भाव बिना नहिं भक्ति जग भक्ति बिना नहीं भाव हिंदी मीनिंग Bhav Bina Nahi Bhakti Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi Arth/Bhavarth Sahit
भाव बिना नहिं भक्ति जग, भक्ति बिना नहीं भाव |भक्ति भाव एक रूप हैं, दोऊ एक सुभाव ||
Bhav Bina Nahi Bhakti Jag, Bhakti Bina Nahi Bhav,
Bhakti Bhav Ek Roop Hai, Dou Ek Subhav.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
भक्ति के सम्बन्ध में कबीर साहेब का कथन है की भाव के बिना जगत में भक्ति संभव नहीं है। भक्ति के बिना भाव भी संभव नहीं है। भक्ति और भाव एक ही रूप में है। दोनों का एक ही स्वभाव है। कबीरदास जी के इस दोहे का अर्थ है कि भक्ति और प्रेम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। भक्ति बिना प्रेम नहीं होती और प्रेम बिना भक्ति नहीं होता। कबीरदास जी का मानना था कि भक्ति एक आंतरिक प्रक्रिया है। यह प्रेम और समर्पण से उत्पन्न होती है। जब मनुष्य में ईश्वर के प्रति प्रेम और समर्पण होता है, तभी भक्ति संभव हैं।