तुम बिन मेरी कौन खबर ले गोवर्धन गिरिधारी रे
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे
मोर मुगुट पीतांबर सोभे। कुंडलकी छबी न्यारी रे॥
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारीरे
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमल बलहारी रे
तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रे
यह पद मीरा बाई की भक्ति रचनाओं में से एक है, जिसमें उन्होंने भगवान श्री कृष्ण (गिरिधर नागर) के प्रति अपनी गहरी श्रद्धा और समर्पण व्यक्त किया है।
पद का अर्थ:तुम बिन मेरी कौन खबर ले। गोवर्धन गिरिधारी रेहे गोवर्धन गिरिधारी! तुम बिन मेरी कौन खबर लेता है?
मोर मुकुट पीतांबर सोभे। कुंडल की छवि न्यारी रे॥तुम्हारा मोर मुकुट और पीतांबर (पीला वस्त्र) बहुत सुंदर दिखते हैं, और तुम्हारे कुंडल की छवि अनोखी है।
भरी सभामों द्रौपदी ठारी। राखो लाज हमारी रे॥जब द्रौपदी सभा में खड़ी हुई, तब तुमने उसकी लाज (इज्जत) बचाई। हमारी भी लाज बचाओ।
मीरा के प्रभु श्याम सुंदर है। चरण कमल बलिहारी रे॥मीरा के प्रभु श्याम सुंदर हैं, उनके चरण कमल पर मैं बलिहारी (समर्पित) हूँ।
इस पद में मीरा बाई भगवान श्री कृष्ण के प्रति अपनी गहरी भक्ति और समर्पण व्यक्त करती हैं, उनके रूप, गुण और लीलाओं का वर्णन करते हुए अपनी आत्मा की शांति और आनंद की कामना करती हैं।
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