अंतरि कँवल प्रकासिया ब्रह्म वास तहाँ होइ हिंदी अर्थ Antari Kanwal Prakashiya Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth Sahit
अंतरि कँवल प्रकासिया, ब्रह्म वास तहाँ होइ।
मन भँवरा तहाँ लुबधिया, जाँणौंगा जन कोइ॥
Antari Kanwal Prakasiya, Brahm Vas Taha Hoi,
Man Bhavara Taha Lubadhiya, Janoge Jan Koi.
कबीर के दोहे का हिंदी में अर्थ / भावार्थ Kabir Doha Hindi Meaning
कबीर साहेब इस दोहे में वाणी देते हैं की हृदय के भीतर कमल प्रफुल्लित हो रहा है। इस कमल में ब्रह्म की सुगंध है जीवात्मा का मन रूपी भंवर / भ्रमर इस पर लुब्ध हो चूका है। आशय है की विरला साधक इस रहस्य हो जान पायेगा।
शब्दार्थ— अन्तरि = हृदय के अन्दर। कवल = कमल = हृदय पद्म। प्रकाशिया = प्रकाशित हो गया। भवरा = भ्रमर। इस दोहे में, कबीर साहेब कहते हैं कि हृदय के भीतर एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहाँ पर ब्रह्म का निवास है। यह केंद्र, एक कमल के समान है, जो कि पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। कबीर साहेब कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति, इस आध्यात्मिक केंद्र को खोज लेता है, तो उसका मन रूपी भ्रमर, उसी में लुब्ध हो जाता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति, ईश्वर के प्रेम और ज्ञान में लीन हो जाता है।
शब्दार्थ— अन्तरि = हृदय के अन्दर। कवल = कमल = हृदय पद्म। प्रकाशिया = प्रकाशित हो गया। भवरा = भ्रमर। इस दोहे में, कबीर साहेब कहते हैं कि हृदय के भीतर एक आध्यात्मिक केंद्र है, जहाँ पर ब्रह्म का निवास है। यह केंद्र, एक कमल के समान है, जो कि पवित्रता और ज्ञान का प्रतीक है। कबीर साहेब कहते हैं कि जब कोई व्यक्ति, इस आध्यात्मिक केंद्र को खोज लेता है, तो उसका मन रूपी भ्रमर, उसी में लुब्ध हो जाता है। इसका अर्थ है कि व्यक्ति, ईश्वर के प्रेम और ज्ञान में लीन हो जाता है।