सतगुर लई कमाँण करि हिंदी मीनिंग Satguru Layi Kamaan Kari Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

सतगुर लई कमाँण करि हिंदी मीनिंग Satguru Layi Kamaan Kari Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

सतगुर लई कमाँण करि, बाँहण लागा तीर।
एक जु बाह्यां प्रीति सूँ, भीतरि रह्या सरीर॥
Satagur Laee Kamaann Kari, Baanhan Laaga Teer.
Ek Ju Baahyan Preeti Soon, Bheetar Rahya Sareer.
Or

सतगुरु लई कमांण करि, बाहण लागा तीर।
एक जु बाह्या प्रीति सूं, भीतरि रह्या शरीर।
Sataguru Laee Kamaann Kari, Baahan Laaga Teer.
Ek Ju Baahya Preeti Soon, Bheetari Rahya Shareer.
 
सतगुर लई कमाँण करि हिंदी मीनिंग Satguru Layi Kamaan Kari Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning

कबीर साखी के शब्दार्थ Word Meaning of Kabir Sakhi

सतगुर -गुरु, उपदेश देने वाला।
लई -ले ली है, धारण कर ली है.
कमाँण करि-तीर हाथों में ले ही है.
बाँहण -चलाने लगे हैं, गुरु ज्ञान के बाण चलाने लगे हैं।
लागा तीर-तीर लग चुके हैं/ज्ञान के बाण से साधक घायल हो चुका है।
एक जु -एक बाण
बाह्यां- चलाया.
प्रीति सूँ- प्रेम से.
भीतरि रह्या सरीर- शरीर के भीतर ही रह गया/आत्मा में प्रवेश कर गया.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning

सतगुरु ने प्रेम से बाण चलाना शुरू कर दिया है. यह ज्ञान/ प्रेम के बाण आत्मा में ही अवरुद्ध हो गया है. भाव है की गुरु ने अपने उपदेशों के माध्यम से शिष्य को ज्ञान दिया है जो साधक के भीतर तक प्रवेश कर चूका है. सतगुरु के बाणों से/ उपदेशों से शिष्य शरीर और आत्मा दोनों से घायल हो चुके हैं. इस साखी में धनुष और तीर से आशय है की गुरु के उपदेश. गुरु के उपदेशों से शिष्य आंतरिक और बाह्य रूप दोनों से घायल हो चूका है, उसे सत्य का बोध हो गया है. इस साखी में रुप्कतिश्योक्ति अलंकार का उपयोग हुआ है.

सतगुर साँवा सूरिवाँ, सबद जू बाह्या एक।
लागत ही में मिलि गया, पढ़ा कलेजै छेक।
Satagur Saanva Soorivaan, Sabad Joo Baahya Ek.
Laagat Hee Mein Mili Gaya, Padha Kalejai Chhek.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning

सतगुरु सच्चे शूरवीर हैं जिन्होंने शब्द (साखी/उपदेश) रूपी बाण चलाया है जिसके लगते ही साधक का अहंकार नष्ट हो गया है और कलेजे में छेद हो गया है. गुरु के शब्द बाण लगने पर साधक का अहंकार नष्ट हो गया है. कलेजे में दरार पड़ने से आशय है की साधक का अहम् समाप्त हो गया है और वह सत्य को समझ पाने में सक्षम हो गया है. इस साखी में रुपतिश्योक्ति और अनुप्रास अलंकार का विधान है.  

सतगुर मार्‌या बाण भरि, धरि करि सूधी मूठि।
अंगि उघाड़ै लागिया, गई दवा सूँ फूंटि।
Satagur Maar‌ya Baan Bhari, Dhari Kari Soodhee Moothi.
Angi Ughaadai Laagiya, Gaee Dava Soon Phoonti.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning

सतगुरु ने शब्द बाण चलाया और सीधे निशाना लगाया जिससे साधक के सभी अंग उघड़ने लगे और विषय वासना रूपी जंगल जल कर राख हो गया. जैसे दावानल जलता है वैसे ही साधक के सभी विषय विकार जल गए हैं. सीढ़ी मुट्ठी से भाव है की सतगुरु अनेकों बार शिष्य को ज्ञान देता है लेकिन वह ज्ञान के प्रति सचेत नहीं रहता है इसलिए वह इस बार निशाना लगा कर साधक के अवगुणों पर ही प्रहार करता है और शिष्य के के अहम को समाप्त कर देता है. इस साखी में सांगरूपक अलंकार का विधान है. (सतगुर लई कमाँण करि हिंदी मीनिंग Satguru Layi Kamaan Kari Hindi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning)

हँसै न बोलै उनमनी, चंचल मेल्ह्या मारि।
कहै कबीर भीतरि भिद्या, सतगुर कै हथियार।
 
Hansai Na Bolai Unamanee, Chanchal Melhya Maari.
Kahai Kabeer Bheetari Bhidya, Satagur Kai Hathiyaar.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning

इस साखी में कबीर साहेब वाणी देते हैं की सतगुरु के ज्ञान बाण ने शिष्य/साधक की चंचलता को समाप्त कर दिया है. साधक की हंसी और चंचलता अब स्थायित्व में परिवर्तित हो गई है. इन्द्रिय चंचलता के समाप्त हो जाने पर व्यक्ति उनमुना सा हो जाता है. भाव है की गुरु के ज्ञान के कारण मन अब ब्रह्म स्थिति में आ गया है और अब वह ब्रह्म एकाकार होकर बोलने या चुप रहने की स्थिति से भी ऊपर उठ गया है. शरीर विषय वासना से ऊपर उठकर केन्द्रित हो गया है.

गूँगा हूवा बावला, बहरा हुआ कान।
पाऊँ थै पंगुल भया, सतगुर मार्‌या बाण।

Goonga Hoova Baavala, Bahara Hua Kaan.
Paoon Thai Pangul Bhaya, Satagur Maar‌ya Baan.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning
गुरु के उपदेश के कारण जो इन्द्रियाँ अब विषय वासना से ऊपर उठ चुकी हैं और गूंगी, पागल और कान बहरे के समान हो गई हैं. जब सतगुरु ने ज्ञान का बाण मारा तो पाँव में लकवा मार चूका है. इस साखी का भाव है की सतगुरु ने ज्ञान का बाण चलाया है जिससे समस्त इन्द्रियाँ शांत हो चुकी हैं. शिष्य के बोलने की शक्ति समाप्त हो गई है और उसकी मति भी भ्रष्ट हो गई है. साधक के कान भी अब विषय वासनाओं के प्रति जागरूक नहीं है. स्वार्थ की दौड़ अब समाप्त हो चुकी है.  

पीछे लागा जाइ था, लोक वेद के साथि।
आगै थैं सतगुर मिल्या, दीपक दीया हाथि।

Peechhe Laaga Jai Tha, Lok Ved Ke Saathi.
Aagai Thain Satagur Milya, Deepak Deeya Haathi.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning
कबीर साहेब की वाणी है की अब तक तो साधक लोगों की देखा देखी शास्त्रीय और किताबी ज्ञान का ही अनुसरण करता था. आगे चलकर सतगुरु उसे सतगुरु मिल गए इन्होने उसको सत्य के ज्ञान रूपी उपदेश दिया जिससे उसे अपने घट के अंदर ही इश्वर का आभास हुआ है. साधक लोकाचार और शास्त्राचार को गुरु ज्ञान के उपरान छोड़ चूका है. सतगुरु ने उसे हाथों में ज्ञान का दीपक थमा दिया है जिससे अज्ञान का अन्धकार दूर हो गया है.

दीपक दीया तेल भरि, बाती दई अघट्ट।
पूरा किया बिसाहूणाँ, बहुरि न आँवौं हट्ट।

Deepak Deeya Tel Bhari, Baatee Daee Aghatt.
Poora Kiya Bisaahoonaan, Bahuri Na Aanvaun Hatt.

कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning
सतगुरु ने साधक के हाथों में सत्य का दीपक थमा दिया है और उसमे ज्ञान रूपी तेल भर दिया है जो कभी भी घटने वाला नहीं है. इस भाँती जीवन का सौदा पूर्ण हो गया है. भाव है की ऐसा सौदा अब दुबारा नहीं होने वाला है. कबीर साहेब ने गुरु की महिमा का वर्णन किया है की गुरु के उपदेश के कारण आवागमन का चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता है.

ग्यान प्रकास्या गुर मिल्या, सो जिनि बीसरि जाइ।
जब गोबिंद कृपा करी, तब गुर मिलिया आइ।
 
Gyaan Prakaasya Gur Milya, So Jini Beesari Jai.
Jab Gobind Krpa Karee, Tab Gur Miliya Aai.
 
कबीर साखी का हिंदी मीनिंग Kabir Doha / Sakhi Hindi Meaning
इश्वर की कृपा हो जाने के उपरान्त गुरु से भेंट हुई है. गुरु से भेंट के उपरान्त ज्ञान का प्रकाश उत्पन्न हुआ है. गुरु से मिलन इश्वर की कृपा से ही संभव हुआ है. 

माया तजि न जाय अवधू , माया तजी न जाय ।
गिरह तज के बस्तर बांधा, बस्तर तज के फेरी ।
काम तजे तें क्रोध ना जायी , क्रोध तजे तें लोभा ।
लोभ तजे अहँकार न जाई, मान-बड़ाई-सोभा ।
मन बैरागी माया त्यागी, शब्द में सुरत समाई ।
कहैं कबीर सुनो भाई साधो, यह गम बिरले पायी।
 
ह्रदय मांहीं आरसी, और मुख देखा नहीं जाय
मुख तो तब ही देखिये, जब दिल की दुविधा जाय

ऊंचे महल चुनावते, ने करते होड़म होड़
ते मंदिर खाली पड़े, सब गये पलक में छोड़

आया है सब जाएगा, राजा रंक फ़कीर
कोई सिंहासन चढ़ चले, कोई बंधे ज़ंजीर

सब आया एक ही घाट से, और उतरा एक ही बाट
बीच में दुविधा पड़ गयी, तो हो गये बारह बाट

घाटे पानी सब भरे, अवघट भरे न कोय
अवघट घाट कबीर का, भरे सो निर्मल होय

जो तू साचा बानिया, तो साची हाट लगाए
अंतर झाड़ू देई के, यह कचरा देत बहाए

थारा रंग महल में, अजब शहर में
आजा रे हंसा भाई,
निर्गुण राजा पे, सिरगुण सेज बिछाई
अरे हां रे भाई, उना देवलिया में देव नांहीं,
झालर कूटे गरज कसी?
अरे हां रे भाई, बेहद की तो गम नांहि,
नुगुरा से सेन कसी?
अरे हां रे भाई, अमृत प्याला भर पाओ
भाईला से भ्रांत कसी?
अरे हां रे भाई, कहें कबीर विचार
सेन मांहीं सेन मिली
सिर्गुण = सगुण = साकार ब्रह्म
सेज = पलंग
देवलिया = मंदिर
झालर = घंटी
कसी = कैसी
गम = (किसी वस्तु या विषय में) प्रवेश, पहुंच
नुगुरा = निगुरा = जिसका गुरु ना हो
भ्रांत = शक, भ्रम, धोखा
सेन = संकेत, इशारा

साहिब तेरी साहिबी हर घट रही समाए
जैसे मेहंदी के पात में लाली लखी ना जाए
लाली मेरे लाल की, मैं जब देखूं तब लाल
लाली देखन मैं गयी, तो मैं हो गयी लालम लाल
काठ के बीच में अग्नि जैसे, ऐसे तिल में तेल निवास है
दूध के बीच में घी जैसे, ऐसे फूलन के बीच में बास है
निर्गुण गालियां सांकरी म्हारी हेली
वहाँ चढ़यो नहीं जाए
वहाँ चढ़े तो पिया मिले म्हारी हेली
(थारो) आवा गमन मिट जाए
(यो तो पाछो जनम नहीं आये)
म्हारी हेली वो चालो गुराजी रा (हमारा) देस
म्हारे लाग्या भजन (शबद) वाला बाण म्हारी हेली
चालो हमारा देस
कहाँ उगे कहाँ आसते, म्हारी हेली
कहाँ उजाला होय?
यहीं उगे ने यहीं आसते, म्हारी हेली
यहीं उजाला होय
म्हारीं हेली वो चालो हमारा देस। 

कहाँ गरजे ने कहाँ बरसे, म्हारी हेली
कहाँ सूखा का हरिया होय?
यहीं गरजे ने यहीं बरसे, म्हारी हेली
यहीं सूखा का हरिया होय
म्हारीं हेली वो चालो हमारा देस। 

निर्गुण का बाज़ार में म्हारी हेली
हीरा को होवे व्यापार
सुगुरा मानव तो सौदो करे म्हारी हेली
ई तो नुगुरा मूल गंवाए
म्हारीं हेली वो चालो हमारा देस। 

अनहद का मैदान में म्हारी हेली
म्हारा साहिब जी की सेज
कहे कबीर धर्मदास से म्हारी हेली
न तो मरे न बूढ़ा होय
म्हारीं हेली वो चालो हमारा देस।

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