चतुराई सूवै पढ़ी सोई पंजर माँहि मीनिंग Chaturayi Suve Padhi Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit, Kabir Ke Dohe Hindi Me, Hindi Arth/Bhavarth.
चतुराई सूवै पढ़ी, सोई पंजर माँहि।फिरि प्रमोधै आन कौ, आपण समझै नाहिं॥
Chaturai Suve Padhi, Soi Panjar Mahi,
Phiri Pramodhe Aan Ko, Aapan Samajhe Nahi.
चतुराई सूवै पढ़ी : तोते ने चतुराई, ज्ञान सीखा.
सोई पंजर माँहि : वह पिंजरे में ही कैद होकर रह गया.
फिरि प्रमोधै आन कौ : दूसरों को प्रशन्न करते करते.
आपण समझै नाहिं : स्वंय का बोध नहीं किया, स्वंय की सुध बुध नहीं ली.
चतुराई : चतुरता .
सूवै पढ़ी: तोते ने पढ़ी/सीखी.
सोई : वाही.
पंजर : पिंजरा,
माँहि : के अंदर.
फिरि : घूमता है, फिरता है.
प्रमोधै : खुश करना.
आन कौ : दूसरों को.
आपण : स्वंय.
समझै नाहिं : खुद नहीं समझ पाता है.
सोई पंजर माँहि : वह पिंजरे में ही कैद होकर रह गया.
फिरि प्रमोधै आन कौ : दूसरों को प्रशन्न करते करते.
आपण समझै नाहिं : स्वंय का बोध नहीं किया, स्वंय की सुध बुध नहीं ली.
चतुराई : चतुरता .
सूवै पढ़ी: तोते ने पढ़ी/सीखी.
सोई : वाही.
पंजर : पिंजरा,
माँहि : के अंदर.
फिरि : घूमता है, फिरता है.
प्रमोधै : खुश करना.
आन कौ : दूसरों को.
आपण : स्वंय.
समझै नाहिं : खुद नहीं समझ पाता है.
तोते ने बोली सीख ली, चतुराई को सीख लिया लेकिन इसका परिणाम क्या हुआ, वह तो पिंजरे में कैद हो गया. वह राम राम बोलकर दूसरों को खुश कर देता है लेकिन खुद राम नाम की महिमा को नहीं जान पाता है, राम नाम के मर्म को पहचान नहीं पाता है. राम राम बोलकर भी वह पिंजरे में ही कैद रहता है.
ऐसा ज्ञान किस काम का जो स्वंय के लिए भी हानिकारक हो ? वह दूसरों को तो चतुराई से प्रशन्न करता है लेकिन स्वंय उस ज्ञान से लाभान्वित नहीं हो पाता है.
भाव है की जगत में ऐसे कई उपदेशक हैं जो धर्म की बातें करते हैं. उनके ज्ञान/धर्म का क्या लाभ यदि वे अपने ज्ञान को स्वंय के जीवन में नहीं उतार पाते हैं. यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करने में लगा रहे और स्वंय कुछ भी हासिल नहीं कर पाए. अतः ज्ञान का महत्त्व तभी है जब उसे हम अपने जीवन में उतारें. महज शाब्दिक ज्ञान हमारा क्या भला कर पायेगा, कुछ भी नहीं. प्रस्तुत साखी में अन्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
ऐसा ज्ञान किस काम का जो स्वंय के लिए भी हानिकारक हो ? वह दूसरों को तो चतुराई से प्रशन्न करता है लेकिन स्वंय उस ज्ञान से लाभान्वित नहीं हो पाता है.
भाव है की जगत में ऐसे कई उपदेशक हैं जो धर्म की बातें करते हैं. उनके ज्ञान/धर्म का क्या लाभ यदि वे अपने ज्ञान को स्वंय के जीवन में नहीं उतार पाते हैं. यह तो ऐसे ही हुआ जैसे कोई व्यक्ति दूसरों को खुश करने में लगा रहे और स्वंय कुछ भी हासिल नहीं कर पाए. अतः ज्ञान का महत्त्व तभी है जब उसे हम अपने जीवन में उतारें. महज शाब्दिक ज्ञान हमारा क्या भला कर पायेगा, कुछ भी नहीं. प्रस्तुत साखी में अन्योक्ति अलंकार की व्यंजना हुई है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग