देखि सखी राधा पिय केलि। ये दोऊ खोरि खिरक गिरि गहबर- बिहरत कुमरि कंठ भुज मेलि।। ये दोऊ नवल किशोर रूप निधि- विटप तमाल कनक मानौं बेलि। अधर अदन चुम्बन परिरंभन- तन पुलकित आनँद रस झेलि।। पट बंधन कंचुकी कुच परसत- कोप कपट निरखत कर पेलि। जय श्रीहित हरिवंश लाल रस लंपट- धाय धरत उर बीच सकेलि।।
यह पद श्री हित हरिवंश जी द्वारा रचित है, जिसमें राधा और कृष्ण की लीलाओं का वर्णन किया गया है। इसमें बताया गया है कि सखी ने राधा और कृष्ण को एक साथ देखा। वे दोनों एकांत में, पर्वत की गुफा में, एक-दूसरे के गले और भुजाओं में बांहें डाले हुए विहार कर रहे थे। दोनों किशोर अवस्था में, सुंदर रूप के धनी थे। श्री हित हरिवंश लाल जी कहते हैं कि रास के रसिक कृष्ण ने राधा को अपने हृदय के बीच में धारण कर लिया।
देखि सखी राधा पिय केलि | विहार | श्री हित चतुरासी | श्री हित अम्बरीष जी
जी हाँ, यह पद श्री हित हरिवंश जी द्वारा रचित है, जो राधा और कृष्ण की लीलाओं का वर्णन करता है। श्री हित हरिवंश जी 16वीं शताब्दी के एक प्रमुख कृष्ण भक्त कवि थे और राधावल्लभ संप्रदाय के संस्थापक माने जाते हैं।