कबीर हाड़ चाम लहू ना मेरे हिंदी मीनिंग Kabir Had Cham Lahu Meaning
कबीर,हाड़ चाम लहू ना मेरे, जाने कोई सतनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूं कबीर अविनाशी।।
Kabir Had Chaam lahu Na Mere, Jane Koi Satnam Upasi,
Taran Taran Abhay Pad Data, Main Hu Kabir Avinashi.
कबीर साहेब इस वाणी में अपने आध्यात्मिक ज्ञान को प्रकट करते हैं। उन्होंने अपने शरीर को मात्र एक भौतिक रूप के नहीं, बल्कि आत्मा के वेश में देखा है। वे कहते हैं कि शरीर में हड्डियाँ और मांस होने से हमारी पहचान नहीं होती। असली पहचान तो उस आत्मा को प्राप्त होती है, जिसको सतनाम और सारनाम का अनुभव हुआ होता है। जो व्यक्ति इस अंतर्मुखी अनुभव से गुजरता है, वह सच्चे ज्ञान को प्राप्त होता है और स्वयं को एक अविनाशी परमात्मा में पहचानता है। इस वाणी के माध्यम से कबीर साहेब हमें आत्म-साक्षात्कार और सच्चे भगवत् के प्रति भक्ति के मार्ग पर प्रेरित करते हैं। उनके शब्द हमें सांसारिक मोहमाया से दूर जाने के लिए प्रेरित करते हैं और सत्य की खोज में हमें अग्रसर करते हैं। इस वाणी का सार यह है कि हमारी आत्मा ही हमारी असली पहचान है और सतनाम के अनुभव से हम अपने असली स्वरूप को पहचान सकते हैं, जो अविनाशी परमात्मा के रूप में स्थित है।
न मेरा जन्म न गर्भ बसेरा, बालक हो दिखलाया।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।।
मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी ।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहेब का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
काशी नगर जल कमल पर डेरा, वहाँ जुलाहे ने पाया।।
मात-पिता मेरे कुछ नाहीं, ना मेरे घर दासी ।
जुलहा का सुत आन कहाया, जगत करें मेरी हाँसी।।
पाँच तत्व का धड़ नहीं मेरा, जानुं ज्ञान अपारा।
सत्य स्वरूपी नाम साहेब का सोई नाम हमारा।।
अधर द्वीप गगन गुफा में तहां निज वस्तु सारा।
ज्योत स्वरूपी अलख निरंजन भी धरता ध्यान हमारा।।
हाड़ चाम लहु ना मेरे कोई जाने सत्यनाम उपासी।
तारन तरन अभय पद दाता, मैं हूँ कबीर अविनाशी।।
कबीर साहेब इस वाणी में अपने अद्भुत स्वरूप का वर्णन करते हैं। उन्होंने कहा है कि उनका शरीर न किसी पत्नी का है और न ही उनके पाँच तत्वों का (हाड़, चाम, लहू) शरीर है, बल्कि वे स्वयंभू हैं। उन्होंने काशी के लहरतारा नामक तालाब के जल में कमल के फूल पर स्वयं प्रकट होकर बालक रूप धारण किया था। उन्हें नीरू नामक जुलाहा ले गया था, जो असली नाम परमेश्वर का है, जिसे वेदों में कविर्देव, गुरु ग्रन्थ साहेब में हक्का कबीर और कुरान शरीफ में अल्लाह कबीरन कहा जाता है। कबीर साहेब बता रहे हैं कि वे ऊपर ऋतधाम में रहते हैं और उनकी पूजा करता है भगवान ज्योति निरंजन (ब्रह्म) भी। इस वाणी से हमें यह समझ मिलता है कि कबीर साहेब के स्वरूप और भगवान के स्वरूप में कोई अंतर नहीं है, वे एक हैं और सभी में समाहित हैं।