कान्हा बंसरी बजाये गिरीधारी
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी।
तोरि बनसरी लागी मोकों प्यारीं
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी
यह पद मीरा बाई की भक्ति रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण (गिरिधर नागर) के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त किया है।
कान्हा बनसरी बजाय गिरधारी। तोरी बनसरी लागी मोकों प्यारीं॥हे गिरिधर! तुम बांसुरी बजाते हो, तुम्हारी बांसुरी मुझे बहुत प्यारी लगती है।
दहीं दुध बेचने जाती जमुना। कानानें घागरी फोरी॥यमुना में दही और दूध बेचने जाती हुई, कान्हा ने मेरी घागरी फोड़ दी।
सिरपर घट घटपर झारी। उसकूं उतार मुरारी॥सिर पर घड़ा और शरीर पर झारी (मिट्टी का बर्तन) रखे हुए, मुरारी (कान्हा) ने उसे उतार लिया।
सास बुरीरे ननंद हटेली। देवर देवे मोको गारी॥सास ने बुरा कहा, ननंद ने तंग किया, और देवर मुझे गालियाँ देते हैं।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी॥मीरा कहती हैं, प्रभु गिरिधर नागर के चरणकमलों पर मैं बलिहारी हूँ।
इस पद में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण व्यक्त करती हैं, उनके रूप, गुण और लीलाओं का वर्णन करते हुए अपनी आत्मा की शांति और आनंद की कामना करती हैं।
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