करता दीसै कीरतन ऊँचा करि करि तूंड मीनिंग Karata Deese Keertan Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Hindi Bhavarth
करता दीसै कीरतन, ऊँचा करि करि तूंड।जाँणै बूझे कुछ नहीं, यौं ही आँधां रूंड॥
Karta Deese Keertan, Uncha Kari Kari Tund,
Jaane Bujhe Kuch Nahi, Yo Hi Andha Rund
करता दीसै कीरतन : कीर्तन / पूजा पाठ करते हुए दिखाई देता है.
ऊँचा करि करि तूंड : अपने मुख को ऊँचा कीये हुए.तुंड : जैसे हाथी की सूंड होती है, उसी भाव में.
जाँणै बूझे कुछ नहीं : वह जानता कुछ नहीं है, कुछ भी ज्ञान नहीं है.
यौं ही आँधां रूंड : वे ऐसे ही आधे रुंड (बिना धड के) हैं.
करता : करता हुआ (कोई कार्य करता हुआ)
दीसै : दिखाई देता है.
कीरतन : पूजा पाठ, सत्संग, भजन करना.
ऊँचा : ऊपर (ऊपर की तरफ)
करि करि : करके.
तूंड : मुख.
जाँणै बूझे : जानता बुझता.
कुछ नहीं : कुछ भी नहीं.
यौं ही : ऐसे ही, व्यर्थ में ही.
आँधां रूंड : आधे धड वाला, मुंडी कटा हुआ.
ऊँचा करि करि तूंड : अपने मुख को ऊँचा कीये हुए.तुंड : जैसे हाथी की सूंड होती है, उसी भाव में.
जाँणै बूझे कुछ नहीं : वह जानता कुछ नहीं है, कुछ भी ज्ञान नहीं है.
यौं ही आँधां रूंड : वे ऐसे ही आधे रुंड (बिना धड के) हैं.
करता : करता हुआ (कोई कार्य करता हुआ)
दीसै : दिखाई देता है.
कीरतन : पूजा पाठ, सत्संग, भजन करना.
ऊँचा : ऊपर (ऊपर की तरफ)
करि करि : करके.
तूंड : मुख.
जाँणै बूझे : जानता बुझता.
कुछ नहीं : कुछ भी नहीं.
यौं ही : ऐसे ही, व्यर्थ में ही.
आँधां रूंड : आधे धड वाला, मुंडी कटा हुआ.
कबीर साहेब की वाणी है की इस जगत में लोग महज दिखावे की भक्ति करते हैं. ऐसे आडम्बर करने वाले व्यक्ति अपनी गर्दन/मुख को ऊपर उठा कर भक्ति का प्रदर्शन करते हैं. यह ऐसे ही है जैसे कोई मुंडी कटा हुआ आधा धड हो. वे ऊपर की और मुख करके उच्च ध्वनी में भक्ति का ढोंग रचते हैं, यह वास्तविक भक्ति नहीं होती है.
इस साखी में कबीर साहेब का मूल सन्देश है की हमें आत्मिक रूप से भक्ति करनी चाहिए, दिखावे और आडम्बर की भक्ति से बचना चाहिए. किसी भी प्रकार के आडम्बर के लिए भक्ति में कोई स्थान नहीं है. हमें तत्व को समझना होगा की तत्व ज्ञान क्या है. बिना तत्व ज्ञान के जोर जोर से चिल्लाना किसी महत्त्व का नहीं है, और इससे इश्वर को कोई प्राप्त कर लेगा यह सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है.
साहेब के मतानुसार भक्ति सहज है, इश्वर हृदय में ही है, उसे कहीं पर ढूँढने के लिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. किसी कर्मकांड और आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं है.
इस साखी में कबीर साहेब का मूल सन्देश है की हमें आत्मिक रूप से भक्ति करनी चाहिए, दिखावे और आडम्बर की भक्ति से बचना चाहिए. किसी भी प्रकार के आडम्बर के लिए भक्ति में कोई स्थान नहीं है. हमें तत्व को समझना होगा की तत्व ज्ञान क्या है. बिना तत्व ज्ञान के जोर जोर से चिल्लाना किसी महत्त्व का नहीं है, और इससे इश्वर को कोई प्राप्त कर लेगा यह सबसे बड़ी ग़लतफ़हमी है.
साहेब के मतानुसार भक्ति सहज है, इश्वर हृदय में ही है, उसे कहीं पर ढूँढने के लिए जाने की कोई आवश्यकता नहीं है. किसी कर्मकांड और आडम्बर की कोई आवश्यकता नहीं है.
भजन श्रेणी : कबीर के दोहे हिंदी मीनिंग