पानी बिच मीन पियासी मोहि सुनि आवत हाँसी
पानी बिच मीन पियासी।
मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।।
आतम ग्यान बिना सब सूना,
क्या मथुरा क्या कासी ।
घर में वसत धरीं नहिं सूझै,
बाहर खोजन जासी ।।
मृग की नाभि माँहि कस्तूरी,
बन-बन फिरत उदासी ।
कहत कबीर, सुनौ भाई साधो,
सहज मिले अविनासी ।
मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।।
आतम ग्यान बिना सब सूना,
क्या मथुरा क्या कासी ।
घर में वसत धरीं नहिं सूझै,
बाहर खोजन जासी ।।
मृग की नाभि माँहि कस्तूरी,
बन-बन फिरत उदासी ।
कहत कबीर, सुनौ भाई साधो,
सहज मिले अविनासी ।
पानी बिच मीन पियासी।
मोहि सुनि सुनि आवत हाँसी ।।
आतम ग्यान बिना सब सूना,
The phrase can also be used to describe a person who is in a state of discomfort or restlessness, even though they have everything they need to be happy and content. In this context, the "fish" represents the person who is constantly searching for more, even though they are already surrounded by abundance.
Overall, the phrase "Pani Mein Meen Pyasi" is a powerful reminder to be grateful for what we have and to avoid getting caught up in the pursuit of more, especially when we already have everything we need to be happy and content.
पानी बिच मीन पियासी Bhajan By Jagjit Singh
संत कबीर के इस भजन का अर्थ है कि जो व्यक्ति अपने आत्म ज्ञान को नहीं जानता है, वह भटकता रहता है। वह मथुरा और काशी जैसे धार्मिक स्थानों की यात्रा करता है, लेकिन उसे वहां शांति नहीं मिलती है। वह समझता नहीं है कि वह जिसे खोज रहा है, वह उसके भीतर ही है। पहले दो लाइन में, कबीर कहते हैं कि पानी में रहने वाली मछली प्यासी क्यों है? पानी ही उसका जीवन है, लेकिन वह उसे नहीं पहचानती है। वह बाहर की तलाश में रहती है, जबकि उसे जो चाहिए वह उसके भीतर ही है।
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