बड़सायत की कहानी Badsayat Ki Kahani (Badsayat Story)
बडसायत कथा (कहानी ) का एक विशेष महत्त्व होता है। इस कथा को वट सावित्री व्रत पर सुना जाता है और इस कथा को सुनाने से अखंड सौभाग्य की होगी प्राप्ति होती है और अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है। बडसायत या वट सावित्री की कथा ज्येष्ठ माह के कृष्ण पक्ष की अमावस्या को आता है। बडसायत या वट सावित्री का व्रत सुहागन स्त्रियां अपने पति की लम्बी आयु और अकाल मृत्यु से बचने के लिए करती हैं। ज्येष्ठ माह के दिन सत्यवान सावित्री और यमराज की पूजा की जाती है। इसके उपरान्त फल का भोग लगाकर ग्रहण किया जाता है। इस व्रत को रखें से व्रत रखने वाली स्त्री अखंड सोभाग्य की प्राप्ति करती है और अपने पति की आयु को अखंड करती हैं। इस व्रत को करके ही सावित्री ने अपने मृत पति सत्यवान को धर्मराज से पुनः प्राप्त कर लिया था, जीवित कर लिया था।
यह व्रत को करने का भी विधि विधान है। मिटटी का सावित्री, सत्यवान तथा भैंसे पर सवार यमराज की प्रतिमा बनाई जाती है। इसके उपरान्त धुप, चन्दन दीपक फल, रोली, केसर से पूजा को श्रेष्ठ माना गया है। इसके उपरान्त सत्यवान और सावित्री की कथा का श्रवण करना चाहिए।
बड़सायत की कहानी Badsayat Ki Kahani (Katha)
भद्र देस में अश्वपति नाम का एक राजा था जिसके कोई संतान नहीं थी। काफी समय के बाद भी जब राजा को कोई संतान नहीं हुई तब उन्होंने पंडितों को बुलाकर पूछा। तब पंडितों ने बताया कि आपको पुत्री का योग है और आप की पुत्री जब 12 वर्ष की आयु प्राप्त कर लेगी तब वह विधवा हो जाएगी।
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राजा ने सोचा कि कोई बात नहीं कम से कम लड़की होगी तो वंश वृद्धि तो होगी। बाद में पंडितों के कहने पर राजा ने राज्य में यज्ञ करवाया। यज्ञ और हवन कराने से राजा के एक लड़की हुई जिनका नाम सावित्री रखा गया। सावित्री हर साल बड़सायत अमावस्या को पार्वती जी की पूजा करती थी। जब सावित्री बड़ी हुई तो उनका विवाह सत्यवान के साथ कर दिया गया।
सावित्री के सास ससुर अंधे थे। सावित्री अपने ससुर की बहुत सेवा करती थी। सत्यवान जंगल से लकड़ियां काटकर लाया करते थे। सावित्री को पता था कि जिस दिन उनकी आयु 12 वर्ष की हो जाएगी उनके पति सत्यवान की मृत्यु हो जाएगी। जिस दिन सावित्री की आयु 12 वर्ष पुर्ण हो रही थी उस दिन सावित्री भी अपने सास-ससुर से पूछ कर सत्यवान के साथ जंगल में चली गई।
जंगल में जाकर सावित्री तो लकड़ियां काटने लगी और सत्यवान पेड़ की छाया में सो गए। उसी पेड़ पर एक सांप रहता था। जिसने सत्यवान को डस लिया और सत्यवान की मृत्यु हो गई। सावित्री उसी पेड़ के नीचे अपने पति को गोद में लेकर विलाप करने लगी। उसी समय शंकर पार्वती जी वहां से जा रहे थे। सावित्री ने उनके पैर पकड़ लिए और बोली कि मेरे पति को जिंदा कर दीजिए। शंकर और पार्वती जी ने बोला कि आज बड़सायत अमावस्या है तो आज जब तुम बड़ की पूजा करोगी तो तुम्हारा पति जीवित हो जाएगा।
सावित्री ने बहुत ही प्रेम पूर्वक बड़ की पूजा की। सावित्री ने पत्तों के गहने बना के पहने। बड़ के पत्ते हीरे मोतीयों के गहने बन गए। धर्मराज जब उसके पति को ले जाने लगे तो सावित्री ने उनके पैर पकड़ लिए। तब धर्मराज ने प्रसन्न होकर वरदान मांगने लिए कहा।
सावित्री ने तीन वरदान मांगे। पहला मेरे सास ससुर को आँखें मिल जाए, दूसरा मेरे मां-बाप के पुत्र हो जाए और तीसरा मेरे सत्यवान से 100 पुत्र हो। धर्मराज ने उन्हें वरदान दे दिए। बाद में जब धर्मराज सत्यवान को ले जाने लगे तो सावित्री ने कहा कि आप मेरे पति को ले जाओगे तो मुझे पुत्र कैसे प्राप्त होंगे ? धर्मराज ने कहा कि तुम्हारे भाग्य में सुहाग तो नहीं था लेकिन बड़सायत अमावस्या पर शिव पार्वती की पूजा करने से प्रसन्न होकर मैं तुम्हें सुहागन होने का वरदान देता हूं।
बड़सायत अमावस्या पर शिव पार्वती जी की पूजा करने से सावित्री सौभाग्यवती बन गई। हे भगवान जैसे सावित्री को सुहाग का आशीष दीया वैसे ही सभी सुहागनों को दे। कहानी सुनने वाले को, कहने वाले कोऔर उसके सारे परिवार को दें। जय शिव पार्वती जी की।
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