कुटजादि वटी क्या होती है कुटजादि वटी के फायदे

कुटजादि वटी क्या होती है Kutujaadi Vati Kya Hoti Hai What is Kutujadi Vati

कुटजादि वटी एक आयुर्वेदिक ओषधि है जिसे कुटज और अन्य औषधीय हर्ब से तैयार किया जाता है। यह वटी है अर्थात टेबलेट फॉर्म में है। कुटजादि वटी मुख्य रूप से संग्रहणी, आमातिसार, रक्ताविकार, पेचिस और ज्वरातिसार को दूर करने के लिए किया जाता है। रक्तार्श में भी कुतुजादि वटी का उपयोग किया जाता है। 

कुटजादि वटी क्या होती है कुटजादि वटी के फायदे Kutjaadi (Kutaj Vati ) Vati Benefits Hindi

कुटजादि वटी के फायदे/लाभ Kutujaadi Vati Ke Fayade Benefits of Kutajaadi Vati Hindi

वर्तमान जीवन शैली में हम कई प्रकार के रोगों को निमंत्रण देते हैं जिनमे अनुचित खान पान से उत्पन्न होने वाले उदर रोग प्रमुख हैं। बाहर का खाना जिसमे वानस्पतिक तेल की अधिकता होती है, ज्यादा मिर्च मसालेदार और डिब्बाबंद भोजन से पाचन विकार उत्पन्न होने स्वाभाविक हैं और दूसरी तरफ शारीरिक मेहनत का अभाव भी प्रमुख हैं। आवश्यक है की आप स्वस्थ जीवन शैली को अपनाएं। ऐसे उदर रोगों में कुटज वटी के लाभकारी परिणाम होते हैं जो निम्न प्रकार से हैं -

संग्रहणी - संग्रहणी रोग में कुटज वटी का लाभकारी परिणाम होता है। संग्रहणी रोग को इर्रीटेबल बाउल सिंड्रोम ( Irritable Bowel Syndrome) के नाम से भी जाना जाता है जिसमे रोगी को बार बार शौच जाने की आवश्यकता पड़ती है और पेट में मरोड़ उठते रहते हैं मानो जैसे की पेट साफ़ हुआ ही नहीं हो। संग्रहणी रोग प्रमुख रूप से वातज संग्रहणी, पित्त की संग्रहणी और कफ की संग्रहणी प्रकार के होते हैं लेकिन सभी में समान है की पाचन अग्नि मंद पड जाती है। जठराग्नि मंद होकर पाचन क्रिया को सुस्त कर देती है और वसा पचाने की क्षमता बिलकुल खो देती है। 
 
संग्रहणी विकार में रोगी को बार बार पतले दस्त की समस्या रहती है और खाने के तुरंत बाद ही मरोड़ उठने की समस्या रहने लगती है। संग्रहणी के लक्षणों में रोगी को भोजन पचाने में मुश्किल होती है, गले का सूखना, प्यास की अधिकता, बार बार मरोड़ का उठना, दस्त का लगना, मुंह में छाले, कमरदर्द आदि प्रमुखता से दिखाई देते हैं। संग्रहणी रोगियों को गेहूं, जो, मटर और धूम्रपान से परहेज करना चाहिए। सग्रहणी रोगियों को हींग, त्रिफला चूर्ण का सेवन करना चाहिए। 

आमातिसार (अग्रेज़ी- Diarrhea) - आमातिसार विकार में भी कुटज वटी के सेवन से लाभ मिलता है। आमातिसार में रोगी के मल में जल की मात्रा अधिक होती है और थोड़ी थोड़ी देर में उसे पेट में मरोड़ के उठने पर शौच जाना पड़ता है। अतिसार में पेट में ऐंठन, पेट में दर्द, निर्जलीकरण (पानी की कमी) दस्त और उल्टी का आना प्रमुख संकेत हैं। अतिसार में आंव का आना जिसमे कच्चा मल निकलता है और पित्तातिसार में पीले रंग के दस्त लगते हैं। आमातिसार में रोगी को मरोड़ के साथ मल निकलता है।
  • कुटज वटी रक्ताविकार, पेचिस और ज्वरातिसार में लाभदायी होती है।
  • कोलायाटिस, पतले दस्त, आंव आना, आँतों के सभी प्रकार के दोष में लाभकारी होती है।
  • दस्त के साथ खून आने पर कुटज वटी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • कुटजवटी पाचन को दुरुस्त करने में सहायक होती है और पेट के विकारों में लाभदाई होती है।
  • शरीर के विभिन्न भागों में आई सूजन को दूर करने में कुटज वटी के सेवन से लाभ मिलता है।
  • अधिक पसीना आने पर भी कुटज वटी का सेवन किया जाता है।

कुटजादि वटी के घटक Kutajadi Vati Ke Ghatak Dravya Ingredients of Kutjaadi Vati Hindi

  • कूड़ा की छाल
  • माजूफल
  • लौंग
  • मरोड़फ़ली
  • बहेड़ा
  • बायविडंग
  • नागकेशर
  • सौंठ
  • पीपल
  • जायफ़ल
  • जावित्री
  • बेलगिरी

कुटजादि वटी का सेवन और ख़ुराक Doses of Kutjadi Vati

इस हेतु आप वैद्य से संपर्क करें क्योंकि आपकी आयु, रोग की जटिलता, रोग के प्रकार, देश काल और अन्य ओषधियों के योग के अनुसार आपको इस ओषधि का सेवन बताया जा सकता है। अपने मन से इस दवा का सेवन नहीं करे।

कुटजादि वटी के घटक द्रव्यों का परिचय Kutujadi Vati Ke Ghatak Dravyon Ka Parichay

कूड़ा या कुटज की छाल आयुर्वेद की अत्यंत ही प्राचीन और प्रचलित ओषधि है। अधिकतर आयुर्वेद के ग्रंथों में कुटज की छाल का परिचय प्राप्त होता है। पेट से सबंधित विकार यथा दस्त आने, पेट में मरोड़ आदि विकारों के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है। 
कूड़ा की छाल KURCHI, कुटज छाल - Holarrhena Antidysenterica-हौलोरेना ऐन्टिडिसेन्ट्रिका-वानस्पतिक नाम। (करची, कुरची, कुटकी, कोनेस्स ट्री, कुटजा, दूधी, इंद्र ) English – कुरची (Kurchi) कोनेस्स ट्री (Coness tree) टेलीचैरी ट्री

कुटज एशिया और अफ्रीका के के ट्रॉपिकल औऱ सबट्रॉपिकल इलाकों में प्रधानता से पाया जाता है। भारत में यह विशेष रूप से हिमालयी इलाक़ों / पर्णपाती वनों में प्रधानता से पाया जाता है। इस पेड़ की छाल को ही कूड़े/कुटज की छाल के नाम से पहचाना जाता है जो डायरिया, इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम (IBS) विकार के उपचार के लिए आयुर्वेदा में इस्तेमाल की जाती है। कुटज कटु और कषाय रस युक्त, तीक्ष्ण, अग्निदीपक और शीतवीर्य है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में कुटज की छाल को कुटज की छाल कड़वी, चरपरी, उष्णवीर्य, पाचक, ग्राही और कफविकार, कृमि, ज्वर, दाह और पित्ताशं का नाश करने वाली बताया गया है। 
 
कुटज की छाल के अतिरिक्त इसके पत्ते पुष्प और बीजों का उपयोग आयुर्वेदा में प्रधानता से होता है। इसमें एंटीडिसेंट्री, एंटीडायरियल और एंटी-एमोबिक प्रॉपर्टीज होती हैं जो इसे विशेष बनाती हैं। कुटज का उपयोग त्वचा रोगों, बुखार, हर्पीस, एब्डोमिनल कोलिक पेन, पाइल्स और थकान आदि विकारों के उपचार में भी किया जाता है। कुटज का उपयोग आयुर्वेद में जहाँ अतिसार के लिए किया जाता है वहीँ यह घुटनों के दर्द में भी प्रभावी ओषधि है।
कुटज का उपयोग निम्न रोगों के उपचार के लिए किया जाता है।
  1. पाचन तंत्र विकारों को दूर करने के लिए कुटज एक अहम् ओषधि है। यह दस्त रोकने, मरोड़ की रोकथाम करने के अतिरिक्त पाचन को भी दुरुस्त करने का कार्य करती है। पित्तातिसार भी इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  2. रक्तज प्रवाहिका विकार में भी कुटज की छाल के चूर्ण को छाछ के साथ लेने से लाभ मिलता है।
  3. कुटज चूर्ण को शहद के साथ लेने से खूनी बवासीर में लाभ मिलता है।
  4. डायबिटीज रोगियों के लिए भी कुटज का चूर्ण लाभकारी होता है। कुटज को रात भर भिगो कर सुबह इसके पानी के सेवन से लाभ मिलता है।
  5. कुष्ठ रोग के निदान के लिए भी कुटज चूर्ण का सेवन लाभकारी होता है।
  6. जोड़ो के दर्द त्वचा के संक्रमण में भी कुटज लाभकारी होता है।
  7. शरीर में आई सूजन को दूर करने के लिए भी कुटज लाभकारी होता है।
  8. कुटज पित्त शामक एवं शीत गुण प्रधानता लिए होता है।
  9. आयुर्वेद में कुटज को पौरुषत्व को बढ़ाने वाला माना जाता है। इसके सेवन से क्षीणता दूर होती है और पौरुषत्व बढ़ता है।
  10. कुटज में कई पौष्टिक तत्व होते हैं, कुपोषित लोगों के लिए यह लाभदाई होती है।
  11. कुटज के सेवन से आर्थराइटिस सुजन व दर्द में आराम मिलता है।
  12. कुटज में कई प्रकार के हीलिंग रसायन होते हैं जिसके कारण इसका उपयोग त्वचा संक्रमण रोकने और घाव को भरने के लिए किया जाता है। इसके महीन चूर्ण को सफ़ेद दाग पर लगाने से सफ़ेद दाग को दूर करने में सहायता मिलती है।
  13. पित्तज प्रमेह, आंवरक्त (पेचिश), उपदंशरक्त, प्रदररक्तातिसार विकार में इसके सेवन से लाभ मिलता है।
  14. ज्वर को रोकने में भी कुटज लाभदाई होती है।
  15. कुटज की छाल का काढ़ा बनाकर लेने से दांत दर्द में राहत मिलती है। इसके महीन चूर्ण को दांतों पर मंजन करने से पायरिया दूर होता है।
  16. कुटज की छाल के सेवन से उदर कृमि शरीर से बाहर मल के साथ निकल जाते हैं।
  17. कुटज की छाल को दही के साथ लेने पर पथरी विकार दूर होता है।

माजूफल (Majuphal ) का परिचय Majufal ke Fayade

वानस्पतिक नाम : Quercus infectoria Oliv. (Gall Nut) क्वेर्कस इन्फेक्टोरिया जिसे मायाफल, मायुक, मज्जुफल के नाम से भी जाना जाता है। माजूफल फगेसी (Fagaceae) के परिवार से है। इसका वृक्ष सीरिया, तुर्की, यूनान तथा फारस में पाया जाता है। माजूफल वस्तुतः कोई फल नहीं होता है अपितु वृक्ष के अंदर एक कीट का घौंसला होता है जिसके आस पास वृक्ष अपना रसायन छोड़ता है जो गांठों का रूप ले लेती हैं, इस प्रदार्थ को ही माजूफल के नाम से जाना जाता है जो गोल आकार में होता है और कठोर आकार का होता है। पत्तियों के आस पास जब यह कीट पाँच से छह महीने उपरान्त इस खोल को छोड़कर चले जाते हैं तब इसे ही माजूफल के नाम से पहचाना जाता है। माजूफल गुण कर्म में कषाय, कटु, उष्ण, लघु, तीक्ष्ण, रूक्ष, वातशामक, दीपन, ग्राही, स्तम्भक, शिथिलतानाशक होता है। निघण्टु रत्नाकर के मतानुसार माजूफल गर्म, तीक्ष्ण, शिथिलता नाशक, प्रशस्त और वातनाशक गुणों को लिए हुए होता है । 
 
गुण कर्म में माजूफल स्तम्भक, कफनाशक, विषनाशक, ज्वरनाशक, संकोचक और दीपन लिए हुए होता है। माजूफल स्वाद में कषाय, गुण में रुखा, रुक्ष और हल्का है तथास्वभाव में ठंडा एवं कटु विपाक होता है। माजूफल में अन्य रसायनों के अलावा टैनिन काफी मात्रा में पाया जाता है और इसके साथ ही माजूफल में गैलिक एसिड और टैनिक एसिड (Gallic Acid and Tannic Acid) प्रयाप्त मात्रा में प्राप्त होते हैं।

माजूफल के फायदे Benefits of Majuphal Majufal ke Fayade Hindi

आम दस्त में माजूफल बहुत ही उपयोगी होता है। बार बार मरोड़ के साथ पेट में ऐंठन का उठना और पतला मल आने पर माजू फल का क्वाथ बहुत ही लाभकारी होता है। संग्रहणी आईबीएस (Irritable bowel syndrome) में माजूफल बहुत ही उपयोगी होता है।
  • अतिसार और संग्रहणी विकार में माजूफल के साथ दालचीनी का सेवन बहुत ही लाभकारी होता है।
  • आंतरिक रक्तस्राव एवं चलदंत विकार में माजूफल का सेवन लाभकारी होता है।
  • माजूफल का क्वाथ लेने से कंठ शोथ में राहत मिलती है।
  • माजूफल के क्वाथ का नस्य लेने से श्वास-कास में लाभ मिलता है।
  • आत्रजन्य विकारों में माजूफल का क्वाथ गुणकारी होता है।
  • माजूफल क्वाथ के सेवन से मुखपाक में लाभ मिलता है। माजूफल के चूर्ण का पेस्ट बनाकर मुँह पर लगाने से शीघ्र मुखपाक में लाभ मिलता है। माजूफल में एंटी-बैक्टीरियल गुण होते हैं जो मुख के बेक्टेरिया को दूर करते है और मुखपाक में उपयोगी है।
  • माजूफल को सिरके के साथ पीसकर चेहरे पर लगाने चेहरे पर से पुरानी झाइयाँ दूर होती हैं और चेहरे पर प्राकृतिक निखार आता है।
  • माजूफल को नस्य के रूप में लेने से नकसीर में लाभ मिलता है।
  • माजूफल की चाय अस्थमा और शुगर में लाभप्रद होती है।
  • दांतों में दर्द होने पर माजूफल के महीन चूर्ण का मंजन गुणकारी होता है। अधिकाँश आयुर्वेदिक दन्त मंजन में माजूफल का उपयोग किया जाता है।
  • माजूफल का उपयोग प्रसव के बाद गर्भाशय को पूर्व स्थिति में लाने के लिए भी किया जाता है तथा इससे योनि मार्ग के फैलाव को कम किया जाता है।
  • घाव भरने में भी इसका अच्छा प्रभाव मिलता है। माजूफल के पत्ते में मौजूद एथेनॉल एक्सट्रेक्ट घाव भरने की गति को बढ़ा देते हैं।

लवंग (लौंग ) Lavang (Syzgium aromaticum)

लवंग या लौंग भी हमारी रसोई में उपलब्ध होती है और इसे खड़े मसालों के अलावा चाय आदि में प्रयोग किया जाता है। लवंग का अंग्रेजी में नाम क्लोवस (Cloves), जंजिबर रैड हेड (Zanzibar red head), क्लोव ट्री (Clove tree), Clove (क्लोव) होता है और लौंग का वानस्पतिक नाम Syzygium aromaticum (Linn.) Merr & L. M. Perry (सिजीयम एरोमैटिकम) Syn-Eugenia caryophyllata Thunb., Caryophyllus aromaticus Linn. है। भारत में तमिलनाडु और केरल में लौंग बहुतयात से पैदा किया जाता है। 
 
लौंग के भी शीत रोगों में महत्वपूर्ण लाभ होते हैं। गले का बैठना, गले की खरांस, कफ्फ खांसी आदि विकारों में लौंग का उपयोग हितकर होता है। शीत रोगों के अलावा लौंग के सेवन से भूख की वृद्धि, पाचन को दुरुस्त करना, पेट के कीड़ों को समाप्त करना आदि लाभ भी प्राप्त होते हैं। लौंग की तासीर बहुत गर्म होती है इसलिए इसका सेवन अधिक नहीं किया जाना चाहिए। लौंग के अन्य लाभ निम्न हैं।
  • लौंग के तेल से दांत के कीड़ों को दूर किया जाता है और साथ ही मसूड़ों की सूजन को कम करने में सहायक होता है।
  • लौंग के चूर्ण को पानी के साथ लेने से कफ्फ बाहर निकलता है और फेफड़ों में कफ के जमा होने के कारण आने वाली खांसी में आराम मिलता है।
  • लौंग के चूर्ण की गोली को मुंह में रखने से सांसों के बदबू दूर होती है और गले की खरांस भी ठीक होती है।
  • कुक्कर खांसी में भी लौंग के सेवन से लाभ मिलता है।
  • छाती से सबंधित रोगों में भी लौंग का सेवन लाभदायी होता है।

भरड़ (बहेड़ा) बहेड़ा एक ऊँचा पेड़ होता है और इसके फल को भरड कहा जाता है। बहेड़े के पेड़ की छाल को भी औषधीय रूप में उपयोग लिया जाता है। यह पहाड़ों में अत्यधिक रूप से पाए जाते हैं। इस पेड़ के पत्ते बरगद के पेड़ के जैसे होते हैं। इसे हिन्दी में बहेड़ा, संस्कृत में विभीतक के नाम से जाना जाता है। भरड पेट से सम्बंधित रोगों के उपचार के लिए प्रमुखता से उपयोग में लिया जाता है। यह पित्त को स्थिर और नियमित करता है। कब्ज को दूर करने में ये गुणकारी है। यह कफ को भी शांत करता है। भरड एंटी ओक्सिडेंट से भरपूर होता। अमाशय को शक्तिशाली बनाता है और पित्त से सबंदित दोषों को दूर करता है। क्षय रोग में भी इसका उपयोग किया जाता है। भरड में कई तरह के जैविक योगिक होते हैं जैसे की ग्‍लूकोसाइड, टैनिन, गैलिक एसिड, इथाइल गैलेट आदि जो की बहुत लाभदायी होते हैं।

विडंग :
विडंग, बिडंग या बाय बिडंग एक औषधीय पेड़ होता है जिसका उपयोग आयुर्वेदिक दवाओं में प्रधानता से किया जाता है। इसका वानस्पतिक नाम Embelia Ribes होता है। यह हर्ब पुरे भारत में पायी जाती है। मुख्य रूप से विडंग पर्वतीय इलाकों और दक्षिण भारत के नम इलाकों में इसके पेड़ पाए जाते हैं। विडंग का मुख्य गुण धर्म कृमि नाशक होता है।
 
विडंग उदर कृमि, अग्निमंध्य, आद्मान, गृहणी , शूल एवं प्रमेह जैसे रोगों के उपचार के लिए उपयोग में ली जाती है। विडंग वातहर, ऑक्सीकरणरोधी, शुक्राणुजनन-रोधी, जीवाणु-निरोधक, कैंसर निरोधक गतिविधि और अन्य स्थितियों के उपचार के लिए निर्देशित किया जाता है। इसका रस तिक्त और कटु होता है और इसकी तासीर उष्ण होती है।

सोंठ (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae)

अदरक ( जिंजिबर ऑफ़िसिनेल / Zingiber officinale ) को पूर्णतया पकने के बाद इसे सुखाकर सोंठ बनायी जाती है। ताजा अदरक को सुखाकर सौंठ बनायी जाती है जिसका पाउडर करके उपयोग में लिया जाता है। अदरक मूल रूप से इलायची और हल्दी के परिवार का ही सदस्य है। अदरक संस्कृत के एक शब्द " सृन्ग्वेरम" से आया है जिसका शाब्दिक अर्थ सींगों वाली जड़ है (Sanskrit word srngaveram, meaning “horn root,”) ऐसा माना जाता रहा है की अदरक का उपयोग आयुर्वेद और चीनी चिकित्सा पद्धति में 5000 साल से अधिक समय तक एक टॉनिक रूट के रूप में किया जाता रहा है। सौंठ का स्वाद तीखा होता है और यह महकदार होती है। अदरक गुण सौंठ के रूप में अधिक बढ़ जाते हैं। 
 
अदरक जिंजीबरेसी कुल का पौधा है। अदरक का उपयोग सामान्य रूप से हमारे रसोई में मसाले के रूप में किया जाता है। चाय और सब्जी में इसका उपयोग सर्दियों ज्यादा किया जाता है। अदरक के यदि औषधीय गुणों की बात की जाय तो यह शरीर से गैस को कम करने में सहायता करता है, इसीलिए सौंठ का पानी पिने से गठिया आदि रोगों में लाभ मिलता है। सामान्य रूप से सौंठ का उपयोग करने से सर्दी खांसी में आराम मिलता है। अन्य ओषधियों के साथ इसका उपयोग करने से कई अन्य बिमारियों में भी लाभ मिलता है। नवीनतम शोध के अनुसार अदरक में एंटीऑक्सीडेंट्स के गुण पाए जाते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थ को बाहर निकालने में हमारी मदद करते हैं और कुछ विशेष परिस्थितियों में कैंसर जैसे रोग से भी लड़ने में सहयोगी हो सकते हैं। पाचन तंत्र के विकार, जोड़ों के दर्द, पसलियों के दर्द, मांपेशियों में दर्द, सर्दी झुकाम आदि में सौंठ का उपयोग श्रेष्ठ माना जाता है। 
 
सौंठ के पानी के सेवन से वजन नियंत्रण होता है और साथ ही यूरिन इन्फेक्शन में भी राहत मिलती है। सौंठ से हाइपरटेंशन दूर होती है और हृदय सबंधी विकारों में भी लाभदायी होती है। करक्यूमिन और कैप्साइसिन जैसे एंटीऑक्सिडेंट के कारन सौंठ अधिक उपयोगी होता है। सौंठ गुण धर्म में उष्णवीर्य, कटु, तीक्ष्ण, अग्निदीपक, रुचिवर्द्धक पाचक, कब्जनिवारक तथा हृदय के लिए हितकारी होती है। सौंठ वातविकार, उदरवात, संधिशूल (जोड़ों का दर्द), सूजन आदि आदि विकारों में हितकारी होती है। सौंठ की तासीर कुछ गर्म होती है इसलिए विशेष रूप से सर्दियों में इसका सेवन लाभकारी होता है 

सौंठ के प्रमुख फायदे :
  • सर्दी जुकाम में सौंठ का उपयोग बहुत ही लाभकारी होता है। सर्दियों में अक्सर नाक बहना, छींके आना आदि विकारों में सौंठ का उपयोग करने से तुरंत लाभ मिलता है। शोध के अनुसार बुखार, मलेरिया के बुखार आदि में सौंठ चूर्ण का उपयोग लाभ देता है (1)
  • सौंठ / अदरक में लिपिड लेवल को कम करने की क्षमता पाई गई है जिससे यह वजन कम करने में भी सहयोगी होती है। एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल को बढ़ाने में भी सौंठ को पाया गया है। अदरक में लसिका स्तर को रोकने के बिना या बिलीरुबिन सांद्रता को प्रभावित किए बिना शरीर के वजन को कम करने की एक शानदार क्षमता है, जिससे पेरोक्सिसोमल कटैलस लेवल और एचडीएल-कोलेस्ट्रॉल में वृद्धि पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। (2)
  • सौंठ के सेवन से पेट में पैदा होने वाली जलन को भी दूर करने में मदद मिलती है। पेट में गैस का बनाना, अफारा, कब्ज, अजीर्ण, खट्टी डकारों जैसे विकारों को दूर करने में भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। (3) मतली और गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकारों में भी अदरक का चूर्ण लाभ पहुचाता है।
  • कई शोधों से यह स्पष्ट हो चुका है की अदरक में एंटी ट्यूमर के गुण होते हैं और साथ ही यह एक प्रबल एंटीओक्सिडेंट भी होता है।
  • Premenstrual syndrome (PMS) मतली आना और सर में दर्द रहने जैसे विकारों में भी सौंठ का उपयोग लाभ पंहुचाता है। माइग्रेन में भी सौंठ का उपयोग हितकर सिद्ध हुआ है (4)
  • सौंठ का उपयोग छाती के दर्द में भी हितकर होता है। सौंठ जैसे मसाले एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर होते हैं, और वैज्ञानिक अध्ययनों से पता चलता है कि वे ऊतक क्षति और रक्त शर्करा के उच्च स्तर और परिसंचारी लिपिड के कारण सूजन के प्रबल अवरोधक भी हैं। अदरक (Zingiber officinale Roscoe, Zingiberacae) एक औषधीय पौधा है जिसका व्यापक रूप से प्राचीन काल से ही चीनी, आयुर्वेदिक और तिब्बत-यूनानी हर्बल दवाओं में उपयोग किया जाता रहा है और यह गठिया, मोच शामिल हैं आदि विकारों में भी उपयोग में लिया जाता रहा है। अदरक में विभिन्न औषधीय गुण हैं। अदरक एक ऐसा यौगिक जो रक्त वाहिकाओं को आराम देन, रक्त प्रवाह को प्रोत्साहित करने और शरीर दर्द से राहत देने के लिए उपयोगी है। (5)
  • सौंठ में एंटीइन्फ्लामेंटरीप्रॉपर्टीज होती हैं जो शरीर के विभिन्न भागों की सुजन को कम करती हैं और सुजन के कारण उत्पन्न दर्दों को दूर करती हैं। गठिया जैसे विकारों में भी सोंठ बहुत उपयोगी होती है। (6)
  • चयापचय संबंधी विकारों में भी अदरक बहुत ही उपयोगी होती है। (७)
  • क्रोनिक सरदर्द, माइग्रेन जैसे विकारों में भी सोंठ का उपयोग लाभकारी रहता है। शोध के अनुसार अदरक / सौंठ का सेवन करने से माइग्रेन जैसे विकारों में बहुत ही लाभ पंहुचता है। (८)
  • सौंठ में एंटी ओक्सिडेंट होते हैं जो शरीर से विषाक्त प्रदार्थों / मुक्त कणों को बाहर निकालने में मदद करता है। सौंठ के सेवन से फेफड़े, यकृत, स्तन, पेट, कोलोरेक्टम, गर्भाशय ग्रीवा और प्रोस्टेट कैंसर आदि विकारों की रोकथाम की जा सकती है। (9)
  • पाचन सबंधी विकारों को दूर करने के लिए भी सौंठ बहुत ही लाभकारी होती है। अजीर्ण, खट्टी डकारें, मतली आना आदि विकारों में भी सौंठ लाभकारी होती है। क्रोनिक कब्ज को दूर करने के लिए भी सौंठ का उपयोग हितकारी होता है। (10)
  • अदरक से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और संक्रामक बीमारियों से बचने के लिए भी यह बेहतर होती है।अदरक में प्रयाप्त एंटी ओक्सिदेंट्स, एंटी इन्फ्लामेंटरी प्रोपर्टीज होती हैं।
  • अदरक में अपक्षयी विकारों (गठिया ), पाचन स्वास्थ्य (अपच, कब्ज और अल्सर), हृदय संबंधी विकार (एथेरोस्क्लेरोसिस और उच्च रक्तचाप), उल्टी, मधुमेह मेलेटस और कैंसर सहित कई बीमारियों के इलाज की अद्भुद क्षमता है। (11) अदरक में पाए जाने वाले एंटी इन्फ्लामेंटरी गुणों के कारण यह दांत दर्द में भी बहुत ही उपयोगी हो सकती है। (12)
 
पिप्पली : पीपली / पीपल पीपलामूल या बड़ी पेपर को Piper longum(पाइपर लोंगम)के नाम से भी जाना जाता है। संस्कृत में इसे कई नाम दिए गए हैं यथा पिप्पली, मागधी, कृष्णा, वैदही, चपला, कणा, ऊषण, शौण्डी, कोला, तीक्ष्णतण्डुला, चञ्चला, कोल्या, उष्णा, तिक्त, तण्डुला, मगधा, ऊषणा आदि। 
 
बारिस की ऋतू में इसके पुष्प लगते हैं और शरद ऋतु में इसके फल लगते हैं। इसके फल बाहर से खुरदुरे होते हैं और स्वाद में तीखे होते हैं। आयुर्वेद में इसको अनेकों रोगों के उपचार हेतु प्रयोग में लिया जाता है। अनिंद्रा, चोट दर्द, दांत दर्द, मोटापा कम करने के लिए, पेट की समस्याओं के लिए इसका उपयोग होता है। पिप्पली की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका उपयोग ज्यादा नहीं करना चाहिए।

पिप्पल के मुख्य फायदे
  • पिप्पली पाचन में सुधार करती है और भूख को जाग्रत करती है।
  • पिप्पली लीवर को स्वस्थ रखने में मदद करती है।
  • पिप्पली चूर्ण के सेवन से सर दर्द में लाभ मिलता है।
  • नमक और हल्दी के साथ पिप्पली के चूर्ण से दांतों के दर्द में लाभ मिलता है।
  • पिप्पली चूर्ण को शहद के साथ लेने पर मोटापे में लाभ मिलता है, माटापा दूर होता है।
  • सर्दी झुकाम आदि विकारों में भी पिप्पली चूर्ण का लाभ मिलता है।
  • पिप्पली की तासीर गर्म होती है और यह कफ्फ को दूर करता है।
  • वात जनित विकारों में पिप्पली के चूर्ण से लाभ मिलता है।
  • दमा और सांस फूलना जैसे विकारों में भी पिप्पली चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।

मरोड़ फ़ली East Indian screw tree (Helicteres isora Linn.)

मरोड़फ़ली एक छोटे झाड़ीनुमा पादप के लगने वाला फल है। यह फली एक दूसरे पर रस्सी की भाँती बल खाए हुए होती है इस कारण से ही इसे मरोड़फ़ली के नाम से पहचाना जाता है। वैसे तो यह सामान्य रूप से पुरे भारत में पाई जाती है लेकिन विशेष रूप से मध्य भारत और पश्चिम भारत के उष्ण इलाकों में यह प्रधानता से पाई जाती है। विशेष रूप से बिहार, पश्चिम बंगाल, मध्य, पश्चिम एवं दक्षिण भारत के वन्य प्रदेशों में यह अधिकता से प्राप्त होती है। मरोड़फ़ली का वानस्पतिक नाम Helicteres isora Linn. (हेलिक्टेरेस आइसोरा) Syn-Helicteres roxburghii G. Don है और इसका कुल Sterculiaceae (स्टरक्यूलिएसी) है जिसे अंग्रेजी में East Indian screw tree ईस्ट इण्डियन स्क्रू ट्री के नाम से जाना जाता है। 
 
इस वृक्ष की छाल, जड़ और फल का उपयोग किया जाता है। मरोड़फ़ली को हिंदी में मारोसी, भेन्डु, मरफली, जोंकाफल, मरोरफली आवर्तमाला, आवर्तनी, आवर्तफला आदि नामो से जाना जाता है। मरोड़फली का स्वाद मीठा, हल्का और कड़वा होता है। इसका प्रधान रूप से अतिसार, मरोड़युक्त पेचिस, संग्रहणी आईबीएस (Irritable bowel syndrome) में उपयोग होता है। गुण कर्म के दृष्टिकोण से मरोड़फ़ली कषाय, शीत, लघु, कफपित्तशामक, अतिसार, शूल, रक्तदोष तथा कृमिनाशक होती है तथा मरोड़फली की मूल एवं काण्ड-त्वक् कफनिसारक, शूलशामक तथा विबन्धकारक होती है।

मरोड़फ़ली के फायदे Benefits of Marodfali

आंत्रगत विकृति यथा खराब पाचन के कारण बार बार मरोड़ का उठना, कच्चे मल का निकलना, बार बार शौच का आना आदि विकारों में मरोड़फ़ली लाभदाई होती है। पेट दर्द होने पर मरोड़फ़ली का क्वाथ लाभदाई होता है। पेट का फूलना, आफरा आने पर इसका क्वाथ लाभदाई होता है।
  • अतिसार विकार में मरोड़फ़ली लाभदाई होती है। मरोडफली, अतीस और कुटज का चूर्ण लेने पर अतिसार में लाभ मिलता है।
  • मरोड़फ़ली कफ और पित्त का शमन करती है।
  • मरोड़फ़ली त्वचा रोग और कृमि नाशक होती है।
  • आमातिसार, दस्त के साथ ऑव के आने पर मरोड़फ़ली का क्वाथ लाभदाई होता है।
  • त्वचा के दाग धब्बे दूर करने के लिए मरोड़फ़ली उपयोगी होती है। इसकी फली को पीस कर इसके लेप को चेहरे पर लगाने से दाग धब्बे, झुर्रियां और बढ़ती उमर के प्रभाव को दूर किया जा सकता है।
  • खुनी अतिसार में मरोड़फ़ली के चूर्ण को रात भर पानी में भीगने दें और सुबह इसके पानी को पीने से खुनी अतिसार में लाभ मिलता है।
  • किसी भी प्रकार के पेट दर्द में मरोड़फ़ली के चूर्ण को देसी घी में भून कर शहद के साथ चाटने से लाभ मिलता है।
  • वमन (उल्टी) आने पर मरोड़फ़ली के चूर्ण के सेवन से लाभ मिलता है।
  • मरोड़फ़ली कृमि नाशक होती है। मरोड़ फली और बायबिडंग का काढ़ा का सेवन करने से पेट के कृमि दूर होते हैं। 
The author of this blog, Saroj Jangir (Admin), is a distinguished expert in the field of Ayurvedic Granths. She has a diploma in Naturopathy and Yogic Sciences. This blog post, penned by me, shares insights based on ancient Ayurvedic texts such as Charak Samhita, Bhav Prakash Nighantu, and Ras Tantra Sar Samhita. Drawing from an in-depth study and knowledge of these scriptures, Saroj Jangir has presented Ayurvedic Knowledge and lifestyle recommendations in a simple and effective manner. Her aim is to guide readers towards a healthy life and to highlight the significance of natural remedies in Ayurveda.

सन्दर्भ Sources

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