पर नारी कै राचणै औगुण है गुण नाँहि मीनिंग कबीर के दोहे

पर नारी कै राचणै औगुण है गुण नाँहि मीनिंग Parnari Ke Rachane Ogun Meaning Kabir Ke Dohe Hindi Meaning, Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit/Meanin in Hindi

पर नारी कै राचणै, औगुण है गुण नाँहि।
षार समंद मैं मंछला, केता बहि बहि जाँहि॥
Parnari Ke Rachne, Gogu Hai Gun Nahi,
Kshar Samand Men Machhala, Keta Bahi Bahi Jahi.

पर नारी कै राचणै : पराई नारी से संपर्क होने पर, सबंध रखने पर, आसक्त होने पर.
औगुण है गुण नाँहि : अवगुण ही अवगुण हैं, कोई गुण नहीं है.
षार समंद मैं मंछला : जैसे क्षार (खारे समुद्र में ) मछली.
केता बहि बहि जाँहि : पता नहीं कहा पर बह कर चली जाती है.
पर नारी : पराई स्त्री.
कै राचणै : से आसक्त होना.
औगुण है : अवगुण हैं.
गुण नाँहि : कोई गुण नहीं है.
षार समंद : समुद्र के खारे पानी में.
मंछला : मछली.
केता : कहाँ.
बहि बहि : बह बह कर.
जाँहि : जाती है, चली जाती हिल.
कबीर साहेब ने इस साखी/दोहे में वाणी दी है की पराई नारी के प्रति आसक्ति रखने में अवगुण हैं, कोई गुण नहीं है. साहेब अनेकों स्थान पर बता चुके हैं की पराई स्त्री गमन पतन का मार्ग है जो व्यक्ति को इश्वर की भक्ति से विमुख करती है. जैसे समुद्र के खारे पानी में मछली भटकती रहती है, ऐसे ही पराई नारी के प्रेम में आसक्त व्यक्ति ठोकरें खाता रहता है. वह स्वंय को पहचान नहीं पाता है और बुराई के मार्ग पर चलता है. प्रस्तुत साखी में उपमा अलंकार की व्यंजना हुई है. प्रस्तुत साखी में व्यक्तिगत आचरण की शुद्धता पर बल दिया गया है.
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