कबीर सो धन संचे जो आगे को होय हिंदी मीनिंग Kabir So Dhan Sanche Jo Aage Ko Hoy Meaning

कबीर सो धन संचे जो आगे को होय हिंदी मीनिंग Kabir So Dhan Sanche Jo Aage Ko Hoy Hindi Meaning

कबीर सो धन संचे, जो आगे को होय।
सीस चढ़ाए पोटली, ले जात न देख्यो कोय।।
Kabeer So Dhan Sanche, Jo Aage Ko Hoy.
Sees Chadhae Potalee, Le Jaat Na Dekhyo Koy. 
 
कबीर सो धन संचे जो आगे को होय हिंदी मीनिंग Kabir So Dhan Sanche Jo Aage Ko Hoy Meaning
 


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: साहेब की वाणी है की हमें उस धन का संग्रह करना चाहिए जो आगे का हो, जीवन समाप्त हो जाने पर जो काम आए, सांसारिक धन को अपने सर पर पोटली की तरहा लाद कर किसी को ले जाते नहीं देखा है, कोई नहीं ले जाता है, सब यहीं रहना है, तो फिर व्यर्थ में क्यों परेशान होना। यह विषय कुछ मनोवैज्ञानिक है, माया के भ्रम में पड़े जीव को यह लगता ही नहीं है की उसे एक रोज जाना भी है, अपने कर्मों का हिसाब भी देना है। वह पुरे जीवन माया को जोड़ने, एकत्रित करने में अपना जीवन व्यतीत करता रहता है, जबकि वह उसका है ही नहीं। आगे के धन से आशय है "राम नाम धन", सत्य मार्ग का अनुसरण करते हुए ईश्वर का सुमिरण ही आगे का धन है। यह धन सांसारिक नहीं है। साहेब के अनुसार संसार में आकर व्यक्ति धन कमाने और जोड़ने में ही लगा रहता है, इस कारण वह अनैतिक मार्ग का भी अनुसरण करता है। वह स्वंय तो परेशान रहता है अपितु अन्य जीवों को भी परेशान करता है। साहेब की अन्य वाणी / Other Vaani of Kabira

साँई आगे साँच है, साँई साँच सुहाय।
चाहे बोले केस रख, चाहे घौंट भुण्डाय।।
Saanee Aage Saanch Hai, Saanee Saanch Suhaay.
Chaahe Bole Kes Rakh, Chaahe Ghaunt Bhundaay..


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: साईं (मालिक) के समक्ष सत्य ही टिकने वाला है, साईं को सत्य ही शोभा देता है, चाहे बालों को कैसे भी रख लो, बढ़ा लो और चाहे पूर्ण साफ़ करवा लो, प्रतीकात्मक भक्ति से कुछ प्राप्त नहीं होने वाला है। भाव है की आचरण में, कार्य और व्यवहार में सत्य का होना जरुरी है। ढोंग और कर्मकांड का भक्ति में कोई स्थान नहीं है, भले ही चित्त को प्रशन्न करने के उपाय हों, लेकिन इश्वर की भक्ति इनसे प्राप्त होने वाली नहीं है। भाव यही है की भक्ति का मार्ग मुश्किल है, कठिन है इसलिए व्यक्ति ढोंग और कर्मकांड का सहारा लेते हैं। माया को त्यागना मुश्किल है, जी उलझा हुआ है इनमे, इस जीव को माया की उलझन से निकालने में जतन करने पड़ते हैं जो थोडा सा मुश्किल है इसलिए जीव सरल रास्तों की और भागता है।

चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए।।
Chalatee Chakkee Dekh Ke, Diya Kabeera Roye.
Do Paatan Ke Beech Mein, Saabut Bacha Na Koe..


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: चलती हुई चक्की को देख कर कबीर शोक व्यक्त करते हैं क्योंकि उसके दोनों पाटों के मध्य कोई सुरक्षित नहीं रह सकता है। यह संसार भी चक्की के समान ही है, एक तरफ मानव जीवन है जो करोड़ों जतन के उपरान्त मिला है और दूसरी तरफ माया का भरम जाल है इनके बीच जीव पिसता चला जाता है। दुसरे अर्थों में जीवन और मरण ये दो चक्की के पाट हैं जिनके बीच जीव पिसता चला जाता है। एक तरफ जीवन का उद्देश्य भक्ति है तो दूसरी तरफ माया है, व्यक्ति दृढ निश्चय के अभाव में इनके बीच फँस कर रह जाता है। भाव है की व्यक्ति को हरी नाम का सुमिरण को ही इस मुसीबत से बचने का आधार है।

अपने-अपने साख की, सबही लीनी मान।
हरि की बातें दुरन्तरा, पूरी ना कहूँ जान॥
Apane-apane Saakh Kee, Sabahee Leenee Maan.
Hari Kee Baaten Durantara, Pooree Na Kahoon Jaan.


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: लोग अनुसरण करते हैं, अपने रिश्तेदारों की बातों का, प्रतिष्ठित लोगों की बातों का अनुसरण करते हैं लेकिन ईश्वर के ज्ञान से दूर रहते हैं, कोई ज्ञान लेता भी है तो वह आधा अधुरा ही होता है। इस दोहे से यह स्पष्ट है की लोग सांसारिक बातों को महत्त्व देते हैं जैसे की उन्हें सदा के लिए ही यहाँ रहना हो, लेकिन हरी की बातों में मन को नहीं लगाते हैं। हरी की बातों में मन को लगाने के लिए माया से संघर्ष करना पड़ता है जो मुश्किल है, इसलिए सरलता की ओर ही सब भागे चले जाते हैं।

माला फेरत जुग भया , फिरा न मन का फेर।
करका मनका डार दे , मन का मनका फेर।।
Maala Yug Mein Laut Aaee, Man Mein Kabhee Nahin Lautee.
Karaka Manaka De De, Man Ka Manaka Pher ..


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: माला को फेरने/सांकेतिक भक्ति करने से कोई लाभ नहीं है जब तक हृदय से / आचरण से हरी के नाम का सुमिरण नहीं किया जाए। व्यक्ति सरल की ओर भागता है, बाल बढ़ा लेना, बाल कटा लेना, वेश धारण कर लेना, माला को फेरना, तिलक लगाना, कर्मकांड करना सरल हैं, लेकिन आचरण की शुद्धता रखकर ईश्वर के नाम का सुमिरण करना, आचरण को कसौटी पर कसना, व्यवहार की शुद्धता मुश्किल है, जिसे करने में जीव को यतन करने पड़ते हैं। लेकिन जब तक हृदय से हरी को याद ना किया जाए तब तक इश्वर की प्राप्त संभव नहीं है भले कितनी ही माला फेर ली जाए, इसलिए हाथों की माला को छोड़कर मन की माला को फेरना चाहिए।

मन हीं मनोरथ छांड़ी दे तेरा किया न होई।
पानी में घिव निकसे तो रूखा खाए न कोई।।
Man Heen Manorath Chhaandee De Tera Kiya Na Hoee.
Paanee Mein Ghiv Nikase To Rookha Khae Na Koee..

दोहे का हिंदी में भावार्थ : मन की बताए गए मार्ग को छोड़ देना चाहिए क्योकि व्यक्ति के सोचने और सोच कर कार्य करने से वह सिद्ध नहीं होता है, क्योंकि करने वाला तो ईश्वर है, यदि पानी को मथने से यदि घी की प्राप्ति संभव हो तो कोई रुखी नहीं खाती है, भाव है की हमें ईश्वर के मार्ग पर चलना चाहिए। करने वाला ईश्वर है व्यक्ति के हाथ में कुछ नहीं, वह बस मन को राजी कर लेता है और कुछ भी नहीं है।

सब धरती काजग करू, लेखनी सब वनराज।
सात समुद्र की मसि करूँ, गुरु गुण लिखा न जाए।
Sab Dharatee Kaajag Karoo, Lekhanee Sab Vanaraaj.
Saat Samudr Kee Masi Karoon, Guru Gun Likha Na Jae.


कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: समस्त धरती का कागज कर लूँ, समस्त वन (लकड़ी) की लेखनी बना लूँ और सातों समुद्र की स्याही भी बना लूँ तो भी गुरु के गुणों का बखान संभव नहीं है। भाव है की गुरु के गुणों का वर्णन करना संभव नहीं है। गुरु की महिमा को शब्दों में बांधना बड़ा मुश्किल है। उल्लेखनीय है की जितनी महिमा गुरु की होती है उससे भी अधिक महत्त्व इस विषय का है की गुरु का चयन कैसे करे, गुरु का चयन भी बहुत मुश्किल होता है। वर्तमान समय में जो अव्यवस्था धर्म के प्रति व्याप्त है उसे साहेब ने पूर्व में ही बता दिया था की गुरु कौन हो सकता है, वह नहीं जिसके पीछे हजारों की भीड़ हो, बल्कि गुरु वह होता है जिसे पूर्ण ज्ञान हो

पांहण टांकि न तौलिए, हाडि न कीजै वेह।
माया राता मांनवी,तिन सू किया सनेह।।
Paanhan Taanki Na Taulie, Haadi Na Keejai Veh.
Maaya Raata Maannavee,tin Soo Kiya Saneh..


दोहे का हिंदी में भावार्थ : पत्थरों (पहाड़) को तौला नहीं जा सकता है, तुला (टांकी) लगाकर उसके भार का माप नहीं किया जा सकता है, ऐसे ही हड्डियों को तोड़ कर उनकी अवस्था का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, ऐसे ही माया में फंसे व्यक्ति का भी अनुमान नहीं लगाया जा सकता है, उससे किसी प्रकार का स्नेह नहीं करना चाहिए । माया विवेक को समाप्त कर देती है और जीव को अपने उद्देश्य तक का आभाष नहीं रहता है और वह व्यर्थ के कार्यों में अपने जीवन को समाप्त कर देता है । ऐसी व्यक्ति जो पूर्ण रूप से माया का शिकार बन चुके हैं उनसे दूर ही रहना चाहिए ।

या दुनिया में आय के, छाड़ि दे तू ऐंठ।
लेना होय सो लेइ ले, उठी जात है पैंठ।।


दोहे का हिंदी में भावार्थ : जीव को साहेब की वाणी है की इस दुनियाँ में आकर तुम व्यर्थ के अभिमान को छोड़ दो, यह संसार एक तरह का बाजार है जहाँ से तुम्हे जो लेना है वो ले लो क्योंकि यह बाजार तो उठा जा रहा है, बाजार बंद होने वाला है। भाव है की यह जीवन स्थाई नहीं है, इस जीवन की प्राप्ति के उपरान्त तुम हरी के नाम का गुणगान कर लो, हरी नाम रूपी समय धन को प्राप्त कर लो तो यह जीवन सार्थक है, अन्यथा एक रोज यह समाप्त हो ही जाना है। समय सीमित है अभिमान को छोड़ कर हरी के नाम का सुमिरण करना ही जीवन का उद्देश्य है।

साधु ऐसा चाहिए, जैसा सूप सुभाय।।
सार-सार को गहि रहै, थोथा देई उड़ाय।

कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: साधू/संतजन का स्वभाव ऐसा होता है की वह समाज/संसार की सार्थक बातों, ज्ञान को ग्रहण कर लेता है जैसे की अनाज साफ़ करने वाला सूप होता है, अनाज साफ़ करने वाला सूप अनाज को एक तरफ और कचरे को उड़ा कर दूर कर देता है। भाव है की व्यक्ति को व्यर्थ की बातों पर ध्यान नहीं देना चाहिए और जीवन कल्याण के लिए उपयोगी ज्ञान को ही ग्रहण करना चाहिए। हर तरह की सुचानाएं/बातें चारों तरफ हैं लेकिन महत्वपूर्ण है की आप किनका चयन करते हैं। यदि आप सत्य आधारित ज्ञान को ग्रहण करते हैं तो ना केवल आप अपने जीवन को सफल बनाते हैं अपितु आप कुछ ज्ञान अन्य लोगों को भी बाँटते चलते हैं।

तिनका कबहुँ ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।।
कबहुँ उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : जीव को किसी भी ज्ञान/व्यक्ति को तुच्छ नहीं समझना चाहिए, सभी का अपना स्वतंत्र महत्त्व है। इसी भाँती हमें मानवतावादी द्रष्टिकोण रखकर सभी जीवों का सम्मान करना चाहिए। यदि एक तिनका जो पांवों के निचे दबा हुआ है, जिसका कोई महत्त्व प्रतीत नहीं होता है और वह यदि उडकर आँखों में गिर जाए तो बहुत अधिक दर्द होता है। दुसरे अर्थों में किसी को कमजोर नहीं आंकना चाहिए।

पकी खेती देखि के , गरब किया किसान।
अजहुं झोला बहुत है , घर आवै तब जान।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : पकी हुई फसल को देख कर किसान गर्व करता है / अभिमान करता है लेकिन अभी भी मार्ग में बहुत से झमेले हैं, घर पहुचने पर ही विश्वाश। काल चक्र का कोई भरोसा नहीं है, कभी भी कुछ भी होना संभव है। 

राम बुलावा भेजिया , दिया कबीर रोय ।
जो सुख साधु संग में , सों बैकुण्ठ न होय ।।

कबीर दोहे का हिंदी मीनिंग: राम ने बुलावा भेज दिया है और इसे देख कर कबीर दुखी हो उठते हैं। दुखी होने का कारण है की जो सुख साधुजन की संगती में है वह स्वर्ग में भी नहीं हो सकता है। यहाँ संतजन संगती का महत्त्व स्पष्ट हो जाता है। वस्तुतः संतजन की संगती में ही व्यक्ति वास्तविक सुख को प्राप्त करता है।

पाँच पहर धन्धे गया, तीन पहर गया सोय ।
एक पहर भी नाम बिन , मुक्ति कैसे होय ।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : पाँच पहर काम धंधे में बीत गए, तीन पहर सोने में बीत गए लेकिन हरी के सुमिरण के लिए तुमकों वक़्त ही नहीं मिला ! भाव है की व्यक्ति अपने सांसारिक कार्यों में इतना व्यस्त हो जाता है की वह हरी को भूल ही जाता है, ऐसे में उसकी मुक्ति कैसे संभव हो।

लाग लगन छूटे नहीं , जीभ चोंच जरि जाय ।
मीठा कहाँ अंगार में , जाहि चकोर चबाया ।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : लोभ और आसक्ति के कारण व्यक्ति किसी भी वस्तु को हर हाल में प्राप्त करना चाहता है, भले ही उसकी हानि क्यों ना हो जाए। जैसे चकोर पक्षी अंगार को प्राप्त करना चाहता है, इसमें उसकी चोंच में कोई मीठी वस्तु नहीं होती है लेकिन फिर भी वह अंगार को खाता है, भले ही इसमें उसकी हानि ही क्यों ना हो। भाव है की व्यक्ति को जब आसक्ति हो जाती है तो वह लाभ और हानि के विषय में विचार नहीं करता है।

सीखै सुनै विचार ले, ताहि शब्द सुख देय ।
बिना समझै शब्द गहै , कछु न लाहालेय ।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : जो व्यक्ति शबद सुन कर उनकी शिक्षा को ग्रहण करता है उसे शबद सुख प्रदान करते हैं लेकिन जो बगैर सोचे समझे शबद को ग्रहण करता है उसे उनका लाभ प्राप्त नहीं हो पाता है। रटंत विद्या के कारण शबद कोई लाभ देने वाले नहीं हैं।

शब्द दुरिया न दुरै, कहूँ जो ढोल बजाय।
जो जन होवै जौहोरी, लेहैं सीस चढ़ाय।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : शबद के विषय में वाणी है की शबद निंदा करने से व्यर्थ नहीं हो जाते हैं, जो व्यक्ति शबद के महत्त्व को समझते हैं वे शबद को समझ कर अपने सर माथे पर धर लेते हैं, सम्मान करते है।

मुख आवै सोई कहै, बोलै नहीं विचार।
हते पराई आत्मा, जीभ बाँधि तरवार।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : जो व्यक्ति बगैर सोचे समझे जो भी मुख में आए बोल देते हैं वे ऐसे ही है जैसे कोई अपनी जबान पर तलवार को बांध कर दूसरों की आत्मा को ठेस पहुचाता है। भाव है की एक अन्य स्थान पर भी वाणी है की कौवा किसी से क्या छीन लेता है और कोयल किसी को क्या देती है ? यह सिर्फ बोली का अंतर है, बोली यदि मीठी हो तो हम दूसरों का हृदय जीत लेते हैं और यदि कटु बोली का उपयोग करें तो दूसरों के दिल को दुखाते ही है। अन्य स्थान पर साहेब की वाणी है की " शब्द जु ऐसा बोलिये, मन का आपा खोय औरन को शीतल करे, आपन को सुख होय" वाणी ऐसी होनी चाहिए जो दूसरों को शीतल बना दे, और स्वंय को भी सुख का अभास कराए। "कागा काको धन हरै, कोयल काको देत-मीठा शब्द सुनाय को, जग अपनो करि लेत" कोयल किसी को कुछ देती नहीं है बल्कि स्वंय की वाणी से, मीठी वाणी से लोगों का मन प्रशन्न कर देती है।

लौ लागी विष भागिया , कालख डारी धोय।
कहैं कबीर गुरु साबुन सों , कोई इक ऊजल होय।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : गुरु के ज्ञान की अग्नि की लो से विष दूर हो गया है और गुरु ज्ञान के साबुन से कोई कोई ही उजाला होता है, भाव है की गुरु के ज्ञान को धारण करने वाला अपनी कालिख को दूर कर लेता है। कालिख क्या है, कालिख है माया के भरम की, जो व्यक्ति को सद्मार्ग के अनुसरण के लिए रोकती है।

चित चोखा मन निरमला , बुधि उत्तम मति धीर।
सों धोखा नहिं बिरहहीं , सतगुरु मिले कबीर ।।

दोहे का हिंदी में भावार्थ : सद्गुरु की प्राप्ति के उपरान्त मन निर्मल और बुद्धि को उत्तम हो जाती है ऐसा व्यक्ति कभी धोखा नहीं खाता है।

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