प्रभुजी नाव किनारे लगाव
यह पद मीरा बाई की भक्ति रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण (गिरिधर नागर) के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त किया है।
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव नाव किनारे लगाव
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तराव
प्रभुजी नाव नाव किनारे लगाव
ग्यान ध्यानकी सांगड बांधी। दवरे दवरे आव
प्रभुजी नाव नाव किनारे लगाव
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पाव
प्रभुजी नाव नाव किनारे लगाव
नाव किनारे लगाव प्रभुजी नाव नाव किनारे लगावहे प्रभु! मेरी नाव को किनारे पर लगा दो।
नदीया घहेरी नाव पुरानी। डुबत जहाज तरावनदी गहरी है और मेरी नाव पुरानी है। डूबते हुए जहाज को तुम ही पार लगाते हो।
ग्यान ध्यान की सांगड बांधी। दवरे दवरे आवज्ञान और ध्यान की गठरी बांधकर, द्वार-द्वार भटक रही हूँ।
मीरा कहे प्रभु गिरिधर नागर। पकरो उनके पावमीरा कहती हैं, प्रभु गिरिधर नागर के चरणकमलों को पकड़ो।
इस पद में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण व्यक्त करती हैं, यह दर्शाते हुए कि उन्होंने बाहरी आडंबरों और धार्मिक कर्मकांडों की बजाय भगवान के भजन और उनके चरणों की शरण को ही सर्वोत्तम माना है।
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