सबसे बड़े पापी हैं।
 
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