भाव बिना नहिं भक्ति जग भक्ति बिना नहीं भाव हिंदी मीनिंग कबीर के दोहे

भाव बिना नहिं भक्ति जग भक्ति बिना नहीं भाव हिंदी मीनिंग Bhav Bina Nahi Bhakti Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit

भाव बिना नहिं भक्ति जग, भक्ति बिना नहीं भाव |
भक्ति भाव एक रूप हैं, दोऊ एक सुभाव ||
 
Bhav Bina Nahi Bhakti Jag, Bhakti Bina Nahi Bhav,
Bhakti Bhav Ek Roop Hai, Dou Ek Subhav.
 
भाव बिना नहिं भक्ति जग भक्ति बिना नहीं भाव हिंदी मीनिंग Bhav Bina Nahi Bhakti Meaning

कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi

भक्ति के सम्बन्ध में कबीर साहेब का कथन है की भाव के बिना जगत में भक्ति संभव नहीं है। भक्ति के बिना भाव भी संभव नहीं है। भक्ति और भाव एक ही रूप में है। दोनों का एक ही स्वभाव है। कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ है कि भक्ति और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भक्ति बिना प्रेम नहीं होती और प्रेम बिना भक्ति नहीं होता। कबीरदास जी का मानना था कि भक्ति एक आंतरिक प्रक्रिया है। यह प्रेम और समर्पण से उत्पन्न होती है। जब मनुष्य में ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण होता है, तभी भक्ति संभव हैं।
Saroj Jangir Author Author - Saroj Jangir

दैनिक रोचक विषयों पर में 20 वर्षों के अनुभव के साथ, मैं कबीर के दोहों को अर्थ सहित, कबीर भजन, आदि को सांझा करती हूँ, मेरे इस ब्लॉग पर। मेरे लेखों का उद्देश्य सामान्य जानकारियों को पाठकों तक पहुंचाना है। मैंने अपने करियर में कई विषयों पर गहन शोध और लेखन किया है, जिनमें जीवन शैली और सकारात्मक सोच के साथ वास्तु भी शामिल है....अधिक पढ़ें

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