सायर नाहीं सीप बिन हिंदी मीनिंग
सायर नाहीं सीप बिन, स्वाति बूँद भी नाहिं।
कबीर मोती नीपजै, सुन्नि सिषर गढ़ माँहिं॥
Sayar Nahi Seep Bin, Swati Bund Bhi Nahi
Kabir Moti Neepaje, Suni Sikhar Gadh Mahi.
कबीर दोहा हिंदी शब्दार्थ
सायर : सागर.
सीप बिन : सीप नहीं है.
स्वाति बूँद
मोती नीपजै : मोती उपज रहे हैं.
सुन्नि : शून्य.
सिषर : शिखर.
गढ़ माँहि : के मांह, अन्दर.
कबीर दोहा हिंदी मीनिंग
शून्य शिखर, सहसत्रार में सीप, सागर और स्वाति बूंद कुछ भी नहीं है फिर भी ज्ञान रूपी मोती उत्पन्न हो रहे हैं. शून्य शिखर गढ मे निर्गुण ब्रह़्म रूपी मोती से आशय है की साधना के द्वारा कुंडलिनी जाग्रत हो रही है और ज्ञान की प्राप्ति हो रही है. उल्लेखनीय है की मोती की उत्पत्ति तो गहन समुद्र में संभव है लेकिन यहाँ विरोधाभाष है की शिखर में मोती उत्पन्न हो रहा है. भाव है की शून्य शिखर में ब्रह्म के दर्शन की प्राप्ति हो रही है. इस साखी में साधना के द्वारा ब्रह्म की प्राप्ति एंव दर्शन की प्राप्ति के बारे में बताया गया है.
इस साखी में शून्य शिखर, सहस्त्रार, सागर, स्वाति बूंद और ज्ञान रूपी मोती के मध्य एक विरोधाभास वर्णित है। यह बताता है कि ज्ञान, जो आत्मा की स्वरूपता और ब्रह्म के अनुभव को प्रकट करता है, शून्य शिखर में उत्पन्न हो रहा है, जो कि आध्यात्मिक साधना के द्वारा संभव होता है।
यह साखी शिखर, सहस्त्रार, सागर, स्वाति बूंद, और ज्ञान के संबंध में एक गहरा अर्थ दर्शाती है। शून्य शिखर गढ में ब्रह्म रूपी मोती की उत्पत्ति और ज्ञान की प्राप्ति बताई जा रही है, जो साधना और ध्यान के माध्यम से संभव होता है।
शून्य शिखर और सहस्त्रार मार्ग में, कुंडलिनी शक्ति जाग्रत होकर साधक को आत्म-साक्षात्कार और अनुभव की प्राप्ति होती है। स्वाति बूंद के माध्यम से साधक को आत्म-स्वरूप की प्राप्ति होती है, और ज्ञान रूपी मोती के माध्यम से उसे ब्रह्म दर्शन होता है। इससे यह संदेश मिलता है कि साधक ज्ञान के माध्यम से अपने असली स्वरूप का अनुभव करता है और अपने धर्म के द्वारा आत्मा को प्रकट करता है।
इस साखी में दर्शाया गया है कि ज्ञान और साधना द्वारा साधक ब्रह्म के दर्शन और अनुभव की प्राप्ति कर सकता है। यह शिखर साधक के आध्यात्मिक सफलता के पथ में उत्पन्न हो रहा है, जो सच्चे ज्ञान और साधना के माध्यम से संभव होता है।
इस साखी में कबीर दास जी ने अपने अद्भुत कविता के माध्यम से आत्म-ज्ञान और आत्म-समर्पण के महत्वपूर्ण तत्वों को स्पष्ट किया है।
शरीर रूपी किले में जो ब्रह्मरंध्र है, उसमें समुद्र, स्वाति नक्षत्र की बूंद या सीप जैसी किसी भी सांसारिक वस्तु का स्थान नहीं है। फिर भी, उस ब्रह्मरंध्र में मोक्ष रूपी मोती उत्पन्न होता है, जो आत्मा की मुक्ति और आनंद का प्रतीक है।
इस साखी में यह संदेश दिया जा रहा है कि साधक के अन्तर्मन के गहरे किनारे पर एक अद्भुत ज्ञान का दर्शन हो सकता है। शरीर, मन और इंद्रियों से परे स्थित आत्मा वह सत्य है जिसमें मोक्ष का अनुभव होता है। यह साखी आत्म-समर्पण और आत्म-साधना के महत्वपूर्ण प्रश्नों पर विचार करने को प्रेरित करती है और साधक को आत्मा की प्राप्ति के मार्ग में अनुगामी होने के लिए प्रेरित करती है।
कबीर दास जी की यह साखी आत्म-साक्षात्कार और आनंद के प्रतीक के बारे में अद्भुत ज्ञान देती है और विश्वास दिलाती है कि वास्तविक सुख और मोक्ष शरीर, मन और संसार से परे आत्मा में है। इस संदेश के माध्यम से, वह सच्चे आनंद और शांति को प्राप्त करने के लिए साधना और ध्यान के मार्ग का महत्व बताते हैं।
शाब्दिक अर्थ में, सागर, सीप, और स्वाति की बूंद ये सभी सांसारिक वस्तुएं होती हैं, जो ज्ञान और आत्म-समर्पण के द्वारा पार की जाती हैं। लेकिन शून्य शिखर गढ में कबीर दास जी ने निर्गुण ब्रह्म के दर्शन किए हैं, जो कि सभी सांसारिक वस्तुओं से परे हैं और आत्मा के अनुभव को प्रकट करते हैं। इस संदेश में उन्होंने यह दिखाया है कि ज्ञान, ध्यान और आत्म-साधना के माध्यम से साधक निर्गुण ब्रह्म का अनुभव कर सकता है और सांसारिक बंधनों से मुक्त हो सकता है।
भावार्थ में, शून्य शिखर गढ में सागर, सीप और स्वाति की बूंद की उपलब्धि नहीं है, जिससे साधक को निर्गुण ब्रह्म के दर्शन होते हैं और उसे आत्म-समर्पण और आत्म-साधना के माध्यम से आत्मा की प्राप्ति होती है। इससे यह संदेश मिलता है कि साधक को सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर आत्म-ज्ञान और आत्म-समर्पण के मार्ग में प्रगति करने की आवश्यकता है।
कबीर दास जी के इस अत्यंत गहरे और उपयुक्त संदेश के माध्यम से, आपको आत्म-ज्ञान और सत्य के प्रति उनके अद्भुत अनुभव के बारे में जानकारी मिलती है। आत्मा के विकास और आत्म-समर्पण के लिए साधना के मार्ग का वर्णन किया गया है, जो साधक को निज असली स्वरूप का परिचय करता है।
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