चानण छठ/ऊब छठ की व्रत कथा कहानी Chanan Chhath Ki Kahani

चन्द्र छठ ऊब छठ/चानण छठ,  जिसे ऊब छठ या डाला छठ भी कहते हैं, एक महत्वपूर्ण हिन्दू त्योहार है जो भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष के छठी तिथि क मनाई जाती है. यह व्रत और पूजा माता उषा और पुत्र सूर्य की आराधना के लिए की जाती है। ऊब छठ व्रत का पूरा मार्गदर्शन और विधि पालन करने के लिए श्रद्धालुओं को सुबह सूर्योदय के समय स्नान करना, व्रती भोजन तैयार करना, मन्त्रों का जाप करना, छठ गीत गाना और सूर्यास्त के समय जल अर्पण करना चाहिए। इस पवित्र व्रत को करने से व्रती को आरोग्य, सुख, समृद्धि और परिवार के कल्याण की कामना की जाती है।

ऊब छठ/चानण छठ की व्रत कथा कहानी Chanan Chhath Ki Kahani

एक साहूकार और एक साहूकारनी थे। साहूकारनी मासिक धर्म के समय भी रसोई का कार्य यथा खाना बनाना, पानी भरना आदि कार्य करती थी। कुछ समय बाद साहूकार और साहूकारनी की मृत्यु हो गई।
जब साहूकार को दूसरा जन्म मिला तब वह बैल बना और साहूकारनी ने कुत्तिया के रूप में जन्म लिया। साहूकार और साहूकारनी बैल और कुत्तिया बन गए थे। दोनों अपने ही बेटे के घर में रहते थे।

साहूकार बैल के रूप में दिनभर खेत में काम करता और घर पर साहूकारनी कुत्तिया के रूप में रखवाली करती थी। एक दिन साहूकार का श्राद्ध आया। तो साहूकार की बहू ने खीर बनाई थी।
जब साहूकार की बहू श्राद्ध की तैयारियां कर रही थी तभी एक चील ने खीर के पतीले में मरा हुआ सांप डाल दिया। कुत्तिया बैठे-बैठे सब देख रही थी। उसने सोचा कि अगर ब्राह्मण देवता इस जहरीली खीर को खाएंगे तो वह मर जाएंगे।

जब बहू रसोई में आई तो कुत्तिया ने खीर को जूठा कर दिया। जिससे बहू को बहुत गुस्सा आया और उसने जलती हुई लकड़ी से कुत्तिया को बहुत मारा। उस दिन उसने कुत्तिया को खाना भी नहीं दिया।
बाद में दूसरी खीर बनाकर ब्राह्मण देवता को खाना खिलाया। रात को बैल और कुत्तिया आपस में बात कर रहे थे तो कुत्तिया ने बोला कि एक चील ने खीर में मरा हुआ सांप डाल दिया था। और बहू ने उसे नहीं देखा। इसीलिए मैंने वह खीर जूठी कर दी और बहू ने गुस्से में मुझे बहुत मारा और खाना भी नहीं दिया।
उसने साहूकार से कहा कि आज तो आप का श्राद्ध था आपने तो खूब भोजन किया होगा। तब बेल ने कहा कि मुझे भी आज कुछ नहीं मिला काम भी बहुत कराया। उधर बेटे और बहू ने उनकी बात सुन ली और उनको भरपेट खाना खिलाया।

दूसरे दिन साहूकार के बेटे ने पंडित को बुलाकर पूछा कि मेरे माता पिता किस जुनी में है। तब पंडित ने बताया कि उनके पिता बेल की जुनी में है और उनकी मां कुत्तिया की जुनी में है।
 जब पंडित ने कहा की भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की छठ को लड़कियां व्रत करती है। इस दिन कहानी सुनकर रात को अरग देती है। जब लड़कियां कहानी सुनकर अरग दे तब बैल और कुत्तिया को उनके पास खड़ा कर देना। जिससे उनकी यह जुनी छूट जाएगी। तुम्हारी मां मासिक धर्म के दौरान भी रसोई घर का सारा कार्य करते थी इसीलिए उनको यह जन्म मिला है अर्थात यह जुनी मिली है।

लड़कियों ने जब भाद्रपद कृष्ण पक्ष की छठ का व्रत किया और रात को जब अरग दे रही थी तब लड़के ने अपनी माता (कुत्तिया) और अपने पिता (बेल) को उनके पास खड़ा कर दिया। इससे उनकी कुत्तिया और बैल की जुनी छूट गई। उनको मोक्ष मिल गया।

हे चानन छठ माता जैसे बैल और कुत्तिया (साहूकार और साहूकारनी) को मोक्ष दिया वैसे ही सभी को देना। कहानी सुनने वाले को, कहने वाले को और उनके सभी परिवार वालों को मोक्ष प्रदान करना।
 

कब आती है चन्दन छठ

चंदन छठ भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की छठ को होती है। चंदन छठ भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाई जाती है। यह पर्व बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में विशेष आनंद और उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह छठ पर्व माध्यम से मां छठी महारानी और सूर्यदेवता की पूजा-अर्चना करता है। भक्त इस पर्व के दौरान नदी या झीलों के किनारे जाकर स्नान करते हैं और व्रत के समय खाद्य-सामग्री का त्याग करते हैं। इस पर्व का आयोजन प्रकृति और सूर्य की प्रतिष्ठा के साथ होता है
 

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कौन हैं छठी मइया?

छठी मइया को छठ पूजा के दौरान विशेष रूप से पूजा जाता है. यह पूजा विशेष रूप से बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के क्षेत्रों में प्रसिद्ध है. छठ पूजा विशेष रूप से सूर्य देव और छठी मइया की कृपा और आशीर्वाद के लिए मनाई जाती है. छठी मइया को छठ पूजा में खास आहार, गान और व्रत की विधियाँ दी जाती हैं. छठी मइया की कथा, जिसमें उनके भाई सूर्य देव के साथ उनकी अनूठी भाई-बहन की प्रेम कथा कही जाती है, पूजा का महत्व बताती है. छठी मइया की पूजा का मुख्य उद्देश्य बाढ़, तापमान की ऊंचाई, संतान सुख, स्वास्थ्य और धन की प्राप्ति, और परिवार के सदस्यों की लंबी उम्र की प्रार्थना करना होता है. यह पूजा प्राकृतिक उपासना है और सूर्य की प्राकृतिक शक्ति को पुकारने और प्रशंसा करने के लिए की जाती है.
 
 ब्रह्मा जी की उत्पत्ति से जुड़ी इस पौराणिक कथा में षष्ठी देवी की महत्वपूर्ण भूमिका है। षष्ठी देवी को देवसेना के नाम से भी जाना जाता है और वह प्रकृति की प्रतिष्ठा है। षष्ठी देवी को संतान की संरक्षण करने और संतान के सुरक्षा के लिए प्रसन्न होने का देवी माना जाता है। षष्ठी देवी की पूजा बहुतायत से लोग करते हैं, विशेषकर बच्चों के अच्छे स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना करते हुए। छठी मइया के दरबार में उनके भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए व्रत, पूजा, आरती, भजन और भक्तिगीत आदि का आयोजन करते हैं। छठी मइया की पूजा करके, लोग षष्ठी देवी की कृपा को प्राप्त करने के लिए प्रार्थना करते हैं और अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति की आशा करते हैं।
षष्ठी देवी की पूजा करने के द्वारा लोग अपने संतानों की सुरक्षा, उनकी आरोग्य और दीर्घायु की कामना करते हैं। 

Chaiti Chatth 2023 Vrat Katha

छठी मैया की कथा छठ पर्व के दौरान पढ़ी जाती है और इसे बहुत महत्वपूर्ण माना जाता है। छठ पर्व में छठी मैया की उपासना करने वाले लोग इस कथा को पढ़कर उनके आध्यात्मिक और धार्मिक उन्नति को प्राप्त करने की कामना करते हैं। छठी मैया की कथा उनके श्रद्धालु भक्तों को प्रेरणा और आदर्शों के साथ नवजीवन के मार्ग में मार्गदर्शन करती है।

छठी मैया की कथा में छठी मैया के जन्म और उनकी महिमा का वर्णन होता है। इस कथा में उनके अद्यात्मिक और आध्यात्मिक महत्व के बारे में बताया जाता है, जिससे भक्त उनके गुणों को समझते हैं और उनके आदर्शों का अनुसरण करते हैं। इस कथा को पढ़कर छठी मैया के भक्त उन्हें प्रसन्न करने के लिए श्रद्धा और भक्ति के साथ अपने व्रत को सम्पन्न करते हैं और उनकी कृपा को प्राप्त करने की कामना करते हैं। छठी मैया की पूजा के साथ सूर्यदेव की पूजा करने वाले छठ व्रत के दिनों में संतान को सुखी जीवन की प्राप्ति होती है, यह मान्यता प्रचलित है। भगवान राम और अंगराज कर्ण के द्वारा सूर्यषष्ठी पूजा की शुरुआत की गई थी और इसे मान्यता के अनुसार उनके आशीर्वाद से यह पर्व प्रसिद्ध हुआ है।

इसके अलावा, पौराणिक कथा के अनुसार, जब पांडव भाईयों ने जुएं में अपना राजपाट हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत का आयोजन किया था। उनके व्रत के फलस्वरूप पांडवों को उनका राजपाट वापस मिल गया था। इस घटना के बाद से छठ व्रत को समृद्धि प्राप्ति के लिए रखने की प्रथा प्रचलित हुई है।

छठ पर्व के तीसरे दिन को निर्जला व्रत कहा जाता है और यह दिन विशेष महत्वपूर्ण होता है। इस दिन महिलाएं 36 घंटे तक भोजन और पानी का त्याग करती हैं। संध्या में सूर्य को अर्घ्य देने के बाद, अगले दिन सूर्योदय के समय पूजा की जाती है। इस दिन छठ पर्व में भगवान सूर्य और छठी माता की विशेष पूजा होती है।

छठ पर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है। इसे डाला छठ, सूर्य षष्ठी, और छठ पूजा नामों से भी जाना जाता है। छठ पर्व में लोग स्नान करते हैं, विशेष प्रकार के प्रसाद तैयार करते हैं और उसे सूर्यदेव और छठी माता को अर्पित करते हैं। इस पर्व में मन्नतें मांगी जाती हैं और जो लोग छठ व्रत पूरा करते हैं, उन्हें अपनी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, ऐसा मान्यता में व्याप्त है।

छठ मैया के बारे में अधिक जानिये

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, छठी माता या छठी देवी सूर्यदेव की बहन हैं और ब्रह्मा जी की मानस पुत्री हैं। पौराणिक कथा के अनुसार सृष्टि के समय ब्रह्मा जी ने अपने शरीर को दो हिस्सों में बांट दिया था। उनके दायें हिस्से से पुरुष और बायें हिस्से से प्रकृति का जन्म हुआ। प्रकृति ने अपने आप को छह हिस्सों में बांट दिया, और छठवें हिस्से को "षष्ठी देवी" कहा गया। षष्ठी देवी को छठी देवी भी कहा जाता है।
छठी देवी छठ पर्व के दौरान विशेष उपास्य देवी मानी जाती हैं। मातृत्व, संतान सुख, और परिवार के लिए छठी माता की कृपा को प्राप्त करने के लिए छठ पर्व में उनकी पूजा और आराधना की जाती है। इस पर्व में भक्त छठी माता के चरणों में अपनी श्रद्धा और भक्ति का अभिप्रेत व्यक्त करते हैं और उनसे आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।
छठी माता के पूजन के दौरान छठी देवी की कथा और गाथा का पाठ/श्रवण किया जाता है। यह कथा मान्यताओं के अनुसार छठी माता की महिमा और उनके वरदानों को वर्णित करती है। यह एक प्राचीन कथा है जो बताती है कि कैसे छठी माता ने अपने भक्त की प्रार्थनाओं को सुना और उन्हें आशीर्वाद दिया।

छठ पर्व का महत्वपूर्ण दिन तीसरा दिन होता है, जब महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं, जिसमें वे 36 घंटे तक भूखी और प्यासी रहती हैं। इस दिन को "संध्या अर्घ्य" के नाम से भी जाना जाता है, जिसमें सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस अवसर पर छठी माता की पूजा और आराधना के साथ ही सूर्यदेव की पूजा भी होती है। छठ पर्व का मुख्य त्योहार बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश, और नेपाल के क्षेत्रों में धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व के दौरान लोग गंगा घाटों या तालाबों में स्नान करते हैं और छठी माता और सूर्यदेव की पूजा करते हैं।

बच्चों की रक्षा करती हैं छठ मैया

छठी माता को बच्चों की रक्षा करने वाली देवी के रूप में माना जाता है। वह देवसेना के नाम से भी पुकारी जाती है। मान्यता है कि छठी माता की पूजा करने से बच्चों को लंबी आयु मिलती है और उन्हें आरोग्य का वरदान प्राप्त होता है। जिन महिलाओं को संतान नहीं होती है, उन्हें छठी माता की पूजा से संतान प्राप्ति की आशा होती है। इसके अलावा, महाभारत काल में जब अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा के गर्भ में पल रहे बच्चे का वध किया गया था, तब भगवान श्रीकृष्ण ने उत्तरा को छठी माता का व्रत रखने की सलाह दी थी। इसका पालन करने पर उत्तरा को एक सुंदर और स्वस्थ पुत्र की प्राप्ति हुई थी। बच्चे के जन्म के बाद उसकी छठी पूजा की जाती है. यह पूजा छठी माता की आराधना का एक रूप है और इसके माध्यम से उनका आशीर्वाद प्राप्त किया जाता है. छठी माता की कृपा से बच्चे की सुरक्षा और आरोग्य होती है और उसके संकट दूर हो जाते हैं. छठी माता स्वयं अप्रत्यक्ष रूप से उस बच्चे के साथ रहती हैं और उसकी रक्षा करती हैं. इस पूजा में बच्चे के लिए प्रसाद के रूप में गुड़, दूध, मिठाई, फल आदि चीजें चढ़ाई जाती हैं और परिवार द्वारा आरती की जाती है। यह पूजा उत्तर भारतीय राज्यों में विशेष रूप से मनाई जाती है।

कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को छठी मैय्या का व्रत और पर्व बहुत धूमधाम से मनाया जाता है। इस व्रत के दौरान भगवान सूर्य की अराधना निष्ठा और परंपरा के साथ की जाती है। छठी मैय्या का यह व्रत कठिन माना जाता है, इसलिए इसे "महाव्रत" और "महा पर्व" के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत के द्वारा छठी मैय्या की कृपा से निसंतान लोगों को संतान प्राप्ति होती है और वे सभी बच्चों की रक्षा भी करती हैं। इस पर्व के दौरान, सूर्योदय के समय बहुत सारे लोग नदी या झील के किनारे जाकर सूर्य को अर्घ्य देते हैं। यह व्रत पूर्वी भारत समेत विभिन्न इलाकों में महत्वपूर्ण त्योहार माना जाता है।
 

इस नाम से भी जाना जाता है छठी मैया को  

पुराणों में छठी मैय्या को कात्यायनी देवी के नाम से भी जाना जाता है। नवरात्रि के छठे दिन इन माता की पूजा की जाती है। ग्रामीण समाज में आज भी बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी पूजा का प्रचलन है। स्कंद पुराण में छठी मैय्या के व्रत के बारे में बताया गया है कि जो भक्त इस व्रत को सच्चे मन से करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं, यह सभी सुखों को प्रदान करता है। छठी मैय्या संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं और बच्चों की रक्षा करना इनका एक गुण है। यह सभी माता के प्रति आदर और श्रद्धा का प्रतीक है जो अपने बच्चों की कल्याण और सुरक्षा के लिए आवश्यक माना जाता है।

इस तरह देते हैं छठी मैया को अर्घ्य

षष्ठी तिथि की सांयकाल में, सूर्य देवता को गंगा, यमुना या अन्य पवित्र नदी या तालाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है। इस अर्घ्य के दौरान, नदी किनारे एक बांस की टोकरी में मौसमी फल, मिठाई और प्रसाद के रूप में ठेकुआ, गन्ना, केले, नारियल, खट्टे नींबू और चावल के लड्डू भी रखे जाते हैं। इन फलों को पीले रंग के कपड़ों से ढक दिया जाता है और एक दीपक को हाथ में लेकर टोकरी को पकड़कर तीन बार डूबकी मारकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस प्रसाद को विशेष सावधानी और पवित्रता के साथ रखा जाता है।
 

कैसे होती है सूर्योपासना का महापर्व छठ पूजा?

सूर्योपासना का प्रमुख पर्व है छठ, जो भारतीय संस्कृति में एक महत्वपूर्ण और आदिकालीन परंपरा है। यह पर्व सूर्य देवता की पूजा और स्तुति के माध्यम से आत्मशक्ति, प्राकृतिक संवेदनशीलता और सामर्थ्य का समर्पण करता है। सूर्य देवता सृष्टि के कारक हैं और उन्हें जीवन का प्राण स्रोत माना जाता है। उनकी प्रकाशमय ऊर्जा और उष्मा बिना किसी भेदभाव के सभी जीवों को जीवनदान करती है। सूर्य देवता ने सर्वप्रथम कर्मयोग का उपदेश दिया है, जिसका अर्थ है कि कर्म करते रहें और फल की आकांक्षा न करें। वे स्वावलंबी और कर्मठता के प्रतीक हैं और उनके प्रभाव से चांद, तारे और संपूर्ण ब्रह्माण्ड का प्रकाशित होना होता है।

भुवनभास्कर भगवान सूर्य को प्रत्यक्ष देव के रूप में माना जाता है और वे संपूर्ण जगत के परम आराध्य माने जाते हैं। इनकी सूर्योपासना की चर्चा उत्तर वैदिक साहित्य और रामायण-महाभारत में भी मिलती है। गुप्तकाल से पहले से ही सौर संप्रदाय के लोग सूर्य की पूजा करते थे, और उन्हें 'सौर' नाम से जाना जाता था। सौर संप्रदाय के अनुयाय अपने उपास्य देव सूर्य को आदि देवता के रूप में मानते थे। भूगोलिक दृष्टि से भी, सूर्योपासना भारत में व्यापक थी। मथुरा, मुल्तान, कश्मीर, कोणार्क और उज्जयिनी आदि इस प्रकार के प्रमुख सूर्य मंदिरों के केंद्र थे।
 
छठ पर्व वर्ष में दो बार मनाया जाता है, पहले चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को और दूसरा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को। यह पर्व 'नहाय खाय' रिती के साथ शुरू होता है और सप्तमी के दिन पारण के साथ समाप्त होता है। इन चार दिनों के व्रत के दौरान, व्रती व्यक्ति 36 घंटे का उपवास रखता है।

छठ पर्व बिहार प्रांत की सांस्कृतिक पहचान का महापर्व है, जो धर्म और संस्कृति की गर्वभावना और आस्था का प्रतीक है। इस पर्व को बिहार सहित पूरे देश और विदेश में मनाया जाता है। चाहे वह देश में हो या विदेश में, बिहार के लोग एकजुट होकर बिना किसी भेदभाव के किसी जलाशय के किनारे एकत्रित होते हैं। वे अपनी प्रकृति और संस्कृति के प्रति गर्व महसूस करते हैं और छठ पर्व का आयोजन करते हैं।

छठ पर्व या छइठ,
कार्तिक शुक्ल पक्ष की षष्ठी को मनाया जाने वाला एक हिन्दू पर्व है। यह सूर्योपासना का अद्वितीय लोकपर्व है और मुख्य रूप से बिहार, झारखंड, पश्चिम बंगाल, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व मैथिल, मगध और भोजपुरी समुदायों का सबसे बड़ा पर्व माना जाता है, जो उनकी संस्कृति का प्रतीक है। छठ पर्व बिहार में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है। यह एकमात्र ऐसा पर्व है जो वैदिक काल से चला आ रहा है और बिहार की संस्कृति का हिस्सा बन चुका है। यह पर्व बिहार की वैदिक आर्य संस्कृति की एक छोटी सी झलक दिखाता है। इस पर्व को मुख्य रूप से ऋषियों द्वारा लिखी गई ऋग्वेद में सूर्य पूजन, उषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार बिहार में मनाया जाता है।

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