गुरु सों ज्ञान जु लीजिए सीस दीजिए दान मीनिंग Guru So Gyan Ju Lijiye Meaning
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए, सीस दीजिए दान।
बहुतक भोंदु बहि गये, राखि जीव अभिमान।
बहुतक भोंदु बहि गये, राखि जीव अभिमान।
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गुरु सो ज्ञान जु लीजिये, सीस दीजये दान।
बहुतक भोंदू बहि गये, राखी जीव अभिमान॥
बहुतक भोंदू बहि गये, राखी जीव अभिमान॥
Gur Son Gyan Ju Lijiye, Sheesh Dijiye Dan,
Bahutak Bhoundu Bahi Gaye, Rakhi Jeev Abhiman.
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए सीस दीजिए दान शब्दार्थ Guru So Gyan Ju Lijiye Wrod Meaning.
- गुरु सों : गुरु से।
- ज्ञान : गुरु ज्ञान।
- जु : जैसे।
- लीजिए : प्राप्त कीजिये।
- सीस : शीश/मस्तक।
- दीजिए : गुरु को शीश का दान दीजिये।
- दान: गुरु दक्षिणा के रूप में।
- बहुतक : बहुत से।
- भोंदु : मूर्ख, अज्ञानी।
- बहि गये : बह गए हैं।
- राखि : रखना, जिन्होंने रखा।
- जीव अभिमान : स्वंय के होने का दम्भ।
गुरु सों ज्ञान जु लीजिए सीस दीजिए दान हिंदी मीनिंग/अर्थ /भावार्थ Guru So Gyan Ju Lijiye Sheesh Hindi Meaning
कबीर साहेब का कथन है की सतगुरु की शरण में जाकर ज्ञान
प्राप्ति अमूल्य है। सद्गुरु का सानिध्य अमूल्य है, यदि गुरु का सानिध्य
शीश देकर प्राप्त करना पड़े तो ऐसा करना चाहिए क्योंकि गुरु ही व्यक्ति जो
जन्म मरण के चक्र से मुक्त कर सकता है।
स्वंय के होने का अभिमान (गर्व) हमें त्याग देना चाहिए, क्योंकि यह गुरु के ज्ञान से बढ़कर नहीं है। बहुतेरे/बहुत से अज्ञानी व्यक्ति अपने ही दम्भ में भव सागर में बह गए, मुक्ति को प्राप्त ना हो सके। अतः सम्पूर्ण श्रद्धा और त्याग भाव से गुरु की शरण को ग्रहण करना चाहिए। गुरु ही मुक्ति के द्वार का पथ प्रदर्शक है। संत कबीर के इस दोहे में गुरु की महत्ता प्रदर्शित होती है। गुरु की महत्वपूर्णता के साथ ही गुरु के प्रति शिष्य की आदर और श्रद्धा को भी यहाँ बताया गया है। गुरु के शरण में जाकर ही ज्ञान की प्राप्ति होती है और मुक्ति का मार्ग दिखाई देता है। गुरु के सानिध्य के लिए हमें तन धन और मन तीनों से समर्पित हो जाना चाहिए।
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