फरका फरका जो बाई हरीकी मुरलीया

फरका फरका जो बाई हरीकी मुरलीया

 
फरका फरका जो बाई हरीकी मुरलीया Pharka Phark Jo Bai Hari Ki Muraliya

फरका फरका जो बाई हरीकी मुरलीया।
सुनोरे सखी मारा मन हरलीया
गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी।
और बाजी जाहा मथुरा नगरीया
तुम तो बेटो नंदबावांके।
हम बृषभान पुराके गुजरीया
यहां मधुबनके कटा डारूं बांस।
उपजे न बांस मुरलीया
मीराके प्रभु गिरिधर नागर।
चरणकमलकी लेऊंगी बलय्या
 
यह पद मीरा बाई की भक्ति रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण (गिरिधर नागर) के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त किया है।

पद का अर्थ:

फरका फरका जो बाई हरीकी मुरलीया।
हे सखी, हरी की मुरली की ध्वनि सुनकर मेरा मन हर लिया गया है।

सुनोरे सखी मारा मन हरलीया
सुनो सखी, मेरा मन हर लिया गया है।

गोकुल बाजी ब्रिंदाबन बाजी।
गोकुल और ब्रिंदावन की भूमि पर खेलते हुए भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं का आनंद लिया गया है।

और बाजी जाहा मथुरा नगरीया
और भी स्थान हैं, जैसे मथुरा नगरी, जहाँ भगवान की लीलाएं प्रसिद्ध हैं।

तुम तो बेटो नंदबावांके।
तुम तो नंद बाबा के पुत्र हो।

हम बृषभान पुराके गुजरीया
हम बृज के राजा बृषभानु की पुत्री (राधा) हैं।

यहां मधुबनके कटा डारूं बांस।
यहाँ मधुबन में बांसुरी बजाई जाती है।

उपजे न बांस मुरलीया
यहाँ बांसुरी की ध्वनि नहीं सुनाई देती।

मीराके प्रभु गिरिधर नागर।
मीरा के प्रभु गिरिधर नागर (भगवान श्री कृष्ण) हैं।

चरणकमलकी लेऊंगी बलय्या
मैं उनके चरणकमलों की शरण लूंगी।

इस पद में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण व्यक्त करती हैं, उनके विभिन्न लीलाओं और स्थानों का वर्णन करते हुए अपनी आत्मा की शांति और आनंद की कामना करती हैं।


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