कबीर दुनियाँ देहुरै शीश नवाँवण जाइ मीनिंग
कबीर दुनियाँ देहुरै, शीश नवाँवण जाइ।
हिरदा भीतर हरि बसै, तूँ ताही सौ ल्यौ लाइ॥
Kabir Duniyan Dehure, Sheesh Navaavan Jaai,
Hirada Bhitr hari Base, Tu Tahi So Lyo Laai.
कबीर दुनियाँ देहुरै : दुनिया मंदिर को जाती है.शीश नवाँवण जाइ : सर झुकाने को जाती है.हिरदा भीतर हरि बसै : हृदय के भीतर ही इश्वर रहते हैं.तूँ ताही सौ ल्यौ लाइ : तुम उसी से अपने चित को लगाओ, सम्बन्ध स्थापित करो.दुनियाँ : जगत के लोग.देहुरै : देवरा, मंदिर.शीश : मस्तक.नवाँवण : झुकाने, नावाने.जाइ : जाते हैं.हिरदा : हृदय.भीतर : के अन्दर.हरि बसै : इश्वर का निवास है.तूँ : तुम.ताही सौ : उसी से.ल्यौ लाइ : सम्बन्ध स्थापित करो. कबीर साहेब की वाणी है की समस्त जगत देखा देखी का कार्य करते हैं. वे इश्वर के समक्ष अपना शीश झुकाने के लिए मंदिर (देवरा) के लिए जाते हैं. जबकि इश्वर तो व्यक्ति के हृदय में ही होता है, इसलिए व्यक्ति को इश्वर को अपने हृदय में बैठे उस परमपिता से ही समपर्क स्थापित करना चाहिए.
अतः भाव है की हमें इश्वर को ढूँढने के लिए किसी मंदिर या देवालय में जाने की आवश्यकता नहीं है. इश्वर तो हमारे ही हृदय में सदा ही रहता है. सत्य का आचरण करते हुए उस परमपिता का सुमिरन ही मुक्ति का आधार है. अतः समस्त बाह्य व्रतियों को तुम आंतरिक करो, अपने हृदय के भीतर खोजबीन का कार्य करो.
|
Author - Saroj Jangir
दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें।
|