हम देखे ढोटा नंद के।
हौं सखि ! हैं अवतार सुन्यो अस, ब्रह्म सच्चिदानंद के।
भई लटू मैं भटू पटू ह्वै, लखतहिं आनँदकंद के।
सो सुख जान नैन जो पाये, मुसकाने मृदु-मंद के।
सो सुख जानत श्रवण सुन्यो जो, वेनु-बैन ब्रजचंद के।
तुम कृपालु बचि रहियो उनते, वे स्वामी छल-छंद के॥
एक सखी अपनी सहेली से कहती है: "सखी, मैंने नंद के बेटे (कृष्ण) को देखा है। मैंने सुना है कि वे सच्चिदानंद ब्रह्म के अवतार हैं। उन्हें देखते ही, मैं जो बहुत चतुर थी, उनकी ओर आकर्षित हो गई। उनके मंद-मंद मुस्कान से जो सुख मिला, उसे केवल मेरी आँखें ही जानती हैं। उनकी मधुर बांसुरी की धुन से जो आनंद मिला, उसे केवल मेरे कान ही समझ सकते हैं। वे कृपालु हैं, लेकिन कहते हैं कि वे छल-छंद में निपुण हैं, इसलिए उनसे सावधान रहना, नहीं तो तुम्हारी भी बुरी दशा होगी।"
भावार्थ: एक सखी अपनी अंतरंग सखी से कहती है कि, "सखी, मैंने नंदकुमार (कृष्ण) को देखा है। मैंने सुना है कि वे सच्चिदानंद ब्रह्म के अवतार हैं। आनंदकंद श्यामसुंदर को देखते ही, मैं, जो बहुत चतुर थी, उनकी ओर आकर्षित हो गई। उनकी मंद-मंद मुस्कान से जो सुख मिला, उसे केवल मेरी आँखें ही जानती हैं। उनकी मधुर मुरली की तान से जो आनंद मिला, उसे भी केवल मेरे कान ही समझ सकते हैं। कृपालु अपने लिए कहते हैं कि वे छलियों के शिरोमणि हैं, इसलिए उनसे बचकर रहना, नहीं तो तुम्हारी भी बुरी दशा होगी।"