कुन्ती स्तुति जानिये अर्थ महत्त्व
कुन्ती स्तुति जानिये अर्थ महत्त्व
कुन्ती स्तुति क्या है : भगवान श्री कृष्ण परीक्षित महाराज की रक्षा करने के बाद जब द्वारका जाने के लिए रवाना होते हैं तो मार्ग में उनको कुंती जो उनकी भुआ लगती है, मिलती हैं।
अतः श्री कृष्ण की पुनः द्वारिका धाम लौटने के वक़्त पर कुंती (पृथा था राजकुमारी कुंती का नाम) से कहते हैं की तुम्हारी कुछ इच्छा हो तो बताओ, इस पर कुंती अपने मन की बात कहती है जो कुंती स्तुति के रूप में है, इसका हिंदी अर्थ निचे दिया गया है।
अतः श्री कृष्ण की पुनः द्वारिका धाम लौटने के वक़्त पर कुंती (पृथा था राजकुमारी कुंती का नाम) से कहते हैं की तुम्हारी कुछ इच्छा हो तो बताओ, इस पर कुंती अपने मन की बात कहती है जो कुंती स्तुति के रूप में है, इसका हिंदी अर्थ निचे दिया गया है।
नमस्ये पुरुषं त्वद्यमीश्वरं प्रकृते: परम् ।
अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम् ॥१॥
अलक्ष्यं सर्वभूतानामन्तर्बहिरवास्थितम् ॥१॥
हे ईश्वर आप अलक्ष्य हैं (आपके बारे में कोई अनुमान नहीं लगा सकता है, आप अभेदी हैं। आप समस्त जीवों में बाहर और भीतर एक रूप में समाये हुए हैं, व्याप्त हैं। ऐसे आदि पुरुष जो इन्द्रियातीत हैं (इन्द्रियों से जिनको जाना नहीं जा सकता है )
मायाजवनिकाच्छन्नमज्ञाधोक्षमव्ययम् ।
न लक्ष्यसे मूढदृशा नटो नाटयधरो यथा ॥२॥
न लक्ष्यसे मूढदृशा नटो नाटयधरो यथा ॥२॥
इन्द्रियों से जो कुछ जाना जा सकता है आप उसके अंदर / भीतर व्याप्त रहते हैं। आप माया के परदे में ढके हुए रहते हैं। मैं (कुंती) आपको कैसे जान सकती हूँ, मैं तो आपके सामने अबोध हूँ। नट जैसे स्वांग रचकर दूसरा भेष धारण कर लेता है और उसे पहचान पाना मुश्किल होता है, मूढ़ (मुर्ख व्यक्ति) उसे पहचान नहीं सकते हैं। उसे लक्ष्य नहीं कर पाते हैं। ऐसे ही हम आपको पहचान नहीं सकते हैं।
तथा परमहंसानां मुनीनाममलात्मनाम् ।
भक्तियोगविधानार्थं कथं पश्येम हि स्त्रिय: ॥३॥
भक्तियोगविधानार्थं कथं पश्येम हि स्त्रिय: ॥३॥
आप तो परम हंस (शुद्ध हृदय वाले) हैं और आप जीवात्मा में भक्ति को प्रकट करने के लिए प्रकट हुए हैं। ऐसे में हम तुच्छ बुद्धि/अल्प बुद्धि स्त्री आपको कैसे पहचान सकती हैं।
कृष्णाय वासुदेवाय देवकीनन्दनाय च ।
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम: ॥४॥
नन्दगोपकुमाराय गोविन्दाय नमो नम: ॥४॥
हे ईश्वर, आप श्री कृष्ण वासुदेव, देवकीनन्दन, नन्दगोप कुमार (लाडले) हैं, हे गोविन्द आपको बारम्बार नमन (प्रणाम) है।
नम: पङ्कजनाभाय नम: पङ्कजमालिने ।
नम: पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङ्घ्रये ॥५॥
नम: पङ्कजनेत्राय नमस्ते पङ्कजाङ्घ्रये ॥५॥
हे ईश्वर, आपकी नाभि में पंकज प्रकट हुआ है (भगवान श्री ब्रह्मा जी का जन्म स्थान), आप ऐसे ही कमलों की माला को धारण करते हैं और आपके नेत्र भी कमल के समान (सुन्दर और विशाल) हैं। आपके चरण कमल के सादृश्य हैं, मैं इनको बार बार नमन करती हूँ।
यथा हृषीकेश खलेन देवकी कंसेने रुद्धातिचिरं शुचार्पिता ।
विमोचिताहं च सहात्मजा विभो त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्गणात् ॥६॥
विमोचिताहं च सहात्मजा विभो त्वयैव नाथेन मुहुर्विपद्गणात् ॥६॥
हिंदी अर्थ आप हृषिकेश हैं, आपने खल (दुष्ट) कंस के द्वारा चिरकाल से शोकग्रस्त और कैद की गई देवकी की रक्षा की और ऐसे ही आपने मेरे पुत्रों सहित मेरी रक्षा की है। हे ईश्वर आप आप हमारे स्वामी हैं और आप सर्वशक्तिशाली हैं।
विषान्महाग्ने: पुरुषाददर्शनादसत्सभाया वनवासकृच्छ्रत: ।
मृधे मृधे sनेकमहारथास्त्रतो द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरे sभिसक्षिता: ॥७॥
मृधे मृधे sनेकमहारथास्त्रतो द्रौण्यस्त्रतश्चास्म हरे sभिसक्षिता: ॥७॥
हे श्री कृष्ण आपने विष से, लाक्षागृह की आग से, हिडिम्ब दैत्यों की दृष्टि से, वनवास के संकटों से, युद्धों में अनेक महारथियों के शस्त्रों से तथा अभी अभी अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से आपने रक्षा की है।
विपद: सन्तु ता: शश्वत्तत्र तत्र जगद्गुरो ।
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥८॥
भवतो दर्शनं यत्स्यादपुनर्भवदर्शनम् ॥८॥
हे जगतगुरु, विपदा ही में हमें आपके दर्शन होते हैं, इसलिए विपदाएं आती रहें। आपके दर्शन होने से जीव जन्म मरण के चक्र से मुक्त हो जाता है।
जन्मैश्वर्यश्रितश्रीभिरेधमानमद: पुमान् ।
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वामकिञ्चनगोचरम् ॥९॥
नैवार्हत्यभिधातुं वै त्वामकिञ्चनगोचरम् ॥९॥
जिसका घमंड ऊँचे कुल में जन्म लेने से, ऐश्वर्य प्राप्त कर लेने से और विद्या तथा सम्पति के कारण से जिसका घमंड बढ़ रहा है, वह जीव आपका नहीं हो सकता है क्योंकि आप केवल उन्ही लोगों को दर्शन देते हैं जो अकिंचन हैं।
नमो sकिञ्चनवित्ताय निवृत्तगुणवृत्तये ।
आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नम: ॥१०॥
आत्मारामाय शान्ताय कैवल्यपतये नम: ॥१०॥
हिंदी अर्थ हे ईश्वर आपको माया का तिलिश्म / प्रपंच छू भी नहीं सकता है। आप स्वंय में विहार करने वाले, आत्मा में रमन करने वाले हैं। आप शांत हैं और मोक्ष के स्वामी हैं (आप ही मोक्ष प्रदाता हैं ) आपको बार बार नमन है।
मन्ये त्वां कालमीशानमनादिनिधनं विभुम् ।
समं चरन्तं सर्वत्र भूतानां यन्मिथ: कलि: ॥११॥
समं चरन्तं सर्वत्र भूतानां यन्मिथ: कलि: ॥११॥
हिंदी अर्थ हे ईश्वर आप अनादि, अनन्त, सर्वव्यापक, सब के नियन्ता, कालरूप, परमेश्वर हैं। संसार के समस्त पदार्थ और प्राणी आपस में टकराकर विषमता के कारण परस्पर विरुद्ध हो जाते हैं लेकिन आप सबमें समान रूप से विचरण करते हैं
न वदे कश्चद्भगवंश्चिकीर्षितं तवेहमानस्य नृणां विडम्बनम् ।
न यस्य कश्चिद्दयितो sस्ति कहिर्चिद् द्वष्यश्च यस्मिन्विषमा मतिर्नृणाम् ॥१२॥
न यस्य कश्चिद्दयितो sस्ति कहिर्चिद् द्वष्यश्च यस्मिन्विषमा मतिर्नृणाम् ॥१२॥
हिंदी अर्थ आपका कोई प्रिय नहीं है और ना ही कोई आपको अप्रिय ही है। आपके सबंध में लोगों की बुद्धि विषम होती है। आप मनुष्य की भाँती लीला करते हैं तो आप क्या करना चाहते हैं।
जन्म कर्म च विश्वात्मन्नकस्याकर्तुरात्मन: ।
तिर्यङ्नृषिषु याद: स तदत्यन्तविडम्बनम् ॥१३॥
तिर्यङ्नृषिषु याद: स तदत्यन्तविडम्बनम् ॥१३॥
हे ईश्वर, आप जन्म नहीं लेते हैं और कर्म भी नहीं करते हैं, आप विश्व की आत्मा हैं।
भावार्थ - आप विश्व के आत्मा हैं, विश्वरूप हैं. न आप जन्म लेते हैं और न कर्म ही करते हैं. पशु-पक्षी, मनुष्य, ऋषि, जलचर आदि में आप ही जन्म लेते हैं और उन योनियों के अनुसार आप ही दिव्य कर्म भी करते हैं।
भावार्थ - आप विश्व के आत्मा हैं, विश्वरूप हैं. न आप जन्म लेते हैं और न कर्म ही करते हैं. पशु-पक्षी, मनुष्य, ऋषि, जलचर आदि में आप ही जन्म लेते हैं और उन योनियों के अनुसार आप ही दिव्य कर्म भी करते हैं।
गोप्याददे त्वयि कृतागसि दाम तावद्या ते दशाश्रुकलिलाञ्जनासम्भ्रमाक्षम् ।
वक्रं निनीय भयभावनया स्थितस्य सा मां विमोहयति भीरपि यद्बभेति ॥१४॥
वक्रं निनीय भयभावनया स्थितस्य सा मां विमोहयति भीरपि यद्बभेति ॥१४॥
बाल अवस्था में आपने जब दूध की मटकी फोड़ फोड़ दिया था तब माता यशोदा को आपने परेशान कर दिया था और उन्होंने आपको बाँधने के लिये हाथ में रस्सी ली, तब आपकी आँखों में आँसू छलक पड़े थे। आपके आंसू काजल कपोलों के ऊपर से बह निकला था। आपके नेत्र चञ्चल हो रहे थे और डर के कारण आप निचे देखने लगे थे।
केचिदाहुरजं जातं पुण्यश्लोकस्य कीर्तये ।
यदो: प्रियस्यान्ववाये मलयस्येव चन्दनम् ॥१५॥
यदो: प्रियस्यान्ववाये मलयस्येव चन्दनम् ॥१५॥
आप अजन्मे हैं फिर आपने जन्म क्यों लिया है इस पर कथन है की जैसे मलयाचल की कीर्ति का विस्तार करने के लिये उसमें चन्दन प्रकट होता है, वैसे ही आपने प्रिय भक्त पुण्यश्लोक राजा यदु की कीर्ति के विस्तार के लिए आपने उनके वंश में अवतार लिया है।
अपरे वसुदेवस्य देवक्यां याचितो sभ्यगात् ।
अजस्त्वमस्य क्षेमाय वधाय च सुरद्विषाम् ॥१८॥
अजस्त्वमस्य क्षेमाय वधाय च सुरद्विषाम् ॥१८॥
दूसरे लोग आपके जन्म के विषय में कहते हैं की वसुदेव और देवकी ने पूर्वजन्म में आपसे यह वरदान प्राप्त किया था (आप उनके कुल में जन्म लेंगे) इसलिए आप दैत्यों का नाश करने के लिए और जगत कल्याण करने के लिए अजन्मे होने के बावजूद भी आपने अवतार लिया है।
भारावतारणायान्ये भुवो नाव इवोदधौ ।
सीदन्त्या भूरिभारेण जातो ह्यात्मभुवार्थित: ॥१९॥
सीदन्त्या भूरिभारेण जातो ह्यात्मभुवार्थित: ॥१९॥
कुछ लोगों का कथन है की (आपके जन्म के विषय में) यह धरा दैत्यों के भार से सागर में डगमगा रही थी। ऐसे में ब्रह्मा जी के विनय के उपरान्त यह भार उतारने के लिए आपने अवतार लिया है।
भवेष्मिन् क्लिष्यमानानामविद्याकामकर्मभिः।
श्रवण स्मरणार्हाणि करिष्यन्निति केच ॥२०॥
श्रवण स्मरणार्हाणि करिष्यन्निति केच ॥२०॥
कुछ का कथन है की इस जगत में व्यक्ति अज्ञान, लालसा और कर्मों के बंधन में कैद हैं, उन लोगों को ज्ञान की प्राप्ति करवाने के लिए आपने अवतार लिया है।
शृण्वन्ति गायन्ति गृणन्त्यभीक्ष्णश: स्मरन्ति नन्दन्ति तवेहितं जना: ।
त एव पश्यन्त्यचिरेण तावकं भवप्रवाहोपरमं पदाम्बुजम् ॥२१॥
त एव पश्यन्त्यचिरेण तावकं भवप्रवाहोपरमं पदाम्बुजम् ॥२१॥
आपके विषय में श्रवण करके, गाकर (भजनों को गाकर) और आपके विषय में स्मरण करके कीर्तन करके आनंदित होते हैं। ऐसे भक्त आपके चरण कमल का दर्शन शीघ्र ही प्राप्त कर पाते हैं। आपके पुण्य चरण कमल का दर्शन जन्म मरण का चक्र सदा के लिए रोक देता है।
अप्यद्य नस्त्वं स्वकृतेहित प्रभो जिहाससि स्वित्सुहृदो sनुजीविन: ।
येषां न चान्यद्भवत: पदाम्बुजात्परायणं राजसु योजितांहसाम् ॥२२॥
येषां न चान्यद्भवत: पदाम्बुजात्परायणं राजसु योजितांहसाम् ॥२२॥
हे ईश्वर, आप काय अपने आश्रित और संबधी लोगों को छोड़कर जाना चाहते हैं ? आपके चरण कमलों के अतिरिक्त हमारा कोई भी सहारा नहीं है क्योंकि इस पृथ्वी पर मौजूद राजाओं के तो हम शत्रु हो चुके हैं।
के वयं नामरूपाभ्यां यदुभि: सह पाण्डवा: ।
भवतो sदर्शनं यर्हि हृषीकाणामिवेशितु: ॥२३॥
भवतो sदर्शनं यर्हि हृषीकाणामिवेशितु: ॥२३॥
हे ईश्वर जैसे जीव के बिना समस्त इन्द्रियाँ बेकार हो जाती हैं, शक्तिहीन हो जाती हैं, वैसे ही आपके बिना यदुवशियों और पांडवों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा।
नेयं शोभिष्यते तत्र यथेदानीं गदाधर ।
त्वत्पदैरङ्किता भाति स्वलक्षणविलक्षितै: ॥२४॥
त्वत्पदैरङ्किता भाति स्वलक्षणविलक्षितै: ॥२४॥
हे गदा धारण करने वाले यह धरा तो आपसे ही शोभामान है, आपके चरणों के चिन्हों से यह कुरुजाङ्गल शोभित है। आपके जाने के बाद यह शोभित नहीं रहेगी।
इमे जनपदा: स्वृद्धा: सुपक्वौषधिवीरुध: ।
वनाद्रिनद्युदन्वन्तो ह्येधन्ते तव वीक्षितै: ॥२५॥
वनाद्रिनद्युदन्वन्तो ह्येधन्ते तव वीक्षितै: ॥२५॥
यह देश आपकी दया से ही फलित है, यहाँ पर पकी हुई फसल और लता वृक्ष फल फूल रहे हैं। वन नदी पर्वत और समुद्र आपकी दृष्टि से पल्ल्वित होता है।
अथ विश्वेश विश्वात्मन्विश्वमूर्ते स्वकेषु मे ।
स्नेहपाशमिमं छिन्धि दृढं पाण्डुषु वृष्णषु ॥२६॥
स्नेहपाशमिमं छिन्धि दृढं पाण्डुषु वृष्णषु ॥२६॥
हे ईश्वर आप इस जगत के स्वामी हैं और समस्त जगत की आत्मा आप ही हैं। आप ही विश्वरूप हैं। यदुवंशियों और पाण्डवों से मेरा स्नेह है, आप इस स्नेह की फांस को काट दीजिये।
त्वयि मे sनन्यविष्या मतिर्मधुपते sसकृत् ।
रतिमुद्वहतादद्धा गङ्गेवौघमुदन्वति ॥२७॥
रतिमुद्वहतादद्धा गङ्गेवौघमुदन्वति ॥२७॥
हे ईश्वर ऐसी कृपा कीजिये की मैं सदा ही आपसे प्रेम करती रहूं जैसे जैसे गङ्गाकी अखण्ड धारा समुद्र में गिरती रहती है, वैसे ही मेरी बुद्धि सदा आपमें लिप्त रहे, कहीं दूर ना जाए।
श्रीकृष्ण कृष्णसख वृष्ण्यृषभावनिध्रुग्राजन्यवंशदहनानपवर्गवीर्य ।
गोविन्द गोद्विजसुरार्तिहरावतार योगेश्वराखिलगुरो भगवन्नमस्ते ॥२८॥
गोविन्द गोद्विजसुरार्तिहरावतार योगेश्वराखिलगुरो भगवन्नमस्ते ॥२८॥
हे श्री कृष्ण, आप अत्यंत ही सखा हैं, आप यदुवंश के शिरोमणि हैं, आप ही इस जगत पर दैत्यों को जलाने के लिए अग्निरूप हैं। आपकी शक्ति का कोई थाह नहीं है, आपकी शक्ति अनंत है और आपका यह अवतार गायों ब्राह्मणों और देवताओं के दुःख को मिटाने के लिए है। योगेश्वर चराचर के गुरु भगवन को नमन है।
" कुंती स्तुति " Kunti's Prayers to Lord Krishna Kunti Stuti Devi Chitralekhaji
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Author - Saroj Jangir
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