चाकी चलती देखि कै दिया कबीरा रोइ मीनिंग Chaki Chalati Dekhi Ke Meaning : Kabir Ke Dohe Hindi arth/Bhavarth Sahit
चाकी चलती देखि कै, दिया कबीरा रोइ।दोइ पट भीतर आइकै, सालिम बचा न कोई॥
या
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥
चलती चक्की देख के, दिया कबीरा रोये ।
दो पाटन के बीच में, साबुत बचा न कोए ॥
Chaki Chalati Dekhi Ke, Diya Kabira Roi,
Doi Pat Bheetar Aaike, Salima Bacha Na Koi.
कबीर के दोहे का हिंदी मीनिंग (अर्थ/भावार्थ) Kabir Doha (Couplet) Meaning in Hindi
कबीर इस संसार और मानव जीवन को चक्की (अनाज पीसने का यंत्र) कहा है। जीवात्मा इन दोनों के बीच में पिसती जा रही है। जीवन का उद्देश्य हरी नाम नाम का सुमिरन करना है लेकिन माया जीवात्मा को अपने पाश में फंसाकर उसे भक्ति से विमुख कर देती है। ऐसे में कबीर साहेब सन्देश देते हैं की इन दोनों पाटों के बीच में कोई साबुत बचा नहीं है। बचा है तो वह जो गुरु के सानिध्य में रहकर हरी के नाम का सुमिरन करे। इस दोहे में कबीर दास जी काल की चक्की का वर्णन करते हैं। काल की चक्की एक ऐसी कल्पना है जो समय के अनवरत प्रवाह और मृत्यु के निश्चित परिणाम को दर्शाती है। कबीर दास जी कहते हैं कि काल की चक्की अनवरत चलती रहती है, और इसके दो पाटों के बीच कोई भी जीव सुरक्षित नहीं रह सकता है।