इस घट अंतर बाग बगीचे इसी में सिरजनहारां लिरिक्स Is Ghat Antar Baag Bagiche Isi me Sirjanhara Lyrics
इस घट अंतर बाग-बगीचे, इसी में सिरजनहारां ।
इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा ।
इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखनहारा ।
इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साईं हमारा ॥
इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा ।
इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखनहारा ।
इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साईं हमारा ॥
Is Ghat Antar Baag-bageeche, Isee Mein Sirajanahaaraan.
Is Ghat Antar Saat Samundar, Isee Mein Nau Lakh Taara.
Is Ghat Antar Paaras Motee, Isee Mein Parakhanahaara.
Is Ghat Antar Anahad Garajai, Isee Mein Uthat Phuhaara.
Kahat Kabeer Suno Bhaee Saadho, Isee Mein Saeen Hamaara.
इस घट अंतर बाग-बगीचे, इसी में सिरजनहारां ।
इस घट अंतर सात समुंदर, इसी में नौ लख तारा ।
इस घट अंतर पारस मोती, इसी में परखनहारा ।
इस घट अंतर अनहद गरजै, इसी में उठत फुहारा ।
कहत कबीर सुनो भाई साधो, इसी में साईं हमारा ॥
कबीर ने कर्मकांडों और हठधर्मिता का आँख बंद करके पालन करने के बजाय, ईश्वर के साथ एक व्यक्तिगत संबंध के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि ईश्वर प्रत्येक व्यक्ति के भीतर है और व्यक्ति ध्यान और आत्म-प्रतिबिंब के माध्यम से परमात्मा का अनुभव कर सकता है। कबीर ने समानता की अवधारणा का प्रचार किया और उनका मानना था कि जाति, पंथ या धर्म की परवाह किए बिना सभी मनुष्य समान हैं। उन्होंने जाति व्यवस्था और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार सहित अपने समय के दमनकारी सामाजिक मानदंडों के खिलाफ आवाज उठाई।
कबीर ने अपनी आध्यात्मिक शिक्षाओं को संप्रेषित करने के लिए सरल भाषा और रोजमर्रा के रूपकों का उपयोग किया, जिससे वे जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों के लिए सुलभ हो सके।
Is Ghat Antar Bag Bageeche | Kabir Bhajan | इस घट अंतर बाग बगीचे | कबीर भजन
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