पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित भया न कोइ मीनिंग

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित भया न कोइ मीनिंग

पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा, पंडित भया न कोइ।
एकै आषिर पीव का, पढ़ै सु पंडित होइ॥
 
Pothi Padhi Padhi Jag Muva, Pandit Bhaya Na Koi,
Eke Aakhir Peev Ka, Padhe Su Pandit Hoi.
 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा पंडित भया न कोइ मीनिंग
 
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुवा : किताबों को पढ़ पढ़ कर जगत मर गया, विनाश को प्राप्त हुआ.
पंडित भया न कोइ : कोई भी पंडित नहीं बना, कोई भी तत्वज्ञानी नहीं बन पाया.
एकै आषिर पीव का : एक अक्षर इश्वर का.
पढ़ै सु पंडित होइ : जो पढ़ ले वही पंडित बन पाता है.
पोथी : किताब/पुस्तकें, यहाँ पर शास्त्रों से अर्थ है.
पढ़ि पढ़ि : पढ़ पढ़ कर.
जग मुवा : जगत नाश हुआ, मर गया.
पंडित : ज्ञानी, तत्व का ज्ञान रखने वाला.
भया न कोइ : कोई नहीं हुआ (ज्ञानी कोई नहीं बन पाया है)
एकै आषिर : एक अक्षर.
पीव का : प्रिय का, इश्वर का.
पढ़ै सु : पढ़े वही.
पंडित होइ : पंडित (ज्ञानी) बन पाता है.

कबीर साहेब की वाणी है की पोथी पढ़ पढ़ कर जगत मर गया है, विनाश को प्राप्त हुआ है. महज किताबी ज्ञान, शास्त्रीय ज्ञान से इश्वर की प्राप्ति संभव नहीं हो सकती है. समस्त किताबों के स्थान पर एक अक्षर इश्वर का (प्रेम का ) पढ़ लेने से जीवात्मा का कल्याण संभव होता है.
कबीर साहेब ने प्रचलित शास्त्रीय भक्ति के स्थान पर हृदय से भक्ति करने पर जोर दिया जिसमें किसी कर्मकांड, आडम्बर की जगह नहीं है. हृदय से इश्वर की भक्ति करने पर अवश्य ही इश्वर की प्राप्ति होती है. हृदय से इश्वर के नाम का सुमिरन ही मुक्ति का मार्ग है. किताबी ज्ञान से कोई तत्वज्ञानी नहीं बन पाता है. तत्वज्ञान की प्राप्ति के लिए नाम सुमिरण महत्त्व रखता है. 

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