साषित सण का जेवणा भीगाँ सूँ कठठाइ मीनिंग Sashit San Ka Jevana Meaning Kabir Dohe

साषित सण का जेवणा भीगाँ सूँ कठठाइ मीनिंग Sashit San Ka Jevana Meaning Kabir Dohe, Kabir Ke Dohe Hindi Meaning (Hindi Arth/Hindi Bhavarth, Hindi Me)

साषित सण का जेवणा, भीगाँ सूँ कठठाइ।
दोइ अषिर गुरु बाहिरा, बाँध्या जमपुरि जाइ॥
Sakhit San Ka Jevana, Bheega Su Kaththaayi,
Doi Akhir Guru Bahira, Bandhya Jampuri Jaai.

साषित सण का जेवणा : साक्य, शाक्य धर्म के मतावलम्बी झूट की रस्सी में समान हैं.
भीगाँ सूँ कठठाइ : भीगने पर अधिक कडक हो जाती है, सख्त हो जाती है.
दोइ अषिर गुरु बाहिरा : राम नाम के दो अक्षर का अभाव.
बाँध्या जमपुरि जाइ : बंधे होकर जमपुर जाते हैं.
साषित : साक्य, शाक्य.
सण : जूट.
जेवणा : जेवड़ा, रस्सी.
भीगाँ : भीगना.
सूँ : से.
कठठाइ : कठोर होती है, कडक होती है.
दोइ अषिर :
दो अक्षर.
गुरु बाहिरा : गुरु इनसे अनभिज्ञ है.
बाँध्या : बंधकर.
जमपुरि: यमलोक.
जाइ : जाता है.

कबीर साहेब के इस दोहे में वाणी है की शाक्य धर्मावलम्बी जूट की रस्सी की भांति होते हैं. ये भीगने पर और भी अधिक कठोर हो जाते हैं. राम नाम के सुमिरण  के अभाव में ऐसे लोग, बंधकर यमलोक में जाते हैं. शक्ति की पूजा करने वाले शाक्य, साक्त कहलाते हैं, कबीर साहेब ने इन दोनों पर व्यंग्य किया है. भाव है की  जो हृदय से इश्वर का सुमिरण नहीं करते हैं वे अवश्य ही पतन की और अग्रसर होते हैं. कबीर साहेब के साक्य विरोधी होने का पता चलता है और साथ ही यह भी सन्देश मिलता है की गुरु कृपा के अभाव में, हृदय से भक्ति के अभाव में यमलोक ही जाना होगा. प्रस्तुत साखी में उपमा एंव रूपक अलंकार की व्यंजना हुई है.
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