निधड़क बैठा राम बिन चेतनि करै पुकार हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

निधड़क बैठा राम बिन चेतनि करै पुकार हिंदी मीनिंग Nidhadak Baitha Raam Bin Chetan Kare Pukar Meaning

निधड़क बैठा राम बिन, चेतनि करै पुकार।
यहु तन जल का बुदबुदा, बिनसत नाहीं बार॥
 
Nidhadak Baitha Raam Bin, Chetani Karai Pukaar.
Yahu Tan Jal Ka Budabuda, Binasat Naaheen Baar. 
 
निधड़क बैठा राम बिन चेतनि करै पुकार हिंदी मीनिंग Nidhadak Baitha Raam Bin Chetan Kare Pukar Meaning
 

 राम नाम ही इस जीवन का आधार है और तुम बेखबर बैठे हो, यह चेतन की पुकार है, तय मानव देहि / तन तो पानी के बुलबुले के समान है, अस्थाई है। इस तन का कोई भरोषा नहीं है, कभी भी समाप्त हो सकता है, इस तन को समाप्त होने में समय नहीं लगता है। भाव है की मनुष्य जीवन बहुत ही अल्प समय के लिए हैं, स्थाई नहीं है इसलिए ईश्वर की भक्ति करना, हरी नाम का सुमिरण ही सार्थक है इसलिए आलस में बेखबर मत बैठो, हरी का गुणगान गावो। 

पाँणी केरा बुदबुदा, इसी हमारी जाति।
एक दिनाँ छिप जाँहिंगे, तारे ज्यूँ परभाति॥
Paannee Kera Budabuda, Isee Hamaaree Jaati.
Ek Dinaan Chhip Jaanhinge, Taare Jyoon Parabhaati. 
 
यह मानव जीवन, मानव तन बहुत ही अल्प समय के लिए है और एक रोज समाप्त हो जानी है जैसे रात्री में तारे चमकते हैं, उनका अस्तित्व होता है लेकिन सूर्य के उदय होते ही ये पल भर में छिप जाते हैं। भाव है की मानव जीवन बहुत ही अल्प समय के लिए है, इसलिए हरी के नाम का सुमिरण ही भव सागर से पार जाने का एकमात्र माध्यम है।

कबीर जंत्रा न बाजई, टूटि गए सब तार।
जंत्रा बिचारा क्या करै, चलै बजावणहार॥
Kabeer Jantra Na Baajee, Tooti Gae Sab Taar.
Jantra Bichaara Kya Karai, Chalai Bajaavanahaar. 
 
तन रूपी तंत्री (वाद्य यंत्र) प्राण रूपी तार के टूट जाने पर नहीं बजती हैं, इसमें बजाने वाले का क्या दोष है? जब जंत्र ही खराब हो जाए तो इसमें बजावन हार का कोई दोष नहीं है क्योंकि इसके प्राणों के तार ही टूट गए हैं। भाव है की मानव जीवन अस्थाई है एक रोज इसकी प्राण वायु समाप्त हो जानी है। 

धवणि धवंती रहि गई, बुझि गए अंगार।
अहरणि रह्या ठमूकड़ा, जब उठि चले लुहार॥
Dhavani Dhavantee Rahi Gaee, Bujhi Gae Angaar.
Aharani Rahya Thamookada, Jab Uthi Chale Luhaar. 
 
शरीर रूपी भट्टी ऐसे ही पड़ी रह गई और इसके अंगार बुझ गए हैं, घड रूपी निहाई पड़ी ही रह गई क्योंकि लुहार (प्राण) उठ कर चल पड़ा है। भाव है की एक रोज जब प्राण वायु समाप्त हो जाती है और यह तन पड़ा ही रह जाता है। इसलिए हमें हर वक़्त हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए। 

पंथी ऊभा पंथ सिरि, बुगचा बाँध्या पूठि।
मरणाँ मुँह आगै खड़ा, जीवण का सब झूठ॥
Panthee Oobha Panth Siri, Bugacha Baandhya Poothi.
Maranaan Munh Aagai Khada, Jeevan Ka Sab Jhooth. 
 
आत्मा रूपी पथिक (राही) अपनी पीठ पर कर्मों की पोटली बाँध कर अनंत पथ के लिए तैयार खड़ा है। मृत्यु उसके सामने खड़ी है इसलिए जीवन की समस्त बातें, कार्य उसको झूठी मालूम जान पड़ती है। भाव है की एक रोज सभी झमेलों को छोड़ कर हरी के चरणों में जाना है इसलिए जीवन रहते हरी के नाम का सुमिरण ही इस जीवन का आधार है।

अगम अगोचर गमि नहीं, तहां जगमगै जोति।
जहाँ कबीरा बंदिगी, तहां पाप पुन्य नहीं छोति॥
Agam Agochar Gami Nahin, Tahaan Jagamagai Joti.
Jahaan Kabeera Bandigee, tahaan Paap Puny Nahin Chhoti. 
 
 निर्गुण परमब्रह्म अगम अगोचर है, जहाँ पर परम ब्रह्म की ज्योति जगमग रहती है, वह ज्योति पाप पुन्य से परे है। 

हदे छाड़ि बेहदि गया, हुवा निरंतर बास।
कवल ज फूल्या फूल बिन, को निरषै निज दास॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: साधक असीम हो गया है उसने हद का त्याग करके बेहद को अपना लिया है। बेहद में चित्त रम गया है, निर्गुण ब्रह्म रूपी कमल को कौन देख सकता है। 

अंतर कवल प्रकासिया, ब्रह्म बास तहां होइ।
मन भवरा तहां लुबधिया, जांणैगा जन कोइ॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: अंतर्मन में कमल प्रकाशित हुआ है, जहाँ ब्रह्म का वास है, मन का भंवरा वहां लोभ में आ गया है इस बात को कोई भक्त ही जान सकेगा। कोई बिरला साधक इस रहस्य को भक्ति के माध्यम से जान पायेगा।

सायर नाहीं सीप बिन, स्वाति बूँद भी नाहिं।
कबीर मोती नीपजै, सुन्नि सिषर गढ़ माँहिं॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: ना तो कोई सागर (सायर) है, ना सीप है, ना कोई स्वाति की बूंद है फिर भी शून्य शिखर में ब्रह्म रूपी मोती उत्पन्न हो रहा है, भाव है की शून्य शिखर में ब्रह्म के दर्शन हुए हैं।
कलि का स्वामी लोभिया, पीतलि धरी षटाइ।
राज दुबाराँ यौं फिरै, ज्यूँ हरिहाई गाइ॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: कलियुग का स्वामी लोभी होता है, लालची होता है, वह लोगों को कुछ ऐसे चमक दिखाता है जैसे पीतल पर खटाई लगा देने पर वह चमकने लगता है। जैसे पीतल पर खटाई लगा देने पर वे चमकने लगते हैं वैसे ही कलियुग के पाखंडी साधू संत पल भर में विरक्त हो जाते हैं। ऐसे पाखंडी लोग माया के लालच में पड़े रहते हैं और राज दरबार/ राज द्वार में ऐसे फिरते हैं जैसे की गाय हरे घास के चक्कर में पड़ी रहती है और बार बार हरे खेत की और भागती है, हरिहारी- जो भगाने से भी नहीं भागती है। भाव है की कलयुग में संत / साधू भी माया के चक्कर में ही लगे रहते हैं। 

कलि का स्वामी लोभिया, मनसा धरी बधाइ।
दैहिं पईसा ब्याज कौं, लेखाँ करताँ जाइ॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: कलियुग के स्वामी/साधू अपनी मन की इच्छाओं पर काबू नहीं रखते हैं और उन्हें बहुत बढ़ा चढ़ा कर रखते हैं। ऐसे लोग ब्याज पर पैसे को उधार देते हैं और लेखा बही में उसका हिसाब रखते हैं। भाव है की जो लोग अपने मन की कामनाओं पर नियंत्रण नहीं रखते और माया के जाल में फंसे रहकर ब्याज पर पैसे देते हैं उन लोगों का भला कैसे हो सकता है ? वे स्वामी / साधू नहीं हो सकते हैं। साहेब ने चेताया है की इस प्रकार से माया के भ्रम जाल में फंसे रहना भक्ति मार्ग नहीं है। 

कबीर कलि खोटी भई, मुनियर मिलै न कोइ।
लालच लोभी मसकरा, तिनकूँ आदर होइ॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: कलियुग के विषय में वाणी है की कलियुग में मुनियर/संतजन/साधु कोई नहीं मिलता है, कलियुग बहुत ही खोटा है। कलियुग में तो लालची, मसखरा और लोभी जन ही आदर पाते हैं। भाव है की कलियुग में माया का बोलबाला है जिसमे अनैतिक कार्य करने वाले ही आदर सम्मान के हकदार हैं। सन्देश है की हमें दिखावे से दूर रहकर असल भक्ति मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए। 

चारिउ बेद पढ़ाइ करि, हरि सूँ न लाया हेत।
बालि कबीरा ले गया, पंडित ढूँढ़ै खेत॥ 
 
लीक को पीटने वाले और पाखंडी लोगों पर व्यंग्य है की चारों वेद पढ़ कर भी पौँगा पंडितों ने हरी के नामे से हेत नहीं किया है। अनाज की बाली (जहाँ अनाज लगता है) को तो कबीर ले गया अब पंडित खेत को खोज रहे हैं। भाव है की जो सच्चे हृदय से हरी के नाम का सुमिरण करता है वह ईश्वर को प्राप्त कर लेता है लेकिन जो दिखावा करते हैं उनके हाथ कुछ भी नहीं लगता है। भाव है की जो लोग दिखावे की भक्ति करते हैं, भक्ति को अपने हृदय में नहीं उतारते हैं उनके हाथ कुछ भी नहीं लगता है।

बाँम्हण गुरु जगत का, साधू का गुरु नाहिं।
उरझि पुरझि करि मरि रह्या, चारिउँ बेदाँ माहिं॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: ब्राह्मण(ऐसे ब्राह्मण जिन्होंने धर्म को ही आजीविका का साधन बना कर इसमें मुनाफे की तलाश करते हैं ) जगत का गुरु हो सकता है लेकिन सच्चे साधू (जिसने माया का भ्रम छोड़ दिया है और सच्ची भक्ति करने में अग्रसर रहता है) का नहीं हो सकता है। सच्चा साधू तो मोह माया सभी से दूर रहता है। पाखंडी व्यक्ति तो वेदों में ही उलझ कर मर जाते हैं वे सच्ची भक्ति को अपने जीवन में नहीं उतारते हैं। भाव है की जो स्वंय को भक्ति मार्ग का पथिक कहे उसे मोह माया से दूर रहकर सत्य के मार्ग पर अग्रसर होना चाहिए और हरी के नाम का सुमिरण करना चाहिए। भक्ति जहाँ महत्पूर्ण है वहीँ पर यह भी महत्त्व रखता है की हम इसे अपने व्यक्तिगत जीवन में उतारें। व्यक्तिगत जीवन में हम भ्रष्ट हैं, मोह और माया के चक्कर में अनैतिक कार्यों में लिप्त रहते हैं तो यह भक्ति नहीं कही जा सकती है।

साषित सण का जेवणा, भीगाँ सूँ कठठाइ।
दोइ अषिर गुरु बाहिरा, बाँध्या जमपुरि जाइ॥ 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: शाक्य लोग सन(सण-मूँज/जूट) की रस्सी की भाँती होते हैं। जैसे जूट की रस्सी पानी लगने / भीगने के उपरान्त अधिक सख्त होती चली जाती है वैसे शाक्य लोग भी माया के भ्रम में पड़कर अधिक लालची और लोभी होने लगते हैं। शाक्य लोगों ने दो अक्षर "राम" के विषय में नहीं जाना है और ऐसे लोग बंधे हुए जमपुर / यमलोक में ले जाए जाते हैं।भाव है की ये लोग हरी की भक्ति नहीं करते हैं और परिणाम के भागी बनते हैं। 

पाड़ोसी सू रूसणाँ, तिल तिल सुख की हाँणि।
पंडित भए सरावगी, पाँणी पीवें छाँणि॥
Paadosee Soo Roosanaan, Til Til Sukh Kee Haanni.
Pandit Bhe Saraavagee, Paannee Peeven Chhaanni. 
 
पडौसी से प्रेम से रहना चाहिए, मधुर सबंध होने चाहिए क्योंकि पडौसी से बैर होने पर उस व्यक्ति की मानसिक शान्ति तिल तिल करके भंग हो जाती है।इस बात का ध्यान जैन समाज के लोग नहीं करते हैं और पानी भी छान छान कर पीते हैं। 

पंडित सेती कहि रह्या, भीतरि भेद्या नाहिं।
औरूँ कौ परमोधतां, गया मुहरकाँ माँहि॥
Pandit Setee Kahi Rahya, Bheetari Bhedya Naahin.
Auroon Kau Paramodhataan, Gaya Muharakaan Maanhi. 
 
कबीर दोहा हिंदी व्याख्या : Kabir Doha Meaning in Hindi: पाखंडी पंडितों के लिए साहेब की वाणी है की पंडित लोग उपदेश देते रहते हैं लेकिन स्वंय के भीतर नहीं झांकते हैं। औरों को उपदेश देते हैं लेकिन स्वंय घोर पाप करता रहता है। भाव है की करनी और कथनी के एकरूपता का होना बहुत ही जरुरी है। 

चतुराई सूवै पढ़ी, सोई पंजर माँहि।
फिरि प्रमोधै आन कौ, आपण समझै नाहिं॥
Chaturaee Soovai Padhee, Soee Panjar Maanhi.
Phiri Pramodhai Aan Kau, Aapan Samajhai Naahin. 
 
 तोते ने सम्पूर्ण चतुराई को सीख लिया है लेकिन फिर भी तोते को इसका फल पिंजरे में कैद के रूप में मिलता है। तोता बोलना सीखने/चतुराई को सीखने के उपरान्त दूसरों को उपदेश देता है लेकिन स्वंय का कल्याण नहीं कर पाता है। यहाँ पौँगा पंडितों पर व्यंग्य है की वे ग्रंथों को तो कंठस्थ कर लेते हैं लेकिन उनको अपने जीवन में नहीं उतारते हैं। इसके फलस्वरूप वे स्वंय आ आत्मिक कल्याण नहीं कर पाते हैं। मात्र किसी ज्ञान को जान लेते हैं, इतना काफी नहीं है, ज्ञान को अपने व्यक्तिगत जीवन में उतारना भी उतना ही महत्वपूर्ण है।

रासि पराई राषताँ, खाया घर का खेत।
औरौं कौ प्रमोधतां, मुख मैं पड़िया रेत॥
Raasi Paraee Raashataan, Khaaya Ghar Ka Khet.
Auraun Kau Pramodhataan, Mukh Main Padiya Ret. 
 
कुछ किसान लालची होते हैं, वे अपने खेत का पूर्ण ध्यान रखने के स्थान पर दूसरों के खेत की रखवाली का भी काम अपने हाथ में ले लेते हैं । परिणामस्वरूप वे स्वंय के खेत को उजाड़ कर रख देते हैं, उनके मुख में रेत भर जाती है। भाव है की थोड़े से लालच में हम स्वंय का नुकसान कर बैठते हैं। इसलिए हमें दूसरों को उपदेश या ज्ञान बांटने के स्थान पर स्वंय का आत्मिक कल्याण करना चाहिए। 

तारा मंडल बैसि करि, चंद बड़ाई खाइ।
उदै भया जब सूर का, स्यूँ ताराँ छिपि जाइ॥
Taara Mandal Baisi Kari, Chand Badaee Khai.
Udai Bhaya Jab Soor Ka, Syoon Taaraan Chhipi Jai. 
 
अन्धकार में तारों के मध्य में चंद्रमा स्वंय को गौरान्वित महसूस करता है लेकिन सूर्य के उदय होने के पश्चात वह भी तारों के साथ ही सूर्य के प्रकाश के आगे छिप जाता है। भाव है की सांसारिक मोह माया, इच्छाएं, कामनाएं तभी तक रहती हैं जब तक ज्ञान का प्रकाश पैदा नहीं होता है। ज्ञान के प्रकाश के उत्पन्न होने पर सभी समाप्त हो जाती है और वैराग्य स्वतः ही उत्पन्न होने लगता है।

देषण के सबको भले, जिसे सीत के कोट।
रवि के उदै न दीसहीं, बँधे न जल की पोट॥ 

Deshan Ke Sabako Bhale, Jise Seet Ke Kot.
Ravi Ke Udai Na Deesaheen, Bandhe Na Jal Kee Pot. 
 
शीत काल में बरफ के कीले देखने में अच्छे लगते हैं, सूर्य के उदय होने पर यह स्वतः ही छिप जाते हैं और इनके जल की पोटली बाँधी नहीं जा सकती है। भाव है की जिस प्रकार से सूर्य के उदय होने पर बर्फ गायब हो जाती है ऐसे ही ज्ञान के सूरज के उदय होने पर अज्ञान रूपी विषय विकार और मलिनता दूर हो जाती है।

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