मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलो पढ़िवा थें भलो मीनिंग

मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलो पढ़िवा थें भलो जोग मीनिंग

मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलो, पढ़िवा थें भलो जोग।
राँम नाँम सूँ प्रीति करि, भल भल नींदी लोग॥
Main Janyo Pdheebo Bhalo, Padhiva The Bhalo Jog,
Raam Naam Su Priti kari, Bhal Bhal Nindi Log.

मैं जान्यूँ पढ़िबौ भलो : मैंने समझा की पढ़ना अच्छा है.
पढ़िवा थें भलो जोग : और पढने से भी अच्छा योग है. (ध्यान लगाने की क्रिया)
राँम नाँम सूँ प्रीति करि : राम नाम से प्रीत करो.
भल भल नींदी लोग : भले ही लोग रह रह कर निंदा करें, सतत निंदा करें.
मैं जान्यूँ : मैंने समझा, मैंने जाना.
पढ़िबौ : पढना, शास्त्रों का अध्ययन.
भलो : भला है, अच्छा है.
पढ़िवा : पढने से.
थें : से, की तुलना में.
भलो जोग : योग भला है, योग सुंदर है.
राँम नाँम सूँ : राम नाम से.
प्रीति करि : प्रीत करी, चित्त को लगाया.
भल भल : भले ही.
नींदी लोग : लोग निंदा करें.
कबीर साहेब की वाणी है की मैंने यह समझा की इश्वर की भक्ति के लिए पढना, शास्त्रीय ज्ञान को धारण करना उचित है. लेकिन पढने से भी अच्छा तो ध्यान लगाना है. इस प्रकार से जीवात्मा को इश्वर में ध्यान लगाना चाहिए, भले ही लोग उसकी निंदा करे, उसे भला बुरा कहें. प्रस्तुत साखी में मूल भाव् है की योग साधना करना भक्ति करने के लिए श्रेष्ठ माध्यम है जिसमें व्यक्ति अपना ध्यान इश्वर में लगाता है. योग को कबीर साहेब ने बेहतर इसलिए माना है की यह किसी आडम्बर में नहीं अपितु आत्मिक भक्ति में यकीन रखता है.  ऐसा करने पर लोग निंदा भी करेंगे क्योंकि यह भक्ति का प्रचलित माध्यम नहीं है. अधिकतर लोगों के लिए योग कोई मानी भक्ति का माध्यम नहीं है इसलिए वे इसका खंडन और निंदा करते हैं.
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