यीशु मसीह की शिक्षाएं सरल हिंदी में जानिये

प्रभु यीशु के अनमोल विचार ईसा मसीह के प्रेरक कथन

विश्व में कई धर्मों को माना जाता है। हमारे भारत में भी बहुत से  धर्मों को मानते हैं । हमारा भारत धर्मनिरपेक्ष देश है। अर्थात हमारे देश में सभी धर्मों को बराबर का दर्जा प्राप्त है। इसमें मुख्य धर्म हिंदू ,मुस्लिम, सिख, और ईसाई हैं । इनके अलावा बौद्ध धर्म ,जैन धर्म आदि को भी माना जाता है । 
 
आज हम ईसाई धर्म के बारे में जानेंगे ।और यह भी जानेंगे की ईसाई धर्म के  प्रवर्तक कौन थे और उन्होंने क्या शिक्षा दी ? उनका जन्म कहां और कैसे हुआ? ईसाई धर्म के लोग यीशु मसीह  को परमपिता परमेश्वर का पुत्र  मानते हैं। यीशु मसीह ने ईसाई धर्म की स्थापना की। यीशु को कई नामों से जाना जाता है जैसे यीशु, यीशु मसीह, ईसा, ईसा मसीह, नासरत  का यीशु और जीसस क्राइस्ट। यह इसाई पंथ के प्रवर्तक थे। इन्होंने अपने जीवन में बहुत सी शिक्षाएं दी है जिनका आधुनिक समय में भी बहुत महत्व है।

यीशु मसीह का जन्म कहां हुआ Jesus Birth Hindi (Son of God)

यीशु मसीह  का जन्म 4 ईसा पूर्व बेथलेहेम, जुडिया, साम्राज्य में  हुआ था। इनके पिता का नाम युसुफ तथा माँ का नाम मरियम था। इनके भाइयों का नाम जेम्स, जोसेफ, जुडास और साइमन थे।
यीशु मसीह का जन्म कैसे हुआ : यीशु मसीह की माता का नाम मरियम था । बाइबिल के अनुसार एक दिन मरियम के सपने में ईश्वर आए और यीशू मसीह के रूप में  ईश्वरीय प्रभाव से उन्हें गर्भवती कर दिया। इस प्रकार ईसा मसीह  ईश्वर का आशीर्वाद थे। उसके पश्चात ईश्वर ने एक फरिश्ता यूसुफ के सपने में  भेजा और मरियम को अपनाने के लिए कहा। ईश्वर ने यह भी बताया कि मरियम के गर्भ में ईश्वर का रूप पल रहा है और वह आप दोनों का पुत्र होगा ।ईश्वर ने यह भी बताया की उसका नाम यीशू मसीह होगा। 
 
बाइबिल के अनुसार  मरियम गलीलिया प्रांत के नाज़रेथ गाँव की रहने वाली थीं।  ईश्वर की ओर से संकेत पाकर यूसुफ ने उन्हें पत्नीस्वरूप ग्रहण किया। इस प्रकार किसी को भी यीशू मसीह की अलौकिक उत्पत्ति का भान नहीं हुआ। विवाह  होने के बाद यूसुफ गलीलिया छोड़कर यहूदिया प्रांत के बेथलेहेम नामक नगरी में जाकर रहने लगे.

यीशु मसीह के  अनुसार जीवन की शिक्षाएं

हर धर्म के प्रवर्तक   जीवन से संबंधित बहुत सी शिक्षाएं देते हैं  जिन से इंसान का उद्धार होता है । मानव  को  सद्मार्ग प्राप्त होता है। वैसे ही ईसा मसीह ने भी बहुत सी शिक्षाएं दी है। उनके द्वारा दी गई महत्वपूर्ण शिक्षाएं निम्न है : (यीशु मसीह के अनमोल वचन)
 
  • ईश्वर की सभी संतान समान है इसलिए सभी का आदर करो, सभी से प्रेम करो: अपने परिवार से, पड़ोसी से, यहां तक कि अपने शत्रुओं से भी प्रेम करो । यीशु मसीह के अनुसार आप प्रेम के बदले प्रेम मिले इसकी मनोकामना ना करें अगर आप ऐसा करते हैं  तो ऐसा न करने वाले में और आप में क्या अंतर रह जाएगा। इसलिए अपने शत्रुओं से भी प्रेम करें क्योंकि  जो अपने शत्रुओं से भी प्रेम करें वही ईश्वर का सच्चा भक्त है वही परमेश्वर का रूप है। ईश्वर की सभी संताने समान है तो सभी का आदर करें।
  • विनम्र और दयावान लोग धन्य है: विनम्र और दयावान लोगों का मन शुद्ध होता है । वह अपने शुद्ध मन से, पवित्रता से दूसरों की सेवा करते हैं । उनके मन में दया का भाव ही उन्हें दूसरों से अलग करता है। धन्य है वो लोग जो दूसरों की भलाई के लिए उत्सुक रहते हैं। उनका मन शुद्ध होता है। सभी के प्रति उनके मन में दया भाव रहता है । शुद्ध मन के लोग सभी का भला करते हैं। परमेश्वर भी उन्हीं के मन में वास करते हैं।
  • हमेशा दूसरों के भले के लिए कार्य करें : हमें दूसरों के भले के लिए कार्य करते रहना चाहिए। सद्मार्ग पर चलना चाहिए। यीशू मसीह के अनुसार दूसरों का भला चाहने वाला ही सच्चा  मनुष्य है।

  • यीशु मसीह के अनुसार संसार में ज्ञान का प्रकाश  जलाएं। जनकल्याण के लिए ज्योति की अलख बने। मानवता एवं प्रेम से सबका भला करें। यीशु मसीह के अनुसार हमें लोगों के मन के अंधकार को दूर करके उनमें ज्ञान के प्रकाश की अलख जगानी चाहिए । यही सच्ची मानवता  है।
  • यीशु मसीह के अनुसार जैसे व्यवहार की अपेक्षा आप दूसरों से अपने लिए करते हैं वैसा ही व्यवहार आपको भी दूसरों के साथ करना चाहिए।
  • यीशु मसीह के अनुसार  ईमानदारी से जीवन यापन करना चाहिए । सभी के प्रति ईमानदार रहना चाहिए। ईश्वर के प्रति ईमानदार रहना चाहिए। स्वयं के प्रति, अपने परिवार के प्रति और समाज के प्रति भी ईमानदार रहना चाहिए।

  • यीशु मसीह के अनुसार सभी पर विश्वास रखना चाहिए। सभी पर भरोसा करना चाहिए । जैसे हम ईश्वर पर भरोसा रखते हैं हमें  ईश्वर पर विश्वास है उसी प्रकार हमें अपने आप पर और दूसरे लोगों पर भी भरोसा रखना चाहिए और विश्वास  करना चाहिए।
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  • यीशु मसीह के अनुसार हमें दूसरे लोगों की गलतियों को क्षमा करना चाहिए। जैसे हम ईश्वर से आशा करते हैं कि वह हमें अपनी गलतियों को सुधारने का मौका दें, हमें क्षमा प्रदान करें। वैसे ही हमें भी दूसरे व्यक्तियों को क्षमा प्रदान करनी चाहिए। उन्हें उनकी गलती का एहसास ना हो तो भी  उन्हें  माफ कर देना  चाहिए।
  • यीशु मसीह के अनुसार ईश्वर अपने अंदर ही विद्यमान हैं। लेकिन अज्ञानता के अंधकार के कारण बहुत से लोग इसका आनंद नहीं ले पाते हैं । इसलिए हमें बाहरी वस्तुओं का त्याग कर आत्मिक आनंद की अनुभूति करनी चाहिए। अपने अंदर  विद्यमान  ईश्वरीय शक्ति का आनंद लेना चाहिए।
  • यीशु मसीह ने बहुत से चमत्कार किए हैं । यीशु मसीह ने चमत्कार लोगों के बीच में किए हैं। लोगों का भला करने के लिए किए हैं। थोड़े से ही खाने से बहुत सारे लोगों का पेट भरना भी उनके एक चमत्कारों में से ही एक है। उन्होंने लोक कल्याण की भावना को ही चमत्कार कहा है । इसलिए हमें कल्याणकारी कार्य करते रहना चाहिए  जिनसे लोगों का कल्याण हो।
  • यीशु मसीह  शुद्धता और नैतिकता को बहुत  महत्व देते थे। उन्होंने यह भी कहा है कि मनुष्य अपने हृदय और मन की शुद्धता से ही परमेश्वर की नजर में शुद्ध होता है । बाहरी वस्तुएं व्यक्ति को  शुद्ध नहीं कर सकती हैं। मन के विचार और पवित्रता ही व्यक्ति को शुद्ध बनाती है । शुद्ध और पवित्र मन ही ईश्वर की कृपा का पात्र होता है। इसलिए यीशु मसीह के अनुसार हमें शुद्ध मन से नैतिक कार्य करने चाहिए। बाहरी दिखावा नहीं करना चाहिए। हमारे विचार शुद्ध और नैतिक होने चाहिए।

जीसस क्राइस्ट के 26 अनमोल कथन | Jesus Christ Quotes in Hindi | प्रभु यीशु के अनमोल विचार
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