श्री शीतलनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Sheetalnath Chalisa Lyrics

श्री शीतलनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Sheetalnath Chalisa Lyrics Hindi, Sheetalnath Chalisa PDF/Aarti/Chalisa


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भगवान श्री शीतलनाथ जी जैन धर्म के दसवें तीर्थंकर थे। भगवान श्री शीतलनाथ जी का जन्म भद्रिकापुर में इक्ष्वाकु वंश में हुआ था। उनके पिता राजा दृढ़रथ थे और उनकी माता का नाम सुनंदा देवी था। भगवान श्री शीतलनाथ जी का जन्म माघ माह के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को पूर्वाषाढ़ा नक्षत्र में हुआ था। इनके शरीर का वर्ण सुवर्ण था। भगवान श्री शीतलनाथ जी का प्रतीक चिन्ह कल्पवृक्ष है। भगवान श्री शीतलनाथ जी ने दीक्षा प्राप्ति के पश्चात तीन महीने तक कठोर तप किया। भगवान श्री शीतलनाथ जी को भद्रिकापुर में प्लक्ष वृक्ष के नीचे पौष माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि को कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। भगवान श्री शीतलनाथ जी को बैशाख माह की कृष्ण पक्ष की द्वितीया तिथि को सम्मेद शिखर पर निर्वाण प्राप्त हुआ। भगवान श्री शीतलनाथ जी ने सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने का संदेश दिया है। भगवान श्री शीतलनाथ जी के अनुसार सत्य और अहिंसा का मार्ग अपना कर लोक कल्याण करना ही सर्वोत्तम धर्म है। सत्य और अहिंसा के पथ पर चलकर ही व्यक्ति अपने लक्ष्य की प्राप्ति कर सकता है। व्यक्ति को धर्म में आस्था होनी चाहिए। धर्म के रास्ते को अपना कर ही व्यक्ति परम लक्ष्य अथार्त मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
 

 श्री शीतलनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Sheetalnath Chalisa Lyrics in Hindi

शीतल हैं शीतल वचन,
चन्दन से अघिकाय।
कल्पवृक्ष सम प्रभु चरण,
है सबको सुखदाय।
जय श्री शीतलनाथ गुणाकर,
महिमा मण्डित करुणासागर।
भद्धिलपुर के दृढ़रथ राय,
भूप प्रजावत्सल कहलाए।
रमणी रत्न सुनन्दा रानी,
गर्भ में आए जिनवर ज्ञानी।
द्वादशी माघ बदी को जन्मे,
हर्ष लहर उमडी त्रिभुवन में।
उत्सव करते देव अनेक,
मेरु पर करते अभिषेक।
नाम दिया शिशु जिन को शीतल,
भीष्म ज्वाल अध होती शीतल।
एक लक्ष पूर्वायु प्रभु की,
नब्बे धनुष अवगाहना वपु की।
वर्ण स्वर्ण सम उज्जवलपीत,
दया धर्म था उनका मीत।
निरासक्त थे विषय भोग में,
रत रहते थे आत्मयोग में।
एक दिन गए भ्रमण को वन में,
करे प्रकृति दर्शन उपवन में।
लगे ओसकण मोती जैसे,
लुप्त हुए सब सूर्योदय से।
देख ह्रदय में हुआ वैराग्य,
आतम हित में छोड़ा राग।
तप करने का निश्चय करते,
ब्रह्मार्षि अनुमोदन करते।
विराजे शुक्रप्रभा शिविका पर,
गए सहेतुक वन में जिनवर।
संध्या समय ली दीक्षा अक्षुष्ण,
चार ज्ञान धारी हुए तत्क्षण।
दो दिन का व्रत करके इष्ट,
प्रथमाहार हुआ नगर अरिष्ट।
दिया आहार पुनर्वसु नृप ने,
पंचाश्चर्य किए देवों ने।
किया तीन वर्ष तप घोर,
शीतलता फैली चहुँ ओर।
कृष्ण चतुर्दशी पौष विरव्याता,
कैवलज्ञानी हुए जगत्राता।
रचना हुई तब समोशरण की,
दिव्य देशना खिरी प्रभु की।
आतम हित का मार्ग बताया,
शंकित चित समाधान कराया।
तीन प्रकार आत्मा जानो,
बहिरातन अन्तरातम मानो।
निश्चय करके निज आतम का,
चिन्तन कर लो परमातम का।
मोह महामद से मोहित जो,
परमातम को नहीं मानें वो।
वे ही भव भव में भटकाते,
वे ही बहिरातम कहलाते।
पर पदार्थ से ममता तज के,
परमात्म में श्रद्धा करके।
जो नित आतम ध्यान लगाते,
वे अन्तर आतम कहलाते।
गुण अनन्त के धारी है जो,
कर्मो के परिहारी है जो।
लोक शिखर के वासी है वे,
परमात्म अविनाशी हैं वे।
जिनवाणी पर श्रद्धा धरके,
पार उतरते भविजन भव से।
श्री जिनके इक्यासी गणधर,
एक लक्ष थे पूज्य मुनिवर।
अन्त समय गए सम्मेदाचंल,
योग धार कर हो गए निश्चल।
अश्विन शुक्ल अष्टमी आई,
मुक्ति महल पहुंचे जिनराई।
लक्षण प्रभु का 'कल्पवृक्ष' था,
त्याग सकल सुख वरा मोक्ष था।
शीतल चरण शरण में आओ,
कूट विद्युतवर शीश झुकाओ।
शीतल जिन शीतल करें,
सबके भव आताप।
हम सब के मन में बसे,
हरे सकलं सन्ताप।

श्री शीतलनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Sheetalnath Chalisa Lyrics in Hindi

सिद्ध प्रभु को नमन कर, अरिहंतो का ध्यान।
आचारज उवझाय को, करता नित्य प्रणाम।
शीतल प्रभु का नाम है, शीतलता को पाये।
शीतल चालीसा पढ़े, शत शत शीश झुकाये।

शीतल प्रभु जिनदेव हमारे, जग संताप से करो किनारे।
चंद्र बिम्ब न चन्दन शीतल, गंगा का ना नीर है शीतल।

शीतल है बस वचन तुम्हारे, आतम को दे शांति हमारे।
नगर भक्त नाम सुहाना, दृढ़रथ का था राज्य महान।

मात सुनंदा तब हर्षाये, शीतल प्रभु जब गर्भ में आये।
चेत कृष्ण अष्ठम थी प्यारी,  आरण स्वर्ग से आये सुखारी।

रत्नो ने आवास बनाया, लक्ष्मी ने तुमको अपनाया।
माघ कृष्ण द्वादश जब आयी, जन्म हुआ त्रिभुवन जिनराई।

सुर सुरेंद्र ऐरावत लाये, पाण्डुक शिला अभिषेक कराये।
एक लाख पूरब की आयु, सुख की निशदिन चलती वायु।

नब्बे धनुष की पाई काया, स्वर्ण समान रूप बतलाया।
धर्म अर्थ अरु काम का सेवन, फिर मुक्ति पाने का साधन।

ओस देख मोती सी लगती, सूर्य किरण से ही भग जाती।
दृश्य देख वैराग्य हुआ था, दीक्षा ले तप धार लिया था।

क्षण भंगुर है सुख की कलियाँ, झूठी है संसार की गलियाँ।
रिश्ते नाते मिट जायेगे, धर्म से ही मुक्ति पाएंगे।

लोकान्तिक देवों का आना, फिर उनका वैराग्य बढ़ाना।
इंद्र पालकी लेकर आया, शुक्रप्रभा शुभ नाम बताया।

वन जा वस्त्राभूषण त्यागे, आतम ध्यान में चित्त तब लागे।
कर्मो के बंधन को छोड़ा, मोह कर्म से नाता तोड़ा।

और कर्म के ढीले बंधन, मिटा प्रभु का कर्म का क्रंदन।
ज्ञान सूर्य तब जाकर प्रगटा, कर्म मेघ जब जाकर विघटा।

समवशरण जिन महल बनाया, धर्म सभा में पाठ पढ़ाया।
दौड़ दौड़ के भक्त ये आते, प्रभु दर्श से शांति पाते।

विपदाओं ने आना छोड़ा, संकट ने भी नाता तोड़ा।
खुशहाली का हुआ बसेरा, आनंद सुख का हुआ सवेरा।

है प्रभु मुझको पार लगाना, मुझको सत्पथ राह दिखाना।
तुमने भक्तो को है तारा, तुमने उनको दिया किनारा।

मेरी बार न देर लगाना, ऋद्धि सिद्धि का मिले खजाना।
आप जगत को शीतल दाता, मेरा ताप हरो जग त्राता।

सुबह शाम भक्ति को गाऊं, तेरे चरणा लगन लगाऊं।
और जगह आराम न पाऊं, बस तेरी शरणा सुख पाऊं।

योग निरोध जब धारण कीना, समवशरण तज धर्म नवीना।
श्री सम्मेद शिखर पर आये, वहाँ पे अंतिम ध्यान लगाये।

अंतिम लक्ष्य को तुमने पाया, तीर्थंकर बन मुक्ति को पाया।
कूट विद्युतवर यह कहलाये, भक्त जो जाकर दर्शन पाये।

सिद्धालय वासी कहलाये, नहीं लौट अब वापस आये।
है प्रभु मुझको पास बुलाना, शक्ति दो संयम का बाना।

ज्ञान चक्षु मेरे खुल जाए, सम्यग्दर्शन ज्ञान को पाये।
स्वस्ति तेरे चरण की चेरी, पार करो, ना करना देरी।

चालीसा जो नित पढ़े, मन वच काय लगाय।
 ऋद्धि सिद्धि मंगल बढ़े, शत शत शीश झुकाये।
कर्म ताप नाशन किया, चालीसा मनहार।
शीतल प्रभु शीतल करे, आये जगत बहार। 

श्री शीतलनाथ चालीसा लिरिक्स हिंदी Shri Sheetalnath Chalisa Lyrics in Hindi

श्री शीतल तीर्थेश को, जो वंदे कर जोड़।
उसका मन शीतल बने, वच भी शीतल होय।।१।।
रोग शोक का नाश हो, तन शीतल हो जाए।
फिर क्रमश: त्रैलोक्य में, शीतलता आ जाए।।२।।
कल्पवृक्ष के चिन्ह से, सहित आप भगवान।
इसीलिए इच्छा सभी, पूरी हों तुम पास।।३।।

एक बार इक शिष्य ने गुरु से, पूछा सबसे शीतल क्या है ?।।१।।
गुरु ने जो बतलाया उसको, उसे ध्यान से तुम भी सुन लो।।२।।
हे भव्यों! संसार के अंदर, चन्दन नहिं है सबसे शीतल।।३।।
चन्द्ररश्मियाँ शीतल नहिं हैं, नहिं शीतल है गंगा का जल।।४।।
बसरे के मोती की माला, उसमें भी नहिं है शीतलता।।५।।
सबसे शीतल हैं इस जग में, वचन अहो! श्री शीतल जिन के।।६।।
जो त्रिभुवन के दु:खताप को, नष्ट करें अपने प्रताप से।।७।।
ऐसे शीतलनाथ प्रभू ने, जन्म लिया था भद्रपुरी में।।८।।
भद्दिलपुर भी कहते उसको, नमन करें उस जन्मभूमि को।।९।।
पिता तुम्हारे दृढ़रथ राजा, पुण्यशालिनी मात सुनन्दा।।१०।।
चैत्र कृष्ण अष्टमी तिथी तो, प्रभु की गर्भकल्याणक तिथि थी।।११।।
पुन: माघ कृष्णा बारस में, प्रभु ने जन्म लिया धरती पर।।१२।।
मध्यलोक में खुशियाँ छार्इं, स्वर्गलोक में बजी बधाई।।१३।।
नरकों में भी कुछ क्षण भव्यों!, शान्ति मिली थी नारकियों को।।१४।।
दूज चन्द्रमा के समान ही, बढ़ते रहते शीतल प्रभु जी।।१५।।
युवा अवस्था प्राप्त हुई जब, पितु ने राज्यभार सौंपा तब।।१६।।
उनके शासनकाल में भैया! अमन चैन की होती वर्षा।।१७।।
किसी को कोई कष्ट नहीं था, दुख दारिद्र वहाँ पर नहिं था।।१८।।
इक दिन शीतलनाथ जिनेश्वर, वनविहार करने निकले जब।।१९।।
मार्ग में तब हिमनाश देखकर, समझ गए यह जग है नश्वर।।२०।।
तत्क्षण सब कुछ त्याग दिया था, दीक्षा को स्वीकार किया था।।२१।।
इसीलिए कहते हैं भव्यों! यदि संसार में सुख होता तो!।।२२।।
क्यों तीर्थंकर उसको तजते!, क्यों संयम को धारण करते ?।।२३।।
जीवन का बस सार यही है, सच्चा सुख तो त्याग में ही है।।२४।।
संयम और संयमीजन की, निन्दा नहीं कभी करना तुम।।२५।।
संयम चिन्तामणी रत्न है, इससे मिल जाता सब कुछ है।।२६।।
शीतल प्रभु ने भी संयम को, धारा माघ कृष्ण बारस को।।२७।।
दीक्षा लेकर खूब तपस्या, करके वुंâदन कर ली काया।।२८।।
पुन: पौष कृष्णा चौदस को, प्रगटा केवलज्ञान प्रभू के।।२९।।
शुक्लध्यान को प्राप्त प्रभू जी, बने त्रिलोकी सूर्य प्रभू जी।।३०।।
जिस दिन शिवपुर पहुँचे प्रभु जी, उस दिन आश्विन सुदि अष्टमि थी।।३१।।
शीतल प्रभु जी सिद्धशिला पर, फिर भी शीतलता जग भर में।।३२।।
तीन शतक अरु साठ हाथ का, शीतल जिनवर का शरीर था।।३३।।
आयू एक लाख पूरब थी, स्वर्णिम प्रभु की देहकान्ति थी।।३४।।
कल्पतरू के चिन्ह सहित प्रभु, कल्पवृक्ष सम फल भी देते।।३५।।
एक कृपा बस मुझ पर करिए, मेरा तन मन शीतल करिए।।३६।।
इस जग में जितने हैं प्राणी, उनको सुखमय कर दो प्रभु जी।।३७।।
उसमें ही मेरा नम्बर भी, आ जाएगा प्रभो! स्वयं ही।।३८।।
लेकिन सुख ऐसा ही देना, जिसके बाद कभी दुख हो ना।।३९।।
शान्ती ऐसी मिले ‘‘सारिका’’, नहीं माँगना पड़े दुबारा।।४०।।

श्री शीतल जिनराज का, यह चालीसा पाठ।
चालिस दिन तक जो पढ़े, नित चालीसहिं बार।।१।।
उनके सब दुख ताप अरु, रोग शोक नश जाएँ।
मन वच काय पवित्र हों, शीतलता आ जाए।।२।।
सदी बीसवीं की प्रथम ब्रह्मचारिणी मात।[१]
उनकी शिष्या श्रुतमणि, चन्दनामति मात।।३।।
पाकर उनकी प्रेरणा, मैंने लिखा ये पाठ।
इसको पढ़कर प्राप्त हों, जग के सब सुख ठाठ।।४।।

शीतलनाथ स्वामी आरती लिरिक्स Sheetalnath Ji Aarti Lyrics Hindi

ॐ जय शीतलनाथ स्वामी,
स्वामी जय शीतलनाथ स्वामी।
घृत दीपक से करू आरती,
घृत दीपक से करू आरती।
तुम अंतरयामी,
ॐ जयशीतलनाथ स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

भदिदलपुर में जनम लिया प्रभु,
दृढरथ पितु नामी,
दृढरथ पितु नामी।
मात सुनन्दा के नन्दा तुम,
शिवपथ के स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

जन्म समय इन्द्रो ने,
उत्सव खूब किया,
स्वामी उत्सव खूबकिया ।
मेरु सुदर्शन ऊपर,
अभिषेक खूब किया॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

पंच कल्याणक अधिपति,
होते तीर्थंकर,
स्वामी होते तीर्थंकर ।
तुम दसवे तीर्थंकर स्वामी,
हो प्रभु क्षेमंकर॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

अपने पूजक निन्दक केप्रति,
तुम हो वैरागी,
स्वामी तुम हो वैरागी ।
केवल चित्त पवित्र करन नित,
तुमपूजे रागी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

पाप प्रणाशक सुखकारक,
तेरे वचन प्रभो,
स्वामी तेरे वचन प्रभो।
आत्मा को शीतलता शाश्वत,
दे तब कथन विभो॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

जिनवर प्रतिमा जिनवर जैसी,
हम यह मान रहे,
स्वामी हम यह मान रहे।
प्रभो चंदानामती तब आरती,
भाव दुःख हान करें॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

ॐ जय शीतलनाथ स्वामी,
स्वामी जय शीतलनाथ स्वामी।
घृत दीपक से करू आरती,
घृत दीपक से करू आरती।
तुम अंतरयामी,
ॐ जयशीतलनाथ स्वामी॥
॥ ॐ जय शीतलनाथ स्वामी…॥

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भजन श्रेणी : जैन भजन (Read More : Jain Bhajan)

शीतलनाथ नमो धरि हाथ, सु माथ जिन्हों भव गाथ मिटाये |
अच्युत तें च्युत मात सुनंद के, नंद भये पुर भद्दल आये ||
वंश इक्ष्वाकु कियो जिन भूषित, भव्यन को भव पार लगाये |
ऐसे कृपानिधि के पद पंकज, थापत हूँ हिय हर्ष बढ़ाये ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्र ! अत्र अवतरत अवतरत संवौषट्! (आह्वाननम्)
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्र ! अत्र तिष्ठत तिष्ठत ठ: ठ:! (स्थापनम्)
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्र ! अत्र मम सन्निहितो भवत भवत वषट्! (सन्निधिकरणम्)

देवापगा सु वर वारि विशुद्ध लायो |
भृंगार हेम भरि भक्ति हिये बढ़ायो ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय जन्म जरा मृत्यु विनाशनाय जलं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

श्री खंडसार वर कुंकुम गारि लीनो।
कं संग स्वच्छ घिसि भक्ति हिये धरीनो।।
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा।
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा।।
ॐ ह्रीं श्रीशीतलनाथजिनेन्द्राय संसारताप विनाशनाय चंदनं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

मुक्ता समान सित तंदुल सार राजे |
धारंत पुंज कलि कुंज समस्त भाजे ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अक्षयपद प्राप्तये अक्षतान् निर्वपामीति स्वाहा ।३।

श्री केतकी प्रमुख पुष्प अदोष लायो।
नौरंग जंग करि भृंग सुरंग पायो।।
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा।
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा।।
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय कामबाण विध्वंसनाय पुष्पं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

नैवेद्य सार चरु चारु संवारि लायो |
जांबूनद प्रभृति भाजन शीश नायो ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय क्षुधारोग विनाशनाय नैवेद्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

स्नेह प्रपूरित हिये जजतेऽघ भाजे ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय मोहांधकार विनाशनाय दीपं निर्वपामीति स्वाहा ।६।

कृष्णागुरु प्रमुख गंध हुताश माँहीं |
खेऊं तवाग्र वसु कर्म जरंत जाही ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अष्टकर्म दहनाय धूपं निर्वपामीति स्वाहा ।७।

निम्बाम्र कर्कटि सु दाड़िम आदि धारा |
सौवर्ण गंध फल सार सुपक्व प्यारा ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय मोक्षफल प्राप्तये फलं निर्वपामीति स्वाहा ।८।

शुभ श्रीफलादि वसु प्रासुक द्रव्य साजे |
नाचे रचे मचत बज्जत सज्ज बाजे ||
रागादि दोष मल मर्दन हेतु येवा |
चर्चूं पदाब्ज तव शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अनर्घ्यपद प्राप्तये अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।९।

आठैं वदी चैत सुगर्भ माँही, आये प्रभू मंगलरूप थाहीं |
सेवे शची मातु अनेक भेवा, चर्चूं सदा शीतलनाथ देवा ||
ॐ ह्रीं चैत्रकृष्णऽष्टम्यां गर्भमंगल मंडिताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।१।

श्री माघ की द्वादशि श्याम जायो, भूलोक में मंगल सार आयो |
शैलेन्द्र पै इन्द्र फनिन्द्र जज्जे, मैं ध्यान धारूं भवदु:ख भज्जे ||
ॐ ह्रीं माघकृष्ण द्वादश्यां जन्ममंगल मंडिताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।२।

श्री माघ की द्वादशि श्याम जानो, वैराग्य पायो भव भाव हानो |
ध्यायो चिदानन्द निवार मोहा, चर्चूं सदा चर्न निवारि कोहा ||
ॐ ह्रीं माघकृष्ण द्वादश्यां तपोमंगल मंडिताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।३।

चतुर्दशी पौष वदी सुहायो, ताही दिना केवललब्धि पायो |
शोभैं समोसृत्य बखानि धर्मं, चर्चूं सदा शीतल पर्म शर्मं ||
ॐ ह्रीं पौषकृष्ण चतुर्दश्यां केवलज्ञानमंगल मंडिताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।४।

कुवार की आठैं शुद्ध बुद्धा, भये महामोक्ष सरूप शुद्धा |
सम्मेद तें शीतलनाथ स्वामी, गुनाकरं तासु पदं नमामी ||
ॐ ह्रीं आश्विनशुक्लऽष्टम्यां मोक्षमंगल मंडिताय श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय अर्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा ।५।

आप अनंत गुनाकर राजे, वस्तु विकाशन भानु समाजे |
मैं यह जानि गही शरना है, मोह महारिपु को हरना है |१|

हेम वरन तन तुंग धनु नव्वै अति अभिराम |
सुरतरु अंक निहारि पद, पुनि पुनि करूं प्रणाम |२|

जय शीतलनाथ जिनंदवरं, भवदाह दवानल मेघ झरं |
दु:ख भूभृत भंजन वज्र समं, भवसागर नागर पोत पमं |३|

कुह मान मयागद लोभ हरं, अरि विघ्न गयंद मृगिंद वरं |
वृष वारिद वृष्टन सृष्टि हितू, परदृष्टि विनाशन सुष्टु पितू |४|

समवसृत संजुत राजतु हो, उपमा अभिराम विराजतु हो |
वर बारह भेद सभा थित को, तित धर्म बखानि कियो हित को |५|

पहले महि श्रीगणराज रजें, दुतिये महि कल्पसुरी जु सजें |
त्रितिये गणनी गुन भूरि धरें, चवथे तिय जोतिष जोति भरें |६|

तिय विंतरनी पनमें गनिये, छहमें भुवनेसुर तिय भनिये |
भुवनेश दशों थित सत्तम हैं, वसुमें वसु विंतर उत्तम हैं |७|

नवमें नभ जोतिष पंच भरे, दशमें दिवि देव समस्त खरे |
नर वृंद इकादश में निवसें, अरु बारह में पशु सर्व लसें |८|

तजि वैर, प्रमोद धरें सब ही, समता रस मग्न लसें तब ही |
धुनि दिव्य सुनें तजि मोह मलं, गनराज असी धरि ज्ञान बलं |९ |

सबके हित तत्त्व बखान करें, करुना मन रंजित शर्म भरें |
वरने षट्द्रव्य तनें जितने, वर भेद विराजतु हैं तितने |१०|

पुनि ध्यान उभै शिव हेत मुना, इक धर्म दुती सुकलं अधुना |
तित धर्म सुध्यान तणों गुनियो, दश भेद लखे भ्रम को हनियो |११|

पहलो अरि नाश अपाय सही, दुतियो जिन बैन उपाय गही |
त्रिति जीवविषैं निज ध्यावन है, चवथो सु अजीव रमावन है |१२|

पनमों सु उदै बलटारन है, छहमों अरि राग निवारन है |
भव त्यागन चिंतन सप्तम है, वसुमों जित लोभ न आतम है |१३|

नवमों जिनकी धुनि सीस धरे, दशमों जिनभाषित हेत करे |
इमि धर्म तणों दश भेद भन्यो, पुनि शुक्ल तणो चदु येम गन्यो |१४|

सुपृथक्त वितर्क विचार सही, सुइकत्व वितर्क विचार गही |
पुनि सूक्ष्मक्रिया प्रतिपात कही, विपरीत क्रिया निरवृत्त लही |१५|

इन आदिक सर्व प्रकाश कियो, भवि जीवन को शिव स्वर्ग दियो |
पुनि मोक्ष विहार कियो जिन जी, सुखसागर मग्न चिरं गुन जी |१६|

अब मैं शरना पकरी तुमरी, सुधि लेहु दयानिधि जी हमरी |
भव व्याधि निवार करो अब ही, मति ढील करो सुख द्यो सब ही |१७|

शीतल जिन ध्याऊँ भगति बढ़ाऊँ, ज्यों रतनत्रय निधि पाऊँ |
भवदंद नशाऊँ शिवथल जाऊँ, फेर न भव वन में आऊँ |१८|

ॐ ह्रीं श्री शीतलनाथजिनेन्द्राय जयमाला पूर्णार्घ्यं निर्वपामीति स्वाहा।
दिढ़रथ सुत श्रीमान्, पंचकल्याणक धारी,
तिनपद जुगपद्म, जो जजें भक्तिधारी |
सहज सुख धन धान्य, दीर्घ सौभाग्य पावे,
अनुक्रम अरि दाहे, मोक्ष को सो सिधावे ||

शीतलनाथ जी स्तुति लिरिक्स हिंदी

शीतलता का स्रोत आत्मा, आज दृष्टी में आया है |
मिथ्या तपन मिटी सब प्रभुवर, मुक्ति मार्ग प्रगटाया है ||

शीतलनाथ जिनेन्द्र आपको, शत शत बार नमन हो |
अब पुरुषार्थ आप सा प्रगटे, भव में नहीं भ्रमण हो ||

सर्व समागम मिला आज प्रभु, नहीं बहाने का कुछ काम |
तोड़ सकल जग द्व्न्द फंद, मैं निज में ही पाऊँ विश्राम ||

परम प्रतीति सु उर में जागी, हूँ स्वतंत्र निश्चल निष्काम |
निज महिमा में मग्न होय प्रभु, पाऊँ शिवपद परम ललाम ||
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