तुमकू शणागतकी लाज नाना पातक चीर मेलाय
तुमकू शणागतकी लाज
नाना पातक चीर मेलाय
पांचालीके काज
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके
आगे चक्रधर जदुराज
मीराके प्रभु गिरिधर नागर
दीनबंधु महाराज यह पद मीरा बाई की भक्ति रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण (गिरिधर नागर) के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त किया है।
पद का अर्थ: तुमकू शणागतकी लाज हे भगवान, शरणागत (आश्रित) की लाज (इज्जत) तुम्हारी जिम्मेदारी है।
नाना पातक चीर मेलाय मैंने अनेक पापों का चीर (आवरण) ओढ़ रखा है।
पांचालीके काज पांचाली (द्रौपदी) के सम्मान की रक्षा की तरह।
प्रतिज्ञा छांडी भीष्मके भीष्म पितामह की प्रतिज्ञा को छोड़कर।
आगे चक्रधर जदुराज आगे चक्रधर (भगवान श्री कृष्ण) और जदुराज (यदुवंश के राजा) हैं।
मीराके प्रभु गिरिधर नागर मीरा के प्रभु गिरिधर नागर (भगवान श्री कृष्ण) हैं।
दीनबंधु महाराज हे दीनबंधु (दीनों के स्वामी) महाराज!
इस पद में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण से अपनी शरणागत की लाज रखने की प्रार्थना करती हैं, अपने पापों के आवरण को त्यागने की इच्छा व्यक्त करती हैं, और भगवान के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण को दर्शाती हैं।
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