काँमणि मीनीं षाणि की जे छेड़ौं तौ खाइ मीनिंग

काँमणि मीनीं षाणि की जे छेड़ौं तौ खाइ मीनिंग

काँमणि मीनीं षाणि की, जे छेड़ौं तौ खाइ।
जे हरि चरणाँ राचियाँ, तिनके निकटि न जाइ॥
Kamini Meeni Khani Ki, Je Chedo To Khai,
Je Hari Charana Rachiya, Tinke Nikat Na Jaai.

काँमणि मीनीं षाणि की : कामिनी शहद की मक्खी की तरह से है.
जे छेड़ौं तौ खाइ : यह छेड़ने पर खा जाती है.
जे हरि चरणाँ राचियाँ : जो हरी के चरणों में अनुरक्त हैं, लीन है, भक्ति करते हैं.
तिनके निकटि न जाइ : यह उनके निकट नहीं जाती है.
काँमणि : कामिनी.
मीनीं : मक्खी.
षाणि की : शहद की.
जे छेड़ौं :
छेड़ने पर.
तौ खाइ : खा जाती है, डंक मारती है.
जे : जो.
हरि चरणाँ : इश्वर के सानिध्य में.
राचियाँ : रचे बसे हैं.
तिनके : उनके,
निकटि न जाइ : समीप नहीं जाती है.
कबीर साहेब की वाणी है की माया कामिनी शहद की मक्खी की भाँती है जो इसे छेड़ने पर खा जाती है.जो प्राणी हरी के चरणों में रहते हैं, अपना हृदय भक्ति में लगाते हैं, माया उनका कुछ भी नहीं बिगाड़ पाती है. यहाँ पर नारी को ही माया का रूप बताया गया है.
भाव है की माया से कोई संपर्क हमें रखना नहीं है. माया से संपर्क रखने, व्यवहार में लाने पर यह किसी को भी नहीं छोडती है.  भाव है की भक्ति मार्ग के साधक को इश्वर की भक्ति में, हरी चरणों में अपना ध्यान लगाना चाहिए. प्रस्तुत साखी में रूपक और उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है.
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