माया दासी संत की ऊभी देड असीय हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

माया दासी संत की ऊभी देड असीय हिंदी मीनिंग Maya Dasi Sant Ki Ubhi Deh Asiy Hindi Meaning Kabir Dohe Hindi Arth Sahit

माया दासी संत की, ऊभी देड असीय।
बिल्सी अरु लातौं छड़ी, परि परि जगदीश।।
 
Maaya Daasee Sant Kee, Oobhee Ded Aseey.
Bilsee Aru Laataun Chhadee, Pari Pari Jagadeesh 
 
माया दासी संत की ऊभी देड असीय हिंदी मीनिंग Maya Dasi Sant Ki Ubhi Deh Asiy Hindi Meaning

माया दासी संत की शब्दार्थ: छड़ी - छोड़ दी, लातौ छड़ी =करा दी गई।
 
माया दासी संत की दोहे की हिंदी मीनिंग: माया को समझ लिया जाय और इन्द्रियों पर नियंत्रण कर लिया जाय तो माया ऐसे संत जनों की दासी बन जाती  है, ऐसे संत माया पर भी नियंत्रण कर लेते हैं। माया उनके नियंत्रण में होती है और हर वक़्त खड़ी आशीर्वाद देती है। ऐसे संत जन माया का भोग कर लेते हैं और माया का उपयोग करने के बाद लात मार कर छोड़ भी देते हैं। 
भाव है की माया को यदि समझ लिया जाय तो माया जीव का कुछ भी अहित नहीं कर पाती है। जगदीश के नाम का सुमिरन करते हुए माया दासी की भाँती बन जाती है। यदि माया को समझा नहीं जाए तो माया जीव को अपने इशारों पर नचाती है लेकिन ईश्वर का सुमिरण करने पर माया भी संत जनों की दासी बन जाती है और आशीर्वाद (सभी काम करती है ) देती है।
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