पहले दोहे में कबीर कहते हैं कि जीवन एक अमूल्य हीरा है, जिसे हम कौड़ियों के बदले बेच देते हैं। हम रात को सोने में और दिन में खाने-पीने में अपना समय गँवा देते हैं। जबकि इस समय का उपयोग हम अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए कर सकते हैं। दूसरे दोहे में कबीर कहते हैं कि भक्ति में मुख से कुछ न बोलना और मन को एकाग्र करना चाहिए। बाह्य दुनिया के शोर-शराबे से दूर होकर अपने भीतर की आवाज़ को सुनना चाहिए। तभी हम ईश्वर से जुड़ सकते हैं।
रात गँवायी सोय के लिरिक्स Raat Gavaai Soy Ke
रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय,
हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय।
सुमिरन लगन लगाय के मुख से कछु ना बोल, बाहर के पट बंद करि अंतर का पट खोल।
दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय, जो सुख में सुमिरन करे तो दुःख काहे को होय।
सुख में सुमिरन ना किया दुख में करता याद,
कहे कबीर उस दास की कौन सुने फरियाद।
रात गँवायी सोय के दिवस गँवाया खाय, हीरा जनम अमोल था कौड़ी बदले जाय।
MUKESH~( None Film )~TU NE RAAT GANWAYE SOYE KE~[ Bhagt Kabir,s Vani ]
भजन की हिंदी में व्याख्या : इस भजन में कबीर मनुष्य को समझा रहे हैं की उसने अपना जीवन व्यर्थ में ही खो दिया है। सांसारिक गतिविधियों में उसने अपना अमूल्य जीवन समाप्त कर दिया है। हिरे जैसे जन्म को कौड़ी में खराब कर दिया हैं। बाहर की दुनिया में ईश्वर को ढूढ़ना व्यर्थ है उसे अपने जीवन में मन में झाकना चाहिए। माला फेरने से कुछ होने वाला नहीं है हमें अपने मन में ईश्वर को याद करना है। सुख में सुमिरन करने से कोई फायदा होने वाला नहीं हैं हमें हमारे अंदर झाकना होगा, मन का मनका फेरना होगा। सुख हो या दुःख होने मालिक को सदा ही याद करना होगा। आपको ये पोस्ट पसंद आ सकती हैं