जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं हिंदी मीनिंग Jab Main Tha Tab Hari Nahi Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit कबीर दोहे हिंदी भावार्थ

 
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
सब अँधियारा मिटि गया, जब दीपक देख्या माहि।।
 
जब मैं था तब हरि नहीं अब हरि हैं मैं नाहिं हिंदी मीनिंग Jab Main Tha Tab Hari Nahi Hindi Meaning
 
Jab Main Tha Tab Hari Nahin, Ab Hari Hain Main Naahin.
Sab Andhiyaara Miti Gaya, Jab Deepak Dekhya Maahi..
 

जब मैं था तब हरि नहीं शब्दार्थ : 
मैं-अहंकार, हरि -ईश्वर, अँधियारा-अज्ञान, दीपक-ज्ञान पुंज रूपी परम ब्रह्म सत्य। 
 

दोहे का भावार्थ : जब मैं था तब हरि नहीं हिंदी मीनिंग: जहाँ अहम है, ईश्वर का ज्ञान नहीं हो पाता है , अहम् ही ज्ञान प्राप्ति में सबसे बड़ा बाधक है। जब तक माया जनित अहंकार है, मैंने ये किया, मैंने वो किया, मैं ऐसा हूँ आदि अहम् ही है।, हरी नहीं हैं। हरी अहम् के शमन उपरान्त ही दिखाई देते हैं। भाव है की अहम् और हरी एक साथ नहीं हो सकते हैं। परमात्मा होता हर जगह है मात्र उसे पहचानने का विलम्ब होता है। जब अहम् समाप्त हो जाता है तब घट के अंदर प्रकाश उत्पन्न होता है जिससे सभी अज्ञान रूपी अन्धकार का नाश होता है और संसार की समस्त मिथ्या समझ में आने लगती है। अंधकार जनित अहम् नष्ट हो जाता है।
 
"जब मैं था तब हरि नहीं" इस पंक्ति का अर्थ होता है कि जब हम अपने अहम् के परिप्रेक्ष्य में रहते हैं, तब हमें ईश्वर का ज्ञान नहीं होता। आत्मा का अहम् विचार भक्ति के मार्ग में एक बड़ी बाधा बनता है। इस प्रकार के आत्म-महत्व के कारण हम ईश्वर की प्राप्ति में रुकावटें डालते हैं। जब तक हम अपने आत्मा को अपनी पहचान मानते हैं, जैसे कि "मैंने यह किया, मैंने वह किया, मैं ऐसा हूँ" आदि, हम ईश्वर को नहीं मानते, क्योंकि वास्तविकता में ईश्वर सिर्फ अहम के परे होता है।
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