संत रविदास अमृतवाणी दोहावली लिरिक्स Sant Ravidaas Amritwaani Lyrics (Dohawali)

संत रविदास अमृतवाणी दोहावली लिरिक्स Sant Ravidaas Amritwaani Lyrics (Dohawali) Ravidaas Jayanti Special Bhajan

हरि सा हीरा छांड कै, करै आन की आस
ते नर जमपुर जाहिंगे, सत भाषै रविदास।
हरी रूपी रत्न को छोड़कर, माया की आशा करने वाले व्यक्ति यमराज को ही प्राप्त होंगे, सत्य वचन श्री रविदास जी का।

जा देखैै घिन ऊपजै, नरक कुण्ड में बास,
प्रेम भक्ति से ऊद्धरै परगट जन रैदास।।

जिन व्यक्तियों को देखने मात्र से घिन्न उत्पन्न होती है और जिनका वास ही नरक कुंड के समान होता है, ऐसे व्यक्ति भी भक्ति (प्रेम) से उद्धार पा जाते हैं और वे ईश्वर के पास स्थान पाते हैं। प्रेम भक्ति का ऐसा दिव्य परिणाम होता है।

ऐसा चाहूँ राज मैं जहाँ मिलै सबन को अन्न,
छोट बड़ो सब सम बसै, रैदास रहै प्रसन्न।।
(रैदास रहै प्रसन्न)

आदर्श राज्य की कल्पना करते हुए रैदास जी चाहते हैं की एक ऐसा राज मुझे पसंद है जिसमे छोटा और बड़ा सभी वास करते हों और सभी को अन्न मिले, भोजन मिले और सभी को समान दर्जा दिया जाए। रैदास वहा सभी प्रसन्न रहें।

पराधीनता पाप है, जान लेहु रे मीत।
रैदास दास पराधीन सौं, कौन करै है प्रीत॥
(रैदासा कौन करै है प्रीत)

पराधीनता एक बड़ा पाप है, पराधीनता से बड़ा अन्य कोई पाप नहीं हो सकता है। रैदास जी कहते हैं की पराधीन जन से कोई कैसे प्रेम कर सकता है।

रविदास मदिरा का पीजिए, जो चढ़ी चढ़ी उतराय।
नाम महारस पीजिए, जो चढ़ नहीं उतराय।

रविदास जी कहते हैं की मदिरा को क्या पीना जिसका नशा क्षणिक होता है, वह तो कुछ समय उपरान्त उतर जाता है, भक्तिरूपी महारस का पान करो जिसका नशा एक बार चढ़ जाने के उपरान्त उतरता नहीं है।

रेन गवाई सोय कर, दिवस गवायों खाय,
हीरा यह तन पाय कर कौड़ी बदले जाए,

जात-पात के फेर में उरझी रहे सब लोग,
मनुष्यता को खात है, रविदास जात का रोग

क्या मथुरा क्या द्वारिका, क्या काशी हरिद्वार,
रविदास खोजा दिल अपना, ताऊ मिला दिलदार।

LIVE: Sant Ravi Das Jayanti Special | Sant Ravi Das Amritwani/Dohawali | संत रविदास अमृतवाणी दोहावलीसंत रविदास अमृतवाणी दोहावली लिरिक्स Sant Ravidaas Amritwaani Lyrics
Next Post Previous Post
No Comment
Add Comment
comment url