कबीर अमृतवाणी लिरिक्स मीनिंग Kabir Amritvani Lyrics Meaning Hindi

कबीर अमृतवाणी लिरिक्स मीनिंग Kabir Amritvani Lyrics Meaning, Kabir Amritvaani Neeraj Arya's Kabir Cafe GIFLIF.

साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय,
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय,
माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर,
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल,
लाली ढूंढ़न मैं चली, मैं भी हो गई लाल। 

कबीर अमृतवाणी लिरिक्स मीनिंग हिंदी Kabir Amritvani Hindi Meaning. Kabir Amritvaani Neeraj Arya's Kabir Cafe GIFLIF.

साँई इतना दीजिए, जामे कुटुम समाय
मैं भी भूखा ना रहूँ, साधु न भूखा जाय :
ईश्वर से अनुरोध है की वह इतना दे जिसमे कुटुंब समां सके। कुटुंब समाने से आशय है की घर परिवार का खर्च अच्छे से चल सके, गुजारा हो सके। इसके अतिरिक्त ना तो साधक भूखा रहे और नाहीं आया हुआ कोई संत/साधू भूखा रह पाए। इन पंक्तियों में साहेब बस उतना ही चाहते हैं जिससे गुजारा हो पाए। वर्तमान में मिनिमलिस्ट विचार धारा को साहेब ने बहुत पूर्व में समझ कर लोगों को इस और अग्रसर होने को कहा। जितना हम सांसारिक, भौतिक संसाधनों से जुड़ते हैं, उनमे व्यस्त रहते हैं उतना ही स्वंय को घिरा हुआ पाते हैं और मानसिक रूप से परेशान रहते हैं। इसलिए संग्रह की प्रवृति को त्यागना ही होगा।
साहेब ने कई स्थानों पर कहा है की सर पर गांठड़ी बांधकर किसी को संसार से  जाते हुए नहीं देखा, यहीं पर सब धरा रह जाना है।

माया मरी न मन मरा, मर मर गए शरीर,
आषा तृष्णा ना मरी, कह गये दास कबीर :
माया कभी मरती नहीं है, वह इस संसार में सदा से है और आगे भी रहेगी। माया जीव को अपने जाल में फांसने पर लगी रहती है। व्यक्ति आते हैं, चले जाते हैं। आशा और तृष्णा जो माया ही हैं कभी नहीं मरती है। कबीर साहेब का यही सन्देश है।

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय :
किताबी ज्ञान को प्राप्त करके सम्पूर्ण जगत विनाश को प्राप्त हो रहा है लेकिन महज किताबी ज्ञान से कोई विद्वान/पंडित तो नहीं बना है। जिसने भी ढाई अक्षर प्रेम के पढ़ लिए हैं वही पंडित है।

लाली मेरे लाल की, जित देखूँ तित लाल,
लाली ढूंढ़न मैं चली, मैं भी हो गई लाल :
साधक ईश्वर की महिमा को देखने/खोजने को तत्पर है। वह जिधर भी देखता है उसे स्वामी की लाली ही दिखाई देती है। लाली को जब वह ढूंढने के लिए जाती है तो स्वंय भी लाल हो जाती है, उसी के रंग में रंग जाती है। 

Kabir Amritvaani | Neeraj Arya's Kabir Cafe | GIFLIF

Saani Itana Dijie, Jaame Kutum Samaay,
Main Bhi Bhukha Na Rahun, Saadhu Na Bhukha Jaay,
Maaya Mari Na Man Mara, Mar Mar Gae Sharir,
Aasha Trshna Na Mari, Kah Gaye Daas Kabir.
Pothi Padhi Padhi Jag Mua, Pandit Bhaya Na Koy,
Dhai Aakhar Prem Ka, Padhe So Pandit Hoy.
Laali Mere Laal Ki, Jit Dekhun Tit Laal,
Laali Dhundhan Main Chali, Main Bhi Ho Gai Laal.
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